नयी दिल्ली। "हम तोरासे छोट बानी, ना तु हमरा से बड़ बाड़" - बिहार में भोजपुरी भाषा में यह बात बहुत प्रचलित है। इसका अर्थ है, "न मैं तुमसे छोटा हूं, न तुम मुझसे बड़े हो।" बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए खेमे में सीट बंटवारे में इसी सिद्धांत पर चलते हुए चिराग पासवान ने सबसे अधिक सीटें बटोर लीं। राजनीतिक बिरादरी का एक तबका यही मानता है।
एनडीए गठबंधन के सीट बंटवारे में भाजपा और जदयू चिराग की पार्टी लोजपा को 29 सीटें देने के लिए मजबूर हुई हैं। इस फैसले से एनडीए खेमे में तीखी असहमति पैदा हो गई है। एनडीए खेमे में यह सवाल उठ रहा है कि अगर बातचीत के जरिए 29 सीटें हासिल करने वाले चिराग को बिहार चुनाव में बड़ी कामयाबी मिलती है, तो क्या चुनाव के बाद वह एनडीए पर फिर से दबाव नहीं डालेंगे?
बिहार चुनाव में दिन-रात मेहनत कर रहे भाजपा के एक शीर्ष सांसद ने माना कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले चिराग आगे क्या करेंगे इसे लेकर अभी भी चिंताएं हैं। उन्होंने कहा , 'अगर किसी राजनेता में महत्वाकांक्षा नहीं है तो वह असली राजनेता नहीं है। हालांकि अगर महत्वाकांक्षा हद से ज्यादा बढ़ जाए तो यह गठबंधन की राजनीति के लिए खतरनाक है।'
भाजपा के शीर्ष नेताओं के एक बड़े वर्ग के अनुसार पिछले लोकसभा चुनावों में चिराग की पार्टी के प्रदर्शन के आधार पर लोजपा को 20 सीटें मिलनी चाहिए थीं। 2024 के लोकसभा चुनावों में चिराग की पार्टी ने पांच सीटें जीतीं। लोजपा का तर्क है कि बिहार में एक लोकसभा सीट में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस हिसाब से चिराग ने 30 विधानसभा सीटों की मांग की है। इसके अलावा चिराग ने अपने चुनाव प्रचार में लगातार नीतीश कुमार और जदयू पर निशाना साधा है।
इससे जद(यू) और कुछ हद तक भाजपा के शीर्ष नेताओं पर दबाव बढ़ गया है। कड़ी सौदेबाजी के परिणामस्वरूप चिराग को 29 विधानसभा सीटें मिलीं। एनडीए खेमे में उनके प्रतिद्वंद्वी जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को छह-छह सीटें मिलीं। अब देखना यह है कि चुनाव नतीजे आने के बाद चिराग क्या करते हैं।