अगर एनडीए आगामी विधानसभा चुनाव जीतता है तो क्या नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयानों ने अभी से अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है। कुछ दिनों पहले एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में शाह ने दावा किया था कि अगर बिहार एनडीए गठबंधन जीतता है तो विधायक खुद तय करेंगे कि उनका नेता कौन होगा।
इसके बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य को लेकर बड़े सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में बिहार की राजनीति से जुड़े राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग दावा कर रहा है कि जेडीयू द्वारा लड़ी गई 101 सीटों में से 71 सीटों के नतीजे मुख्यमंत्री नीतीश के भाग्य का फैसला कर सकते हैं।
इन 71 सीटों पर जेडीयू के खिलाफ आरजेडी और लेफ्ट का सीधा मुकाबला है। इनमें से आरजेडी 59 सीटों पर जबकि लेफ्ट 12 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2020 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी ने इन 71 सीटों में से केवल 23 सीटें जीती थीं।
हालांकि महागठबंधन भी सहज नहीं है। राजद और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर मतभेद के चलते दोनों दलों ने कम से कम चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। सोमवार को राजद ने 143 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की।
कांग्रेस ने भी अपने कुछ उम्मीदवारों के नामों की घोषणा पहले ही कर दी थी। चार सीटों पर 'दोस्ताना लड़ाई' होती दिख रही है। एनडीए के सहयोगी चिराग पासवान उनका मजाक उड़ाने से नहीं चूके। चिराग ने कहा दोस्ताना लड़ाई का कोई मतलब ही नहीं होता। यह विपक्षी गठबंधन की हालत साफ दिखाता है।
चिराग खुद भी एनडीए गठबंधन से बहुत सहज नहीं हैं।दरअसल एनडीए खेमे का शीर्ष नेतृत्व इस बात को लेकर चिंतित है कि आखिरकार वह क्या करेंगे।इस बीच शाह के बयान नीतीश को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर रहे हैं। इस संदर्भ में बिहार के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सत्य भूषण सिंह दावा करते हैं कि बिहार की राजनीति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि राजद और जदयू हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर सीधा चुनाव लड़ना चाहते हैं।इस बार दोनों दल 59 सीटों पर आमने-सामने हैं।वामदल उनके साथ हैं।
हमें लगता है कि 71 सीटों के लिए यह कड़ा मुकाबला नीतीश कुमार के भाग्य का फैसला कर सकता है। दो दशक से भी ज्यादा समय से बिहार की गद्दी पर बैठे नीतीश के खिलाफ चल रही संस्थागत विरोध की हवा नीतीश और एनडीए गठबंधन के काम को और मुश्किल बना रही है।
अपने राजनीतिक जीवन के सबसे अहम मोड़ पर खड़े नीतीश कुमार ने कई बार पाला बदलकर पूरे देश को चौंका दिया है। यही वजह है कि कई लोग उनका मजाक उड़ाते हैं और उन्हें 'पलटू राम' कहते हैं।
अगर नीतीश को लगता है कि बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद उनके लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना लगभग नामुमकिन होता जा रहा है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वे अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने के लिए तेजस्वी यादव का हाथ नहीं थामेंगे—यह बात भाजपा के केंद्रीय नेता अच्छी तरह जानते हैं। यहीं से सस्पेंस बन रहा है! आखिर में नीतीश कुमार क्या करेंगे?
इस बीच चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास गुट) के सामने नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। लोजपा को 29 सीटें दी गई हैं। जीतन राम मांझी की 'हम' और उपेंद्र कुशवाहा की 'आरएलपी' ने इस पर सवाल उठाए हैं।
उनका सवाल यह है कि लोजपा की 29 सीटों में से पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए को 26 सीटों का नुकसान हुआ था। इन 29 सीटों में से 13 सीटें एनडीए ने पिछले 15 सालों में नहीं जीती हैं। गठबंधन सूत्रों के अनुसार इस विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के बाद मांझी और कुशवाहा ने चिराग के बारे में सोचना बंद कर दिया है और 6-6 सीटें जीतने पर ध्यान केंद्रित किया है।