बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के पहले सियासी हलचल तेज हो गयी है। नेताओं की जुबान पर कोई लगाम नहीं रह गया है। हर खेमा दूसरे खेमे पर सीधे हमले कर रहा है। आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। इसी बीच चुनावी माहौल ने एक नया मोड़ ले लिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन में राजधानी पटना के कोतवाली क्षेत्र में एक बड़ा होर्डिंग लगाया गया है। इस होर्डिंग पर लिखा है- “25 से 30, फिर से नीतीश” जिसका सीधा मतलब यही है कि 2025 से 2030 तक बिहार में नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।
नीतीश कुमार ने हाल ही में राज्य को आपदा-प्रवण स्थितियों से सुरक्षित बनाने के अपने दो दशकों पुराने प्रयासों और सुधारों का उल्लेख किया। उनके संकल्प में बाढ़ और सूखा नियंत्रण, आपदा प्रबंधन विभाग और बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA) की स्थापना, राहत शिविरों और सामुदायिक रसोईघरों का निर्माण शामिल है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 2007 से बाढ़ पीड़ितों को अनुग्रह अनुदान (Ex Gratia Grant) दिया जा रहा है, जो अब ₹7,000 तक बढ़ाया गया है। यह राशि सीधे प्रभावित लोगों के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से भेजी जाती है। इसके अलावा, तटबंध निर्माण, सिंचाई परियोजनाएँ और नदी सफाई के कामों के चलते बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत मिली है।
तेजस्वी यादव पर बीजेपी सांसद का आरोप
दूसरे चरण के प्रचार के दौरान पश्चिम चंपारण में भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव पर आरोप लगाया कि वे आरक्षण विरोधी और पिछड़ा वर्ग विरोधी हैं। जायसवाल का कहना है कि लालू यादव के शासनकाल में पंचायत राज व्यवस्था में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अत्यंत पिछड़े वर्ग को आरक्षण नहीं मिला था।
जायसवाल ने यह भी आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव ने पहले भी पिछड़े वर्गों को संवैधानिक दर्जा देने पर सवाल उठाए और डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रयासों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने सभी वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया जिससे मुखिया से लेकर जिला परिषद सदस्य तक सभी को समानुपातिक प्रतिनिधित्व मिला।
आरक्षण सीमा विवाद और न्यायिक हस्तक्षेप
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार सरकार ने जातीय सर्वेक्षण के बाद आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 65% करने का निर्णय लिया था। हालांकि, पटना उच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर रखी है।
तेजस्वी यादव ने इस विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बिहार से 65 प्रतिशत आरक्षण कोटा "छीनने" का आरोप लगाया। इस बहस ने चुनावी मैदान में आरक्षण और सामाजिक न्याय के मुद्दों को गर्म कर दिया है।
धर्मेंद्र प्रधान का राहुल गांधी पर हमला: “मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए हैं”
चुनावी प्रचार के दौरान नेताओं की जुबान पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। दोनों ही गठबंधन के नेता दूसरे गुट के नेताओं पर जुबानी हमला कर रहे हैं। इसी बीच केंद्रीय मंत्री और बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ‘जेन ज़ी’ बयान पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी देश की जमीनी हकीकत से कटे हुए हैं और उनकी आलोचना केवल राजनीतिक शोभा बढ़ाने का प्रयास है।
प्रधान ने एएनआई से बातचीत में यह भी कहा कि राहुल गांधी संवैधानिक संस्थाओं और चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाकर संविधान का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने जनता से कहा कि बिहार की युवा पीढ़ी “जेन ज़ी” इस घमंड को चुनौती दे रही है और किसी की बात पर अंधविश्वास नहीं करेगी। प्रशांत किशोर ने भी राहुल गांधी की बिहार की समझ पर सवाल उठाया और कहा कि राज्य के लोग जेन ज़ी के इशारों पर नहीं चलते।
चुनावी समीकरण: दूसरे चरण की चुनौती
पहले चरण में 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ। दूसरे चरण में 11 नवंबर को 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान होगा। इनमें पूर्वी चंपारण (11), पश्चिमी चंपारण (9), सीतामढ़ी (8), मधुबनी और गया (10-10) जैसी प्रमुख सीटें शामिल हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर बिहार के ये क्षेत्र एनडीए के गढ़ माने जाते हैं लेकिन तेजस्वी यादव और महागठबंधन के मजबूत प्रचार अभियान के चलते चुनौती बढ़ गई है। आरक्षण, पिछड़ा वर्ग कल्याण और आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दे इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
चुनावी मुद्दों की जटिल परतें
बिहार चुनाव 2025 सिर्फ राजनीतिक गठबंधनों की लड़ाई नहीं है। इसमें सामाजिक न्याय, पिछड़ा वर्ग और आरक्षण नीति, आपदा प्रबंधन और विकास परियोजनाओं की उपलब्धियों और विरोधियों की आलोचनाओं का मिश्रण है।
कल मतदान से पहले बिहार में राजनीतिक बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप और प्रचार अभियान ने चुनावी परिदृश्य को और अधिक जटिल और रोमांचक बना दिया है। 14 नवंबर को घोषित होने वाले नतीजे ही तय करेंगे कि बिहार की जनता इन बहसों और विकास प्रोजेक्ट्स में किसकी बात मानेगी। चुनावी सभाओं से किये गये वादों पर जनता ने कितना भरोसा किया और किसकी पार्टी को अपना मतदान दिया।