बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण नजदीक है। एक बार फिर राज्य की राजनीति में अपराध और पूंजी का गहरा गठजोड़ उजागर हो गया है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और बिहार इलेक्शन वॉच की ताजा रिपोर्ट ने जो तस्वीर सामने रखी है वह लोकतंत्र की सेहत पर गंभीर सवाल खड़े करती है। रिपोर्ट के मुताबिक, पहले चरण में नामांकन करने वाले 1,314 उम्मीदवारों में से 1,303 उम्मीदवारों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया गया। इनमें से 423 उम्मीदवारों (लगभग 32 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है। वहीं 354 उम्मीदवारों (27 प्रतिशत) पर गंभीर आपराधिक आरोप लगे हैं।
नेताओं पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज
रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों में से 33 पर हत्या और 86 पर हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में 42 उम्मीदवार शामिल हैं जबकि दो उम्मीदवारों के खिलाफ बलात्कार के आरोप हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि बिहार की राजनीति में आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों को टिकट देने से किसी भी पार्टी ने परहेज नहीं किया है।
सबसे ज्यादा दागी उम्मीदवार राजद के
पहले चरण में जिन प्रमुख दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं उनमें सबसे अधिक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार राष्ट्रीय जनता दल के हैं। इससे स्पष्ट है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही खेमों ने “विजय की संभावना” को नैतिकता पर प्राथमिकता दी है।
पार्टीवार स्थिति इस प्रकार है:
राजद (RJD): 70 में से 53 उम्मीदवार (76%)
भाजपा (BJP): 48 में से 31 उम्मीदवार (65%)
कांग्रेस: 23 में से 15 उम्मीदवार (65%)
जदयू (JDU): 57 में से 22 उम्मीदवार (39%)
जनसुराज पार्टी: 114 में से 50 उम्मीदवार (44%)
बसपा (BSP): 89 में से 18 उम्मीदवार (20%)
आप (AAP): 44 में से 12 उम्मीदवार (27%)
CPI: 3 में से 3 उम्मीदवार (100%)
CPI (ML): 14 में से 13 उम्मीदवार (93%)
करोड़पतियों की भरमार, औसत संपत्ति 3.26 करोड़ रुपये
रिपोर्ट का एक और पहलू यह है कि इस बार चुनाव मैदान में धनकुबेर उम्मीदवारों की भी भरमार है। पहले चरण में 519 उम्मीदवार करोड़पति हैं जो कुल प्रत्याशियों का लगभग 40 प्रतिशत हैं। इनकी औसत घोषित संपत्ति 3.26 करोड़ रुपये आंकी गई है। सबसे अमीर उम्मीदवार कुमार प्रणय हैं जिनकी संपत्ति 170 करोड़ रुपये बताई गई है। वहीं मोकामा के बाहुबली नेता अनंत सिंह 100 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ तीसरे स्थान पर हैं। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि कई उम्मीदवारों की संपत्ति में पिछले चुनाव की तुलना में कई गुना वृद्धि हुई है जो राजनीति में आर्थिक शक्ति की बढ़ती भूमिका की ओर इशारा करता है।
कितने पढ़े लिखे हैं उम्मीदवार,कितनी हैं महिला उम्मीदवार
उम्मीदवारों की शैक्षणिक स्थिति पर नजर डालें तो 519 उम्मीदवार (40 प्रतिशत) की शिक्षा कक्षा 5 से 12वीं तक सीमित है जबकि 651 उम्मीदवार (50 प्रतिशत) स्नातक या उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।बिहार इलेक्शन वॉच के मुताबिक पहले चरण में 1303 उम्मीदवारों में 121 महिला उम्मीदवार हैं यानी सिर्फ 9.28 फीसदी। बड़े दलों की बात करें तो RJD ने सबसे ज्यादा 23 टिकट महिलाओं को दिए हैं। बीजेपी और जेडीयू ने 13-13 महिला प्रत्याशी दिए हैं। लोजपा चिराग पासवान और कांग्रेस ने 5 महिलाओं को टिकट दिया है।
छोटे दल भी पीछे नहीं
बड़े दलों के साथ-साथ छोटे और क्षेत्रीय दलों ने भी “दागियों” पर भरोसा जताया है। वाम दलों की स्थिति भी हैरान करने वाली है। CPI के तीनों उम्मीदवार दागी हैं जबकि CPI(ML) के 14 में से 13 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में अपराध और राजनीति का यह पुराना रिश्ता अब भी अटूट है। मतदाता स्थानीय प्रभाव और जातीय समीकरणों को देखते हुए कई बार इन उम्मीदवारों को विजयी भी बना देते हैं जिससे राजनीतिक दलों को सुधार की कोई मजबूरी नहीं दिखती।
चुनावी समीकरण और तारीखें
बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं। पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को। नतीजों की घोषणा 14 नवंबर को की जाएगी। पहले चरण में कुल 94 सीटों पर मतदान होना है। राजनीतिक माहौल गर्म है लेकिन अपराध, कानून-व्यवस्था और “दागी उम्मीदवारों” पर कोई भी दल खुलकर चर्चा नहीं कर रहा। सभी पार्टियां एक-दूसरे पर “जंगलराज” या “भ्रष्टाचार” का आरोप लगाती हैं लेकिन टिकट वितरण में सबका रवैया एक जैसा दिखाई देता है।
लोकतंत्र पर गहराता साया
ADR की यह रिपोर्ट बिहार के लोकतंत्र की उस जमीनी सच्चाई को उजागर करती है जहां अपराध और पूंजी राजनीति की मुख्य ताकत बन चुके हैं। हर तीसरा उम्मीदवार आपराधिक रिकॉर्ड वाला है और हर दूसरा करोड़पति। ऐसे में यह सवाल फिर उभरता है कि क्या बिहार की जनता इस बार नई राजनीति को मौका देगी या फिर वही पुराने समीकरण सत्ता के गलियारों में गूंजेंगे?