प्रतिबंध के बावजूद दिवाली की रात हावड़ा-हुगली में बेधड़क फोड़े गये पटाखे

पर्यावरण प्रेमी स्वेच्छासेवी आयोजकों का पुलिस प्रशासन पर निष्क्रिय रहने का आरोप

By रिनिका राय चौधरी, Posted by: श्वेता सिंह

Oct 22, 2025 16:40 IST

समाचार एई समय, चुंचुड़ा और हावड़ा: काली पूजा की रात कानून और सरकारी नियमों की अनदेखी करते हुए जमकर आतिशबाजी करने के आरोप लगे हैं। सोमवार शाम से तड़के तक आतिशबाजी की होड़ लगी रही। कथित तौर पर श्रीरामपुर, रिसड़ा, कोन्नगर, उत्तरपाड़ा, बैद्यबाटी, भद्रेश्वर, चंदननगर और चुंचुड़ा में आतिशबाजी की गई। पर्यावरण प्रेमी स्वयंसेवी आयोजकों ने आरोप लगाया है कि आतिशबाजी पर प्रतिबंध के बावजूद इस पर कोई रोक लगाने में पुलिस प्रशासन लगभग निष्क्रिय रहा।

पटाखों के अनियंत्रित इस्तेमाल के कारण शहरों से लेकर गांवों तक प्रदूषण का स्तर सीमा पार कर गया है। पशु प्रेमी संगठन के कार्यकर्ताओं ने रोष व्यक्त करते हुए कहा है कि वायु और ध्वनि प्रदूषण का शिकार सिर्फ इंसान ही नहीं होते हैं बल्कि पशु-पक्षी भी हो रहे हैं। पटाखों केेे शोर शराबे से जानवर भी परेशान हुए। पटाखा और डीजे विरोधी मंच ने आरोप लगाया है कि ग्रामीण थाना क्षेत्र के आरामबाग, चंडीतला, हरिपाल, तारकेश्वर से लेकर चंदननगर पुलिस कमिश्नरेट क्षेत्र के दानकुनी, उत्तरपाड़ा, रिशारा, श्रीरामपुर, भद्रेश्वर, चंदननगर, चुंचुरा थाना क्षेत्रों में जमकर पटाखे फोड़े जा रहे हैं।

कोन्नगर के युक्तिमान कला और विज्ञान मंच के कार्यकर्ताओं ने काली पूजा की रात उत्तरपाड़ा, कोन्नगर और रिसड़ा के औद्योगिक क्षेत्रों में उपकरणों के माध्यम से पर्यावरणीय ध्वनि और वायु प्रदूषण के स्तर को मापा। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने श्रीरामपुर थाना क्षेत्र के उत्तरपाड़ा, कोन्नगर, रिसड़ा, ग्रामीण और कोन्नगर कस्बों के लगभग 20 केंद्रों में उपकरणों के माध्यम से ध्वनि और वायु प्रदूषण के स्तर को मापा। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 विधि से पता चला कि हवा में इसकी मात्रा 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी जो सामान्य स्तर 30 माइक्रोग्राम से कई गुना अधिक है।

ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी ऊंचा था। कोन्नगर मुक्तिमान कलाविज्ञान केंद्र के संपादक जयंत पांजा ने कहा कि काली पूजा के दौरान ध्वनि प्रदूषण के स्तर ने चिंताएं बढ़ा दी हैं। हवा में प्रदूषण के कारण चिड़िया भी बीमार पड़ रही हैं। भले ही अदालत ने ग्रीन पटाखे जलाने की समय सीमा तय की हो फिर भी रात भर प्रतिबंधित पटाखे फोड़े गये। ऑल इंडिया सिटिजन फोरम के अध्यक्ष शैलेन पर्वत ने कहा कि यह सोचकर आश्चर्य होता है कि इस राज्य में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ बोलने पर कई लोग मार दिये गये हैं। उन्हें परेशान किया गया है। अनगिनत मामले दायर करने के बाद भी ध्वनि प्रदूषण की तकलीफ से कोई राहत नहीं मिली है।

पटाखा और डीजे विरोधी फोरम के महासचिव गौतम सरकार ने कहा कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं की आशंकाएं सच साबित हुईं क्योंकि काली पूजा की रात खूब हंगामा हुआ। शोरगुल से लोग बेहाल हो गए। प्रतिबंधित पटाखों के धुएं से हवा जहरीली हो गई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और समय-सीमा की अनदेखी की गई और रात भर शोरगुल होता रहा। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। आरामबाग से लेकर उत्तरपाड़ा तक हर जगह सड़क किनारे या दुकानों में प्रतिबंधित पटाखे बेचे गए। खुलेआम बेचे गये अवैध पटाखे। हालांकि प्रशासन ने अपनी आंखें मूंद ली हैं। यहां तक कि डानकुनी में सरकारी प्रयासों से स्थापित किये गये पटाखा बाजार में भी प्रतिबंधित पटाखे बिके हैं। फोरम ने आरोप लगाया कि प्रशासन को बार-बार आगाह करने और आम जनता को जागरूक करने के प्रयासों के बावजूद किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

