भोजपुरी सिनेमा के चर्चित अभिनेता पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह ने सोमवार को काराकाट विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन दाखिल किया। उनके इस कदम से विधानसभा क्षेत्र में चुनावी मुकाबला और अधिक रोचक हो गया है जहां पहले से ही महागठबंधन के अरुण सिंह और जदयू के पूर्व सांसद महाबली सिंह मैदान में हैं। ज्योति सिंह के नामांकन के समय समर्थकों की भीड़ उमड़ पड़ी। उनके पिता रामबाबू सिंह ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के प्रचार के दौरान ही ज्योति का काराकाट से बहुत गहरा जुड़ाव हो गया था।
राजनीतिक पारी की शुरुआत
ज्योति सिंह की राजनीतिक सक्रियता पिछले कुछ समय से देखी जा रही थी। हाल ही में उन्होंने जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर से मुलाकात की थी जिसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वे जन सुराज के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं। हालांकि बात नहीं बनी और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया।
पारिवारिक विवाद की छाया में राजनीतिक संघर्ष
पवन सिंह और ज्योति सिंह के बीच का पारिवारिक विवाद पिछले कुछ महीनों से लगातार चर्चा में रहा है। शादी के चार साल बाद दोनों के बीच मतभेद इस हद तक बढ़ गए कि मामला तलाक, घरेलू हिंसा और गंभीर आरोपों तक पहुंच गया। हाल ही में ज्योति सिंह ने सोशल मीडिया पर कई वीडियो जारी कर पवन सिंह पर निजी स्तर पर गंभीर आरोप लगाए। वहीं पवन सिंह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे अपनी छवि खराब करने की साजिश बताया।
चुनावी मैदान में उतरने से पहले पवन सिंह ने स्पष्ट किया था कि वे बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और भाजपा के सच्चे सिपाही बने रहेंगे। उनके चुनाव से हटने के कुछ ही दिनों बाद उनकी पत्नी ने अपनी दावेदारी पेश कर दी।
काराकाट बना सियासी अखाड़ा
काराकाट विधानसभा सीट अब केवल राजनैतिक नहीं बल्कि एक निजी संघर्ष का प्रतीक भी बन गई है। महागठबंधन के उम्मीदवार अरुण सिंह और एनडीए समर्थित महाबली सिंह के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा था लेकिन ज्योति सिंह की एंट्री ने समीकरणों को बदल दिया है। विधानसभा क्षेत्र में महिलाओं और युवाओं के बीच ज्योति सिंह की सहानुभूति लहर देखी जा रही है। पवन सिंह के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाई थी जिससे वे जमीनी स्तर पर पहचान बनाने में सफल रहीं।
क्या कहता है चुनावी गणित?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ज्योति सिंह के आने से वोटों का बंटवारा तय है। हालांकि उनके पास किसी दल का संगठनात्मक समर्थन नहीं है लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी उपस्थिति और सोशल मीडिया पर सक्रियता उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार बना सकती है। अब देखना यह होगा कि यह निजी जीवन से उपजा राजनीतिक संघर्ष वोटरों को किस दिशा में ले जाता है और क्या ज्योति सिंह अपने दम पर एक नई राजनीतिक पहचान बना पाती हैं।