बिहार के चुनाव में दिग्गज नेताओं का ‘पावर शो’, एनडीए बनाम विपक्ष, सियासी संग्राम का नया दौर शुरू

बिहार की राजनीति में चुनावी सभाओं में नेताओं की बयानबाजी और धुआंधार प्रचार

By श्वेता सिंह

Oct 30, 2025 02:43 IST

बिहार की सियासत ने बुधवार को एक नए मोड़ पर करवट ली। यह दिन केवल बयानबाजी का नहीं बल्कि चुनावी रणनीति के भविष्य का संकेतक साबित हुआ। एक ओर एनडीए के तीन दिग्गज-अमित शाह, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष पर संयुक्त मोर्चा खोल दिया वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी ने बिहार से सत्ता पर सीधा प्रहार किया।

बयान तीखे थे, आरोप गंभीर और चुनावी संदेश स्पष्ट था। बिहार की जंग अब सीधी लड़ाई में बदल चुकी है। एनडीए के ‘पावर शो’ में यह साफ झलक रहा था कि एकजुटता और राष्ट्रवाद पर फोकस है। एनडीए नेताओं के भाषणों में एक समान लकीर दिखाई दी। हर नेता तकरीबन एक ही लय में ‘राष्ट्रवाद बनाम परिवारवाद’, ‘विकास बनाम जंगलराज’, ‘नीतीश की ईमानदारी बनाम विपक्ष का भ्रष्टाचार’ जैसे मुद्दों के इर्द गिर्द ही विपक्ष पर हमले बोलता रहा।

राजनाथ सिंह: ‘नीतीश की ईमानदारी’ बनाम ‘राजद का भ्रष्टाचार’

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में विकास के आंकड़ों और आर्थिक सहायता के तुलनात्मक विश्लेषण से विपक्ष को घेरा। राजनाथ सिंह का फोकस साफ था। उन्होंने बड़े तरीके से मोदी सरकार की आर्थिक उपलब्धियों को जमीन पर उतारा। उन्होंने नीतीश कुमार को "बिहार की सबसे बड़ी संपत्ति" कहकर एनडीए के अंदर के मतभेदों पर भी मरहम लगाने का प्रयास किया जिससे गठबंधन की एकता का संदेश जाए।

योगी आदित्यनाथ: ‘कानून-व्यवस्था’ का ब्रांड मेसेज

सीवान की रैली में योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्रेडमार्क अंदाज़ में “जंगलराज बनाम बुलडोजर राज” की लाइन दोहराई। उनका भाषण मुख्य रूप से युवा और शहरी मतदाताओं को लक्षित करता था। उन्होंने अपराध और अराजकता के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का संदेश दिया और बताया कि बिहार की डबल इंजन सरकार ‘भयमुक्त शासन’ की दिशा में काम कर रही है।

अमित शाह: ‘ठग गठबंधन’ बनाम एनडीए की प्रतिबद्धता

दरभंगा की रैली में अमित शाह का भाषण महज विरोधी आलोचना नहीं बल्कि वोटर टारगेटिंग रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने महागठबंधन को “ठग गठबंधन” कहकर राजनीतिक समीकरणों को व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से जोड़ने की कोशिश की। मिथिला की अस्मिता, मैथिली भाषा को सम्मान और सीता मंदिर निर्माण का उल्लेख करके शाह ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और स्थानीय गौरव को एक साथ जोड़ा। यह रणनीति उत्तर बिहार के मतदाताओं में भावनात्मक जुड़ाव पैदा करने के लिए कारगर मानी जाती है।

राहुल गांधी का पलटवार: ‘रोज़गार बनाम रिमोट कंट्रोल सरकार’

मुजफ्फरपुर की रैली में राहुल गांधी ने एनडीए पर ‘सामाजिक न्याय’ और ‘जनकल्याण’ के मुद्दों पर हमला किया। उनका संदेश दो स्तरों पर था नीतीश कुमार की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाकर भाजपा के नियंत्रण का मुद्दा उठाना। युवा, बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता को केंद्र में रखकर जनता की भावनाओं को जोड़ना। राहुल का यह बयान कि “मोदी वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं” चुनावी रैलियों में उनकी आक्रामक रणनीति का हिस्सा था। इससे साफ है कि कांग्रेस अब रक्षात्मक राजनीति छोड़कर हमलावर मोड में आ चुकी है।

बिहार का राजनीतिक समीकरण किस ओर?

एनडीए में आत्मविश्वा झलक रहा है। एनडीए नेतृत्व यह संदेश देना चाहता है कि केंद्र और राज्य की सरकारें विकास, सुरक्षा और ईमानदारी के एजेंडे पर एकमत हैं। शाह, राजनाथ और योगी के संयुक्त हमले से यह साफ है कि भाजपा बिहार को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य मानती है।

विपक्ष एकदम से पलटवार के मूड में दिखी। राहुल गांधी ने मोदी-नीतीश गठजोड़ को ‘रिमोट कंट्रोल सरकार’ बताकर बिहार के राजनीतिक स्वाभिमान पर चोट करने की कोशिश की। उनका फोकस सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता पर है जो पारंपरिक राजद वोट बैंक को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है।

मतदाता भी अब जागरूक हो चुकी है। जनता अब मुद्दों की तुलना कर रही है — विकास बनाम रोजगार, सुरक्षा बनाम स्वतंत्रता, और केंद्र बनाम राज्य की भूमिका। यह चुनाव केवल दलों की जंग नहीं बल्कि राजनीतिक नैरेटिव्स की टक्कर बन गया है।

सियासी तापमान बढ़ा, मतदाता की परीक्षा बाकी

‘पावर शो’ ने यह साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति अब पूरी तरह चुनावी मोड में है। एनडीए राष्ट्रवाद और विकास की राह पर है तो विपक्ष सामाजिक न्याय और स्वाभिमान की बात कर रहा है। अगले कुछ हफ्तों में तय होगा कि बिहार की जनता डबल इंजन सरकार के साथ रहती है या नए सामाजिक समीकरणों को मौका देती है।

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