सुप्रीम कोर्ट 4 नवंबर को करेगा बिहार SIR मतदाता सूची मामले की सुनवाई

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के पीठ ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि जिन लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है, उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता मिले।

By डॉ.अभिज्ञात

Oct 16, 2025 15:35 IST

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह 4 नवंबर को बिहार में चल रहे विशेष गहन संशोधन (SIR) के तहत मतदाता सूची में किए गए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करेगा। इन याचिकाओं में भारत के चुनाव आयोग (ECI) के उस कदम को चुनौती दी गई है, जिसमें मतदाता सूची को संशोधित किया गया है।

याचिकाकर्ताओं की मांग क्या हैः याचिकाकर्ताओं की मांग है कि भारत निर्वाचन आयोग को यह निर्देश दिया जाए कि वह उन मतदाताओं की अलग-अलग सूची प्रकाशित करे, जिन्हें हटाया गया है और जिन्हें जोड़ा गया है। मतदाता सूची में यह पारदर्शिता होनी चाहिए कि किसे क्यों हटाया गया या जोड़ा गया।

सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक टिप्पणीः सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा कि निर्वाचन आयोग SIR प्रक्रिया पूरी होने के बाद मतदाता आंकड़ों को सार्वजनिक करने की अपनी जिम्मेदारी से अवगत है। चुनाव आयोग को यह पता है कि उसे जानकारी देना जरूरी है।

अपील करने वालों को मुफ्त कानूनी मदद का निर्देशः न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के पीठ ने यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि जिन लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है, उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता मिले। इसके लिए बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BSLSA) को निर्देश दिया कि वह सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को सूचना दे कि वहां पर कानूनी सहायक स्वयंसेवक और वकील उपलब्ध हों, जो ऐसे व्यक्तियों को अपील करने में सहायता सकें।

हलफनामों में गड़बड़ी पर चिंताः कोर्ट ने यह कहा कि कुछ लोगों ने जो हलफनामे सुप्रीम कोर्ट में पेश किए हैं, उनमें असंगतियां हैं। कुछ लोगों ने दावा किया है कि उन्हें गलत तरीके से सूची से बाहर किया गया है, लेकिन कोर्ट ने पाया कि इन दावों में पूरी सच्चाई नहीं है।

चुनाव आयोग की ओर से क्या कहा गया?: चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी पेश हुए। उन्होंने एक उदाहरण पर सवाल उठाया जो याचिकाकर्ता संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दिया था। ADR ने कहा था कि एक व्यक्ति का नाम मसौदा सूची में था, लेकिन अंतिम सूची से हटा दिया गया। द्विवेदी ने इस दावे को झूठा बताया और कहा कि वह व्यक्ति मसौदा सूची में था ही नहीं क्योंकि उसने गणना फॉर्म जमा नहीं किया था। उन्होंने आरोप लगाया कि झूठा हलफनामा दायर किया गया है, जो अदालत में गलत साक्ष्य पेश करने के बराबर है।

अपील करने का समय अभी भी बाकी: द्विवेदी ने यह भी कहा कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे अब भी 5 दिन के भीतर अपील कर सकते हैं, इसलिए उन्हें अधिकार देने की व्यवस्था पहले से ही मौजूद है।

सुप्रीम कोर्ट की दस्तावेज देने में सावधानी बरतने की चेतावनीः कोर्ट ने याचिकाकर्ता ADR के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि जब कोई दस्तावेज़ सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाता है तो उसमें जिम्मेदारी और गंभीरता होनी चाहिए। हलफनामों में झूठ या भ्रम की स्थिति अदालत की प्रक्रिया के लिए उचित नहीं।

योगेंद्र यादव की भी दलीलें सुनी गईंः इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव की दलीलें भी सुनीं, जो इस मुद्दे से संबंधित हैं।

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