बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के नामांकन की अंतिम तारीख पर भी महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर गहराया विवाद नहीं थमा। महागठबंधन के बीच घमासान जारी था। गठबंधन की प्रमुख पार्टियों—राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के बीच समझौते की कोशिशें नाकाम साबित हुईं और अंततः दोनों दलों ने कई ऐसी सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं जहां उन्हें मिलकर चुनाव लड़ना था। जानकारी के अनुसार, अब तक कम से कम 12 विधानसभा सीटों पर दोनों दलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं जिससे मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और गठबंधन की एकजुटता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
राजद ने रविवार रात तक 243 में से 143 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। वहीं कांग्रेस ने भी अपनी चौथी सूची जारी कर दी है जिसमें 6 नाम शामिल हैं। कांग्रेस अब तक कुल 60 प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। कांग्रेस की ओर से जारी चौथी सूची में तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है। प्रमुख नामों में वाल्मीकि नगर से सुरेंद्र प्रसाद कुशवाहा, सिकंदरा से विनोद चौधरी और कहलगांव से प्रवीण सिंह कुशवाहा शामिल हैं।
राजद की सूची में पटना की दानापुर सीट से रीतलाल यादव, बख्तियारपुर से अनिरुद्ध यादव, बांकीपुर से रेखा गुप्ता और मसौढ़ी से रेखा पासवान को उम्मीदवार बनाया गया है। इसके अलावा सीतामढ़ी जिले की दो सीटों पर नए चेहरे उतारे गए हैं जबकि कुछ पुराने और सशक्त दावेदारों को टिकट नहीं मिला है।
पहले चरण में भी था असमंजस
पहले चरण की 121 सीटों के लिए नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है जहां 1375 नामांकन पत्रों को स्वीकार किया गया। पहले चरण में भी गठबंधन की ओर से सीट बंटवारे को लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई थी। कई सीटों पर आखिरी वक्त तक असमंजस बना रहा जिससे कई जिलों में कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखी गई।
सियासी नुकसान की आशंका
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की आपसी खींचतान से गठबंधन को भारी राजनीतिक नुकसान हो सकता है। एक ही सीट पर दो विपक्षी उम्मीदवार उतरने से न सिर्फ वोटों का विभाजन तय है बल्कि एनडीए या अन्य दलों को सीधा फायदा मिल सकता है। विश्लेषकों का यह भी कहना है कि यह मतभेद गठबंधन की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचा सकता है विशेषकर उन इलाकों में जहां जातीय और सामाजिक समीकरण बेहद नाजुक हैं।
जनसुराज की एंट्री और मुकाबले की पेचीदगी
इस बार बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी की भी एंट्री हो चुकी है। पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही है और उसे ‘वोटकटुआ’ भूमिका में देखा जा रहा है। हालांकि किशोर की व्यक्तिगत लोकप्रियता और सांगठनिक शक्ति को देखते हुए कई क्षेत्रों में यह पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में भी उभर सकती है। ऐसे में महागठबंधन की यह आंतरिक खींचतान और नई ताकतों की मौजूदगी चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है जहां जीत की कोई गारंटी किसी के पास नहीं।
एकजुटता की परीक्षा या विघटन की शुरुआत?
महागठबंधन का यह आपसी घमासान एक ऐसे समय में सामने आया है जब राज्य की राजनीति में विकल्प की तलाश तेज है। मतदाताओं को अगर गठबंधन में ही बिखराव दिखेगा तो उनके विश्वास पर भी असर पड़ना तय है। अब देखना यह होगा कि क्या आने वाले दिनों में महागठबंधन अपने मतभेदों को सुलझाकर एकजुटता का संदेश दे पाता है या यह कलह आने वाले परिणामों में बड़ी हार का कारण बन जाएगी।
बिहार चुनाव में नतीजे चौंका सकते हैं
बिहार चुनाव के पहले और दूसरे चरण में 121 और 122 सीटों पर मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। अगर महागठबंधन ने जल्द ही सार्वजनिक स्तर पर एकता और रणनीतिक स्पष्टता नहीं दिखाई तो यह चुनाव उसके लिए आत्ममंथन का कारण बन सकता है। इस बार का चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है बल्कि यह विपक्ष की विश्वसनीयता की परीक्षा भी है।