NDA की सूची में सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार, भाजपा ने फिर नहीं दिया टिकट

243 सीटें, 17% मुस्लिम आबादी फिर भी अनदेखी। क्या मुस्लिम वोटों को छोड़ रहा है NDA?

By Shweta Singh

Oct 20, 2025 17:47 IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां अपने चरम पर हैं। राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है और चुनावी मैदान सज चुका है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की ओर से जारी उम्मीदवारों की सूची में एक तथ्य ने राजनीतिक हलकों में खासा ध्यान खींचा है वो ये कि 243 उम्मीदवारों में से सिर्फ 5 मुस्लिम उम्मीदवार हैं।

बिहार की कुल जनसंख्या में मुस्लिम आबादी करीब 17 प्रतिशत है और राज्य की 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव निर्णायक माना जाता है। इसके बावजूद NDA की सूची में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व बेहद सीमित नजर आता है।

JDU से चार, LJP से एक, BJP ने फिर नहीं दिया टिकट

NDA के तहत जनता दल (यूनाइटेड) ने चार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस बार भी एक भी मुस्लिम चेहरे को टिकट नहीं दिया जैसा कि 2020 विधानसभा चुनाव में भी देखा गया था।

NDA के मुस्लिम उम्मीदवारों की सूची इस प्रकार है:

1 सबा जफर अमौर (पूर्णिया) JDU

2 जमा खान चैनपुर (कैमूर) JDU

3 मंजर आलम जोकिहाट (अररिया) JDU

4 शगुफ्ता अज़ीम अररिया (अररिया) JDU

5 मोहम्मद कलीमुद्दीन बहादुरगंज (किशनगंज) LJP (रामविलास)

सीमांचल और दक्षिण बिहार पर फोकस

NDA द्वारा चुने गए पांचों मुस्लिम उम्मीदवार सीमांचल और दक्षिण बिहार के उन क्षेत्रों से हैं जहां मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं। अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कैमूर जैसे जिलों की सीटों पर ये उम्मीदवार गठबंधन की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय का चेहरा बनकर मैदान में उतरेंगे।

राजनीतिक रणनीति या हार का सबक?

2020 के चुनाव में JDU ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन कोई भी जीत हासिल नहीं कर सका। इसी के बाद इस बार टिकट वितरण में सावधानी बरती गई है। JDU के एक पदाधिकारी ने कहा कि हमने उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जहां पिछली बार हार मिली थी। उम्मीदवारों का चयन जीत की संभावना के आधार पर हुआ है धर्म के आधार पर नहीं।

भाजपा का स्पष्ट रुख

भाजपा का रुख साफ है कि वोट केवल "विकास" और "सामाजिक वर्गों" के आधार पर मांगे जा रहे हैं न कि प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के आधार पर। एक भाजपा मंत्री ने कहा कि डबल इंजन सरकार के कार्यों से सभी धर्मों को लाभ मिला है। हम मुस्लिम समुदाय समेत हर वर्ग के वोट की उम्मीद रखते हैं।

क्या मुस्लिम वोटों को छोड़ रहा है NDA?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि NDA की यह रणनीति दर्शाती है कि गठबंधन अब मुस्लिम वोट बैंक को महागठबंधन के पक्ष में स्थायी मान चुका है। इसलिए प्रयास मुख्य रूप से ओबीसी, दलित और सवर्ण समुदायों में मजबूत पकड़ बनाने पर केंद्रित है।

जातीय समीकरण बनाम सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व

बिहार की राजनीति में हमेशा से जातीय समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी टिकट वितरण में हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। महज 5% आबादी वाली कुर्मी जाति से आने वाले नीतीश कुमार ने जातीय संतुलन के दम पर बड़ा जनाधार खड़ा किया है लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधित्व में भारी गिरावट स्पष्ट रूप से दिख रही है।

243 सीटों वाले बिहार विधानसभा चुनाव में केवल 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारन राज्य की 17% आबादी वाले समुदाय के लिए प्रतिनिधित्व के लिहाज़ से निश्चित ही कम है। अब देखना होगा कि ये पांच चेहरे अपने-अपने क्षेत्रों में सांकेतिक उपस्थिति से इतर कोई ठोस जीत दिला पाते हैं या नहीं। साथ ही यह भी तय है कि यह निर्णय बिहार की सियासी दिशा में बदलाव का संकेत देता है जहां अब धार्मिक समीकरण की बजाय विकास और जातिगत गणित अहम भूमिका में हैं।

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