छठ महापर्व के समापन के साथ ही बिहार की सियासत अब अपने निर्णायक दौर में पहुंचने को तैयार है। अब तक प्रचार मैदान में प्रमुख रूप से एनडीए और महागठबंधन के स्थानीय नेता ही सक्रिय थे लेकिन अब कांग्रेस के शीर्ष चेहरे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे मैदान में उतरने जा रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व के मैदान में उतरने से महागठबंधन के प्रचार अभियान को नई धार मिलने की संभावना जताई जा रही है।
तेजस्वी के साथ राहुल की संयुक्त रैली से बदलेगा समीकरण
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी 29 अक्टूबर से बिहार चुनाव प्रचार की शुरुआत करेंगे। वे इस दिन मुजफ्फरपुर के सकरा और दरभंगा में दो बड़ी जनसभाओं को संबोधित करेंगे। मंच पर उनके साथ तेजस्वी यादव मौजूद रहेंगे जो महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं। यह पहली बार होगा जब इस चुनाव में राहुल और तेजस्वी एक साथ मंच साझा करेंगे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राहुल-तेजस्वी की साझा उपस्थिति महागठबंधन की एकता का संदेश देने और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के उद्देश्य से की जा रही है।
प्रियंका गांधी का फोकस महिलाओं और युवाओं पर
राहुल से एक दिन पहले प्रियंका गांधी वाड्रा आज मंगलवार 28 अक्टूबर को बेगूसराय के बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में सभा करेंगी। छठ पर्व के तुरंत बाद उनका यह पहला कार्यक्रम होगा। प्रियंका गांधी की चुनावी सभाओं में आमतौर पर महिलाओं, युवा मतदाताओं और रोजगार के मुद्दों पर खास जोर रहता है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि उनकी सभाएं कांग्रेस के शहरी और महिला वोट बैंक को सक्रिय कर सकती हैं जो पिछली बार काफी हद तक निष्क्रिय रहा था।
खड़गे का रोल संगठन संभालने का
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी बिहार में प्रचार अभियान का नेतृत्व करने पहुंचेंगे। वे संगठन के स्तर पर समन्वय बैठकों और रणनीतिक सभाओं पर ध्यान देंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि खड़गे की भूमिका “संगठन और रणनीति” दोनों को मजबूती देने की होगी ताकि राहुल और प्रियंका के कार्यक्रमों का असर जमीनी स्तर पर दिखे।
महागठबंधन का घोषणापत्र तैयार, 10 लाख नौकरियों पर फोकस
महागठबंधन मंगलवार 28 अक्टूबर को आज पटना में अपना घोषणापत्र जारी करेगा। इस घोषणापत्र का सबसे बड़ा वादा है सरकार बनने पर पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख स्थायी सरकारी नौकरियां देने का संकल्प। यह एक तरह से तेजस्वी यादव की पुरानी चुनावी नीति की पुनरावृत्ति है। घोषणापत्र में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और किसान कल्याण से जुड़े कई बिंदु शामिल किए गए हैं। हालांकि राहुल गांधी इस कार्यक्रम में मौजूद नहीं रहेंगे लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इसमें हिस्सा लेंगे।
राहुल का ‘प्रवासी मुद्दा’ बनेगा बड़ा हथियार
राहुल गांधी ने हाल ही में बिहार जाने वाली ट्रेनों में भीड़ और प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए पूछा था कि छठ पर्व के लिए घोषित 12,000 विशेष ट्रेनों का क्या हुआ। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी इस मुद्दे को चुनावी रैलियों में भी जोर-शोर से उठाएंगे ताकि बिहार के प्रवासी परिवारों में सरकार विरोधी नाराजगी को महागठबंधन के पक्ष में मोड़ा जा सके।
एनडीए बनाम महागठबंधन: आखिरी दौर में आमने-सामने टक्कर
जहां एक ओर एनडीए के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले से ही चुनावी सभाओं में व्यस्त हैं वहीं अब महागठबंधन भी अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, कांग्रेस नेतृत्व के मैदान में उतरने से महागठबंधन का प्रचार “तेजस्वी बनाम नीतीश” से आगे बढ़कर “महागठबंधन बनाम एनडीए” की व्यापक लड़ाई में तब्दील हो सकता है।
छठ के बाद सीमित समय में तेज होगा प्रचार युद्ध
बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को होने वाले हैं। पहले चरण के लिए प्रचार 4 नवंबर की शाम को थम जाएगा। इस लिहाज से देखा जाए तो महागठबंधन के पास अपने शीर्ष नेताओं के साथ प्रचार के लिए सिर्फ एक सप्ताह का प्रभावी समय बचा है। इस दौरान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मौजूदगी से न केवल महागठबंधन को मीडिया स्पेस मिलेगा बल्कि एनडीए के तेज प्रचार अभियान को संतुलित करने का भी मौका मिलेगा।
कांग्रेस की सक्रियता से बढ़ेगी महागठबंधन की उम्मीद
बिहार में कांग्रेस लंबे समय से संगठनात्मक निष्क्रियता से जूझ रही थी। अब राहुल, प्रियंका और खड़गे की एंट्री से कार्यकर्ताओं में नया उत्साह लौटने की उम्मीद है। हालांकि कांटे की टक्कर होगी क्योंकि एनडीए का संगठन मजबूत है। एनडीए के पास मोदी और नीतीश की जोड़ी है जिनका तालमेल अब भी सही है। ऐसे में आने वाला सप्ताह तय करेगा कि क्या कांग्रेस की यह देर से शुरू हुई आक्रामकता महागठबंधन के पक्ष में माहौल बना पाएगी या नहीं।