लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें एक व्यक्ति को अपनी अलग रह रही पत्नी को गुज़ारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट का कहना है कि महिला स्वयं कमाने वाली है और उसने अपने हलफनामे में सही आय नहीं बताई।
न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह ने पति अंकित साहा द्वारा दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया और फैसला सुनाया कि महिला ने ट्रायल कोर्ट में दिए हलफनामे में खुद को स्नातकोत्तर और वेब डिजाइनर बताया था। वह एक कंपनी में सीनियर सेल्स को ऑर्डिनेटर के पद पर 34 हजार रुपये मासिक वेतन पर कार्यरत है जबकि पूछताछ के दौरान उसने 36 हजार रुपये प्रतिमाह कमाने की बात स्वीकार की।
कोर्ट ने कहा कि 36 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन अर्जित करने वाली महिला, जिस पर कोई अन्य आर्थिक जिम्मेदारी भी नहीं है। उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर नहीं माना जा सकता। वहीं पति को अपने बुजुर्ग माता-पिता और अन्य सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिला गुज़ारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है क्योंकि वह खुद अपना जीवनयापन करने में सक्षम है। पति के वकील ने दलील दी कि पत्नी ने हलफनामे में खुद को अशिक्षित और बेरोजगार बताया था, जो गलत साबित हुआ। कोर्ट ने माना कि महिला ने पूरी सच्चाई नहीं बताई और तथ्यों को छिपाया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जो पक्षकार सच्चाई को दबाते हैं, उनके मामले अदालत से खारिज किए जाने चाहिए। इसके साथ ही गौतम बुद्ध नगर के फैमिली कोर्ट द्वारा 17 फरवरी को दिया गया आदेश रद्द कर दिया गया।