बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में छपरा विधानसभा सीट इस बार सिर्फ एक राजनीतिक मैदान नहीं बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा तय करने वाली जगह बन गई है। कभी लालू प्रसाद यादव की सियासत की जन्मभूमि मानी जाने वाली यह सीट अब भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव की वजह से चर्चा के केंद्र में है। राजद ने खेसारी पर दांव लगाकर इस चुनाव को सिनेमा और सियासत के मेल में बदल दिया है जबकि भाजपा अपने पारंपरिक वोट बैंक और संगठन के बूते इस सीट को बचाने में जुटी है।
खेसारी की एंट्री: सिनेमा से सियासत तक
भोजपुरी फिल्मों में सुपरहिट रहे खेसारी लाल यादव अब कैमरे से निकलकर सीधे जनता के बीच पहुंचे हैं। नामांकन के दिन उनका फिल्मी अंदाज — दूध से स्नान, सिक्कों से तौलना और जयकारों से गूंजता छपरा — इस बात का संकेत था कि चुनावी मैदान में वह अपने स्टारडम को भी हथियार बनाकर उतरे हैं। राजद ने पहले उनकी पत्नी को टिकट देने का विचार किया था लेकिन आख़िरी वक्त में खुद खेसारी को उम्मीदवार बना पार्टी ने बड़ा दांव चला।
तीन तरफा मुकाबला, लेकिन असली लड़ाई दो के बीच
छपरा में इस बार 10 उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य टक्कर राजद के खेसारी लाल यादव और भाजपा की छोटी कुमारी के बीच है। तीसरे मोर्चे से जनसुराज पार्टी के जयप्रकाश भी सक्रिय हैं जो तेजस्वी यादव और एनडीए दोनों से नाराज मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा ने इस बार चेहरा बदला है। डॉ. सी.एन. गुप्ता की जगह स्थानीय महिला नेता छोटी कुमारी को टिकट देकर नया सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है।
जातीय समीकरण: किसके साथ कौन?
छपरा की राजनीति हमेशा जातीय गणित पर टिकी रही है यहां लगभग 90,000 बनिया, 50,000 राजपूत, 45,000 यादव, 39,000 मुस्लिम और 22,000 अन्य मतदाता हैं।
राजद का फोकस मुस्लिम यादव (MY) समीकरण के साथ खेसारी की लोकप्रियता को जोड़कर युवा और गैर पारंपरिक वर्गों को साधने पर है। वहीं भाजपा अपने बनिया और राजपूत वोट बैंक, संगठन की पकड़ और डबल इंजन सरकार की उपलब्धियों पर भरोसा कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अगर खेसारी कुछ प्रतिशत बनिया और युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में कर पाए तो मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है।
लालू की विरासत बनाम भाजपा का संगठन
यह सीट सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं बल्कि लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत का प्रतीक है। यहीं से उन्होंने सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत की थी। अब राजद चाहता है कि खेसारी लालू की छवि को “आधुनिक और युवा चेहरा” बनकर जनता तक पहुंचाएं। भाजपा के लिए यह सीट अपनी संगठनात्मक मजबूती और विकास मॉडल की परीक्षा है। यह जंग अब ‘परंपरा बनाम प्रयोग’ में बदल चुकी है।
‘जंगलराज बनाम रोजगारराज’ — नैरेटिव की जंग
खेसारी अपने भाषणों में युवाओं और रोजगार के मुद्दे को जोरदार ढंग से उठा रहे हैं। उनका कहना है — “20 साल से एनडीए सत्ता में है लेकिन वे सिर्फ जंगलराज की बात करते हैं, रोजगार की नहीं।” वहीं भाजपा मंदिर, विकास और स्थिर सरकार की बात कर रही है।
इस सीट पर अब असली जंग “जंगलराज बनाम रोजगारराज” के नैरेटिव की है। हाल में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के “नाचने वाला” तंज पर खेसारी का पलटवार। खेसारी ने तंज कसते हुए कहा कि वो पहले अपने घर झांक लें। आपकी पार्टी ने चार ‘नचनिया’ को टिकट दिया है। उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और खेसारी के समर्थकों में नया जोश भर गया।
मनोरंजन जगत की सियासत
बिहार चुनाव 2025 में मनोरंजन जगत के कई चेहरे मैदान में हैं खेसारी लाल यादव (राजद), रितेश पांडेय (जनसुराज) और मैथिली ठाकुर (भाजपा)। तीनों अपने संगीत और लोकप्रियता के जरिए जनता से भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन कलाकारों की लोकप्रियता वोट में तब्दील होती है तो बिहार की राजनीति में ‘सेलिब्रिटी पॉलिटिक्स’ का नया दौर शुरू हो सकता है।
स्टारडम बनाम संगठन
छपरा की जंग इस बार दो अलग रास्तों की लड़ाई है । राजद ने इस बार करिश्मा, युवाशक्ति और सोशल मीडिया की आंधी पर दांव लगाया है। वहीं भाजपा बूथ नेटवर्क, जातीय समीकरण और स्थिरता का संदेश देने की रणनीति पर काम कर रही है।
अगर खेसारी लाल यादव अपनी लोकप्रियता को वोट में बदल पाए तो यह बिहार की राजनीति की पटकथा बदल सकता है। पर अगर भाजपा ने यह सीट बचा ली तो यह साबित होगा कि बिहार की राजनीति अब भी जमीन से जुड़ी समीकरणों की राजनीति है, न कि सिर्फ चेहरों की। जब छपरा में वोट पड़ेंगे तो यह तय करेगा कि क्या बिहार की जनता नई राजनीति को मौका देने के लिए तैयार है। यह लड़ाई सिर्फ लालू की विरासत और भाजपा की पकड़ की नहीं बल्कि उस सवाल की भी है क्या स्टारडम अब बिहार की सत्ता तक पहुंच पाएगा?