उधर हावड़ा में काली पूजा की रात त्योहार की खुशियां खौफ में बदल गई। किसी सरकारी प्रतिबंध, अदालती आदेश या पुलिस की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया। हावड़ा शहर में बेधड़क फोड़े गये पटाखे। जैसे-जैसे रात गहराती गई पटाखों के धमाके और पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता गया। इस अराजक स्थिति से तंग आकर शहर के एक प्रमुख पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष दत्ता रात 10 बजे हावड़ा छोड़कर कोलकाता के अपेक्षाकृत शांत इलाके में चले गए। वह कई वर्षों से ध्वनि और वायु प्रदूषण के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायालय में कई वर्षों तक मुकदमे लड़ते रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतना सब करने के बाद भी आज के हालात देखकर निराशा होती है।

उन्होंने कहा कि दिवाली और काली पूजा के दौरान पटाखे जलाने की समय सीमा नियमों द्वारा तय की गई है लेकिन वास्तव में कोई भी इसका पालन नहीं कर रहा है। सख्त पुलिस निगरानी और सार्वजनिक जागरूकता दोनों अब आवश्यक हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार इस बार काली पूजा और दिवाली की रात हावड़ा की हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। बेलूर क्षेत्र में रात 10 बजे, महीन धूल कणों या पीएम 2.5 की मात्रा 376 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी जो रात 11 बजे बढ़कर 500 माइक्रोग्राम हो गई। यह मात्रा सामान्य स्तर से कई गुना अधिक है। पद्मपुकुर क्षेत्र में पीएम 2.5 464 और पीएम 10 400 माइक्रोग्राम था। दशनगर में पीएम 2.5 315 था बॉटेनिकल गार्डन में 344।

विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रदूषण सांस, आंख और हृदय रोग से ग्रस्त लोगों के लिए बेहद खतरनाक है। बच्चे और बुजुर्ग इसके सबसे बड़े शिकार हैं। पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन पर ढेरों शिकायतें मिली हैं। शिबपुर, लिलुआ, पद्मपुकुर, संतरागाछी, बेलूर के लगभग हर इलाके से शिकायतें आ रही हैं। बेलूर की एक बुजुर्ग रेणु दे ने कहा कि वह पूरी रात सो नहीं पाई। पटाखों की आवाज से ऐसा लगा जैसे कोई युद्ध शुरू हो गया हो। घर का सबसे छोटा पोता डर के मारे रो पड़ा। दासनगर निवासी संजय मजूमदार ने कहा कि ऐसा लगता है कि कानून सिर्फ नाम का है, उस पर अमल नहीं होता।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं के मुताबिक अदालत ने रात 8 बजे से 10 बजे के बीच पटाखे जलाने की सीमित सीमा तय की थी। हालांकि हावड़ा में इस नियम की लगभग अनदेखी की गई है। पुलिस की निगरानी भी नाममात्र की रही। नतीजतन पूरे शहर में अव्यवस्था की तस्वीर उभरी है। पर्यावरण कार्यकर्ता सुभाष दत्ता ने कहा कि हर बार प्रशासन त्योहार से पहले दिशानिर्देश जारी करता है लेकिन हकीकत में उन पर अमल नहीं हो पाता। डॉक्टरों के अनुसार इस प्रदूषण का असर अभी कुछ और दिनों तक रहेगा। सांस और दिल की बीमारियों से जूझ रहे लोगों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।

पद्मपुकुर निवासी अजय पाल ने कहा कि काली पूजा का मतलब है खुशी। हालांकि इस तरह का जश्न लोगों के लिए खतरा पैदा कर रहा है। प्रशासन को सख्त होना चाहिए। रोशनी से सराबोर काली पूजा की रात के बाद सुबह धुएं और प्रदूषित वातावरण में लिपटे होने के कारण शहर उदास दिखा। प्रदूषण और तेज शोर ने त्योहार की खुशी को फीका कर दिया था। पर्यावरणविदों की बस यही गुजारिश है कि अगले साल काली पूजा जागरूकता के साथ मनाई जाए।

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