जंगलराज से जेल तक: क्या लालू अभी भी बिहार की सबसे बड़ी ताकत हैं?

तेजस्वी-तेज प्रताप की मुलाकात और लालू की सियासी छाया

By श्वेता सिंह

Nov 07, 2025 22:18 IST

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान के बीच, एयरपोर्ट पर तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की अनायास मुलाकात ने राजनीतिक हलकों का ध्यान खींचा। दोनों भाइयों ने बेमन से हाथ मिलाया और आधे-अधूरे मुस्कान के साथ अलग हो गए। यह केवल दो भाइयों की झलक नहीं थी बल्कि लालू प्रसाद यादव की राजनीति पर अब भी कायम छाया की याद दिला रही थी। टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक, लालू यादव की राजनीतिक यात्रा संघर्ष, शक्ति और विवाद का मिश्रण रही है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों से लंबे समय से घर में रह रहे लालू, बिहार की राजनीति में RJD के लिए निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।

छात्र राजनीति से केंद्रीय मंत्री तक: लालू की लंबी राजनीतिक यात्रा

लालू यादव का जन्म 1948 में बिहार के गोपालगंज जिले में हुआ। पटना विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजनीति और सामाजिक कार्यों में कदम रखा। छात्र संघ के महासचिव और अध्यक्ष के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले लालू ने 1974 में जयप्रकाश नारायण आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। 1977 में मात्र 29 साल की उम्र में चंपारण से लोकसभा चुनाव जीतकर वह सबसे कम उम्र के सांसद बने। 1990 से 1997 तक उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की बागडोर संभाली और 2004 से 2009 तक केंद्रीय रेल मंत्री रहे।

जंगलराज का दौर: समर्थकों और आलोचकों की नजर

लालू का कार्यकाल पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण के दौर के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने यादव और मुस्लिम वोट बैंक के बीच मजबूत गठबंधन बनाकर RJD को बिहार की राजनीति में लंबे समय तक प्रभावशाली बनाया। लेकिन उनके शासनकाल को आलोचकों ने "जंगलराज" कहा, जिसमें कानून व्यवस्था की कमजोरी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता के मामले सामने आए। लालू ने हमेशा कहा कि उनका शासन गरीबों और कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए था, जबकि विपक्ष ने आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य को अराजकता और राजनीतिक अपराध की स्थिति में डाला।

चारा घोटाला और स्वास्थ्य समस्याओं ने बढ़ाई दूरी

लालू यादव का पतन 1997 में शुरू हुआ, जब चारा घोटाले में आरोप लगे और उन्हें दोषी ठहराया गया। इसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की बागडोर सौंप दी गई। बाद में कई न्यायिक प्रक्रियाओं और दोषसिद्धियों के कारण लालू सक्रिय राजनीति से दूर रहे। उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने उन्हें सार्वजनिक दृष्टि से लगभग गायब कर दिया। हार्ट की सर्जरी और किडनी प्रत्यारोपण के बाद वह लंबे समय तक चुनावी सभाओं में शामिल नहीं हुए।

फुलवारी शरीफ और दानापुर में वोटरों से अभिवादन

हाल ही में लालू यादव ने फुलवारी शरीफ और दानापुर का दौरा किया, लेकिन सार्वजनिक सभा में शामिल होने की बजाय वाहन से जनता को अभिवादन किया। इस दौरान यह स्पष्ट हुआ कि RJD की राजनीति में उनका प्रभाव अभी भी बरकरार है। उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने चुनाव में पार्टी का नेतृत्व संभाला और 'जंगलराज' के आरोपों का मुकाबला करते हुए RJD को सक्रिय करने की रणनीति बनाई।

राजनीतिक भविष्य: विरासत या नई राह?

हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या लालू की लोकप्रियता RJD की जीत में बदल सकती है या नहीं। तेजस्वी की चुनावी गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि पार्टी पुराने वोट बैंक को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन असली परीक्षा बिहार के मतदाता 14 नवंबर को देंगे।

जेल और स्वास्थ्य समस्याओं ने उन्हें सक्रिय राजनीति से दूर रखा है, लेकिन उनका नाम, विरासत और परिवार की राजनीति RJD के लिए निर्णायक बनी हुई है। यह चुनाव तय करेगा कि बिहार के मतदाता लालू की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं या नए राजनीतिक विकल्पों की ओर झुकाव रखते हैं।

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