बिहार की राजनीति में एक बार फिर से महायुद्ध की आहट सुनाई देने लगी है। विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और इस बार मुकाबला सिर्फ सत्ता पाने का नहीं बल्कि तेजस्वी यादव के राजनीतिक अस्तित्व की परीक्षा भी है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 राज्य की राजनीति के लिए निर्णायक मोड़ साबित होने वाला है। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव और एनडीए गठबंधन के बीच है लेकिन इस बार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं बल्कि तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य और अस्तित्व की लड़ाई बन गया है।
तेजस्वी यादव का राजनीतिक करियर
बिहार चुनाव में सीएम फेस के लिए चुने गये तेजस्वी यादव इन दिनों सुर्खियों में हैं। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के पुत्र हैं तेजस्वी । 2015 में डिप्टी सीएम बनकर राजनीति में बहुत तेजी के साथ अपनी पहचान बनाई थी। वह 2020 और 2022 में भी उपमुख्यमंत्री रहे और नीतीश कैबिनेट में उन्होंने कई प्रमुख विभागों की जिम्मेदारी संभाली।
क्रिकेट के मैदान से शुरू हुआ उनका सफर बहुत ही दिलचस्प तरीके से राजनीति के मैदान पर जाकर रुका। यह कहना गलत नहीं होगा कि पिच बदली है पर बैटिंग का जिम्मा उन्हीं पर है। अब वे महागठबंधन के घोषित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं और पूरा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को महागठबंधन ने मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है लेकिन उनकी राह में कई चुनौतियाँ हैं। नीतीश कुमार का अनुभव, प्रशांत किशोर की रणनीति और विपक्ष के हमले उन्हें हर कदम पर परखेंगे।
लालू की विरासत, लेकिन अब मैदान बेटे के नाम
2020 में जब तेजस्वी यादव ने अकेले मोर्चा संभाला था उस समय लालू यादव जेल में थे। इसके बावजूद RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सत्ता के समीकरण ने उन्हें विपक्ष में बैठा दिया। अब तस्वीर बदल चुकी है लालू प्रसाद यादव फिर से मैदान में सक्रिय हैं और अपने अनुभव, जनाधार और संगठन की पकड़ से बेटे के पीछे पूरी ताकत झोंक रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि लालू का राजनीति में फिर से दिलचस्पी लेना और नीतीश की थकान तेजस्वी के लिए बड़ा मौका साबित हो सकती है। अगर वे इस बार यह अवसर नहीं भुना पाए तो सीएम बनने का सपना शायद जल्द पूरा नहीं हो पायेगा।
जनता का मूड: सर्वे में सबसे लोकप्रिय चेहरा तेजस्वी
पिछले दिनों इंडिया टुडे–सी वोटर के एक सर्वे के अनुसार बिहार के लोगों ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बताया है। सर्वे में 36.9% लोगों ने तेजस्वी को अपनी पहली पसंद बताया जबकि नीतीश कुमार को 18.4%, प्रशांत किशोर को 16.4%, चिराग पासवान को 10.6% और बीजेपी के सम्राट चौधरी को 6.6% लोगों ने चुना। विश्लेषकों का कहना है कि पिछले तीन सर्वे में भी तेजस्वी की लोकप्रियता स्थिर बनी हुई है। यह संकेत है कि वे जनता के बीच मजबूत विकल्प के रूप में उभर चुके हैं।
बड़े-बड़े वादे, विपक्ष के निशाने पर तेजस्वी
इससे पहले तेजस्वी यादव ने चुनावी घोषणा करते हुए कहा कि उनकी सरकार बनने पर हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। बिहार में लगभग 3.5 करोड़ परिवार हैं यानी यह वादा 3.5 करोड़ नौकरियों का है। उनके इस बयान के बाद विपक्ष ने उन पर जमकर निशाना साधा। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब बिहार में कुल 26 लाख सरकारी नौकरियां हैं तो 3.5 करोड़ नौकरियां कहाँ से आएंगी?
भाजपा नेताओं ने भी इसे चुनावी जुमला बताते हुए उनको घेरा। हालांकि तेजस्वी का जवाब सधा हुआ था कि 17 महीने की उपमुख्यमंत्री अवधि में हमने 5 लाख नौकरियां दीं। उन्होंने दावा किया कि वो जो कहते हैं वो करके दिखाते हैं।
मुख्य चुनावी मुद्दे: रोजगार, पलायन और भ्रष्टाचार
बिहार की जनता के लिए इस बार के चुनाव में रोजगार, पलायन और भ्रष्टाचार सबसे अहम मुद्दे हैं। महागठबंधन इन तीनों पर फोकस कर रहा है वहीं नीतीश–भाजपा गठबंधन स्थिरता और सुशासन के नारे के साथ मैदान में है। तेजस्वी ने हाल ही में कहा कि डबल इंजन की सरकार में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी चरम पर है। रोजगार के नाम पर घूस ली जा रही है। हमारी सरकार बनेगी तो हर युवक को सम्मानजनक नौकरी और सुरक्षित माहौल मिलेगा।
महिलाओं को साधने के लिए भी महागठबंधन ने अलग रणनीति तैयार की है। बिहार में महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं इसलिए तेजस्वी उनके लिए विशेष योजनाएं घोषित करने की तैयारी में हैं।
राघोपुर: तेजस्वी का किला और परीक्षा की सीट
लालू परिवार की परंपरागत सीट राघोपुर इस बार भी चर्चा में है। यहां यादव (30%), राजपूत (21%), पासवान (12%) और रविदास (8%) प्रमुख मतदाता हैं। तेजस्वी 2015 और 2020 दोनों चुनावों में यहां से जीते हैं। 2025 में भी वे यहीं से मैदान में उतरेंगे। यह सीट अब सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि लालू परिवार की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है।
प्रशांत किशोर का तीसरा मोर्चा और नई चुनौती
जन सुराज यात्रा के जरिए प्रशांत किशोर बिहार में तीसरा विकल्प बनने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि नीतीश और तेजस्वी दोनों बिहार में असली बदलाव नहीं ला सकते। हालांकि संगठनात्मक रूप से उनकी पार्टी कमजोर है लेकिन युवा वर्ग और पढ़े-लिखे मतदाताओं में उनकी पकड़ बढ़ रही है। यही कारण है कि RJD और NDA दोनों वोट विभाजन को लेकर सतर्क हैं।
महागठबंधन का मास्टर स्ट्रोक या जोखिम भरा दांव?
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री और मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित कर बड़ा राजनीतिक संकेत दिया है। इससे यादव, मुस्लिम और निषाद (मछुआरा) समुदायों के वोटों का समीकरण मजबूत करने की कोशिश की जा रही है।
कांग्रेस भी महागठबंधन का हिस्सा है लेकिन 2020 के चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा था — 70 सीटों में से केवल 19 ही जीती थी। इसलिए इस बार तेजस्वी को कांग्रेस के सहयोग से ज्यादा अपने दम पर ही चुनावी नैरेटिव बनाना होगा।