एनडीए का ‘सुशासन’ बनाम महागठबंधन का ‘तेजस्वी बिहार’, कौन जीतेगा कानून-व्यवस्था की जंग?

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं-14 दिनों में 50 हत्याएं, आंकड़ों में दिखा अपराध का बढ़ता ग्राफ।

By अन्वेषा बन्द्योपाध्याय, Posted by: श्वेता सिंह

Nov 03, 2025 13:53 IST

बिहार चुनाव में 'जंगलराज!' लगभग एक शाश्वत 'सत्य' बन चुका है। विपक्षी खेमे ने 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद यादव और बाद में राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्व काल में ध्वस्त कानून-व्यवस्था और बढ़ते अपराध के कारण राज्य को यह नाम दिया था। 2005 में यादव परिवार का एकछत्र राज खत्म होने के बाद इस बार भी चुनाव का मुख्य मुद्दा 'जंगलराज' ही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी से कह चुके हैं कि जिस पीढ़ी ने लालू युग नहीं देखा, उसे साढ़े तीन दशक पहले के 'भयावह दिन' और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के सत्ता में आने के 'खतरे' की याद दिलानी होगी! उन युवाओं को यह समझाना होगा कि एनडीए का मतलब 'सुशासन' है। इसलिए उन्हें भाजपा और जदयू समेत गठबंधन के उम्मीदवारों को वोट देना चाहिए।

क्या नीतीश-भाजपा राज में बिहार का 'सुशासन' वाकई दो दशक पहले खत्म हुए 'जंगल राज' से बेहतर है? आंकड़े और सबूत ऐसे किसी 'अच्छे दिन' की ओर इशारा नहीं करते। बल्कि इसी साल जुलाई में 14 दिनों में बिहार में 50 हत्याएं हुईं ! इनमें से कई तो दिनदहाड़े अंजाम दी गईं। इसके बावजूद, 'जंगल राज' ही इस समय प्रचार का एकमात्र हथियार है।

एनसीआरबी के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1990 के दशक की शुरुआत में, बिहार में सालाना औसतन 1.23 लाख दंडनीय अपराध दर्ज होते थे और 1992 में इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई। हालांकि 1990-95 में बिहार की अपराध दर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों की तुलना में कम थी। 2000 के बाद झारखंड के अलग होने के बाद अपराध दर में वृद्धि शुरू हुई। यह सच है कि उस समय बिहार में कई हाई-प्रोफाइल हत्याएं चर्चा का विषय थीं। इसके अलावा जातिगत राजनीति के कारण लगभग हर दिन खूनी घटनाएं होती रहती थीं। निचली जातियों के लोग खास तौर पर इस बात से डरते थे कि कब रणबीर की सेना हमला कर देगी।

इसी दौरान लालू का 'चारा घोटाला' भी हुआ जिसके लिए उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी। उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके अलावा लालू की बेटी मीसा भारती का मेडिकल में प्रथम स्थान, बोर्ड और नौकरी की परीक्षाओं में सार्वजनिक रूप से बदनामी और कई अन्य बातों ने बवाल मचा दिया। लंबे समय के बाद जब लालू और राबड़ी की विदाई हो गयी तब2005 में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू सत्ता में आई। पहला और मुख्य वादा 'सुशासन' था।

आंकड़े बताते हैं कि नीतीश के कार्यकाल के पहले पांच वर्षों में हत्या सहित अपराध दर में थोड़ी कमी आई लेकिन2010 से 2015 के बीच अपराध दर में 42% की भारी वृद्धि हुई। एनसीआरबी और बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि अपहरण में 98 प्रतिशत, चोरी-डकैती-छीनने में 90 प्रतिशत और दंगों में 73 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यद्यपि 2005-2015 में प्रति वर्ष औसतन 1.68 लाख अपराध होते थे परन्तु पिछले दशक (2015-2025) में यह बढ़कर प्रति वर्ष औसतन 2.66 लाख अपराध हो गए हैं!

इस संदर्भ में जदयू का तर्क है कि जनसंख्या बढ़ी है। नतीजतन शिकायतें बढ़ रही हैं। लोग पुलिस पर भरोसा कर रहे हैं और एफआईआर दर्ज करा रहे हैं। पहले के दौर में वह साहस नहीं था। फिर महागठबंधन का दावा है कि 'डबल इंजन' सरकार में अपराध भी बढ़ रहे हैं। अपराधी दिनदहाड़े घूम रहे हैं। महिलाओं की कोई सुरक्षा नहीं है और गरीबों व पिछड़ों के साथ लगातार अत्याचार और भेदभाव हो रहा है। ऐसे में नीतीश-मोदी किस तरह 'जंगलराज' की बात कर रहे हैं? महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने पूछा, 'लालू प्रसाद यादव का शासन 20 साल से नहीं रहा। आप (नीतीश) ही बचे हैं। उसके बाद ऐसा क्यों है? एनडीए ने किन क्षेत्रों में सुशासन की मिसाल कायम की है?'

लालू काल में कानून का राज कमजोर हुआ है। आपराधिक राजनीति और गुंडागर्दी का बोलबाला बढ़ा है और चारा घोटाला का मुद्दा अब भी गर्म है। जयप्रकाश नारायण के इस शिष्य ने 1990 के दशक के मंडल-मंदिर संघर्ष में पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के एक बड़े चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई। दूसरी ओर कानून का राज बहाल करने का वादा करके सत्ता में आए नीतीश कुमार ने प्रशासन, बुनियादी ढांचे और शासन व्यवस्था में सुधार किया है। हालांकि अपराधों में वृद्धि, शराबबंदी पर विवाद की वजह से उनका 'सुशासन मॉडल' भी पूरी तरह से सही नहीं है। कई जगहों पर इसने लालू के कार्यकाल में बिगड़ी कानून-व्यवस्था को भी पीछे छोड़ दिया है। ऐसा कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि पहले चरण की लड़ाई 6 तारीख को है। ऐसे में क्या सत्ताधारी खेमा अब भी लगभग 40 साल पुराने दौर की 'कहानियां' सुनाकर वोट हासिल करता रहेगा।या फिर विपक्ष 'सुशासन' को पटखनी देकर 'तेजस्वी बिहार' स्थापित करने में कामयाब होगा। यह बहुत जल्द सामने आयेगा।

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