नई दिल्ली: बिहार के चुनाव में एनडीए अपना पलड़ा भारी करने के लिए कई दशक पहले लालूप्रसाद यादव के समय की कानून व्यवस्था की स्थिति को हथियार बना रहा है। उस समय बिहार की 'कानून व्यवस्था' कितनी दयनीय थी जनता को यह समझाने के लिए बारंबार लालू-विरोधी नेता 'जंगलराज' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। आगामी 6 नवंबर को बिहार विधानसभा में पहले चरण का मतदान होगा। उससे पहले मगध में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपने चुनाव प्रचार में कुछ विविधता लाने की कोशिश में जुटा है।
इसी मकसद से राजनीतिक नेताओं के बदले लालू यादव के 'जंगलराज' में बिहार के जिन आम लोगों ने अपने स्वजनों को खोया है, उन्हें मंच पर लाकर भाजपा नेतृत्व उनके भयावह अनुभव की बातें जनता से साझा करना चाहता है। उन्हें उम्मीद है कि इससे उन्हें फायदा होगा। दिल्ली के नेताओं का मानना है कि विपक्षी महागठबंधन में 'मुख्यमंत्री का चेहरा' तेजस्वी यादव हैं, ऐसे में उनके पिता लालूप्रसाद के समय की भयावहता की बात आम बिहारी ही अगर मतदाताओं के सामने रखे तो विपक्षियों को टक्कर देना आसान होगा। उनकी इस रणनीति को बिहार के भाजपा नेतृत्व समझ गये हैं। इसीलिए अब पार्टी के नेता और कार्यकर्ता गांव-गांव घूमकर जंगलराज में अपने परिजनों को खोने वालों की तलाश कर रहे हैं।
वैसे भी पार्टी के अखिल भारतीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार की विभिन्न जनसभाओं में दावा किया है कि मतदाताओं को 'विनाश' और 'विकास' के बीच एक को चुनना होगा। शाह-नड्डा इसी गणित के तहत महागठबंधन पर 'जंगलराज' और 'विनाश' का तथा एनडीए के पक्ष में डबल इंजन सरकार के हाथों 'विकास' का लेबल लगा रहे हैं।
इधर विपक्षियों में कुछ दरार भी है। इसी वजह से 11 सीटों पर राजद- कांग्रेस और वामपंथी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। विपक्षी शिविर इसे 'मित्रतापूर्ण लड़ाई' कह रहा है लेकिन हकीकत कुछ और है। सूत्रों की खबर है कि दिल्ली के नेताओं ने बिहार-भाजपा नेतृत्व को उन 11 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य दिया है। दिल्ली नेतृत्व ने विपक्षियों की गुटबाजी का फायदा उठाकर प्रदेश भाजपा को निर्देश दिया है कि इन सीटों पर उन्हें 'ऑलआउट' करने की रणनीति बनायें ।
हालांकि विपक्षियों का दावा है कि इन सभी रणनीतियों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है। उनका पलटवार है कि एनडीए तो अभी तक 'सीएम-फेस' को लेकर ही स्थिर निर्णय पर नहीं पहुंच सका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे नीतीश कुमार को जितना आगे रखें उससे पहले ही अमित शाह के बयान से तालमेल बिगड़ चुका है !