बिहार की राजनीति का दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से गहरा नाता है। जेएनयू छात्रसंघ ने एक दशक पहले बिहार विधानसभा चुनावों से नाता जोड़ लिया था। यह सिलसिला आज भी जारी है। बिहार विधानसभा या लोकसभा चुनाव होते ही जेएनयू के अंदर हलचल शुरू हो जाती है।
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार विश्वविद्यालय छात्रसंघ के दो पूर्व अध्यक्ष चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस के टिकट पर वरिष्ठ नेता शकील अहमद खान चुनाव लड़ रहे हैं। दो बार विधायक रह चुके शकील अहमद खान अपने गृह क्षेत्र कदवा से चुनाव लड़ रहे हैं।
वह 1992-93 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। हालांकि उस समय वह एसएफआई के सदस्य थे। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में कदवा से दो बार जीते। कांग्रेस का दावा है कि बिहार विधानसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता शकील इस बार भी कदवा सीट पर सबसे पसंदीदा उम्मीदवार हैं।
कांग्रेस के शकील अहमद खान की तरह जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष धनंजय भी इंडिया गठबंधन की सहयोगी पार्टी भाकपा (माले) के लिए बिहार से उम्मीदवार बने हैं। 2023-24 में विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे धनंजय बिहार की भोरे सीट से उम्मीदवार हैं।
2020 में इस सीट पर भाकपा (माले) उम्मीदवार को सिर्फ 462 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। धनंजय पहली बार चुनाव लड़ेंगे। इंडिया गठबंधन के शीर्ष नेताओं के एक वर्ग का दावा है कि धनंजय पहली बार चुनाव लड़कर यह सीट जीत सकते हैं हालांकि उनके पास शकील अहमद खान जैसा राजनीतिक अनुभव नहीं है।
धनंजय से पहले जेएनयू छात्र संघ के तीन पूर्व अध्यक्ष चुनाव लड़ चुके हैं। ये हैं शकील अहमद खान, कन्हैया कुमार और आइशी घोष। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि 2019 और 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार इस बार बिहार चुनाव में शकील और धनंजय दोनों के लिए प्रचार करेंगे। विश्वविद्यालय छात्र संघ के सूत्रों के अनुसार, विश्वविद्यालय के वर्तमान छात्रों का एक वर्ग भी धनंजय के प्रचार में शामिल होगा।