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‘यह तो पुनर्जन्म जैसा है!’ सूडान में 40 दिन जंगल में बिताने के बाद घर लौटे ओडिशा के आदर्श

पूरा दिन में सिर्फ एक पैकेट बिस्कुट मिलता, पानी तक नहीं मिलता

By अमर्त्य लाहिड़ी, Posted by: लखन भारती

Dec 18, 2025 01:05 IST

‘‘परिवार के चेहरे को फिर कभी देखने की जो उम्मीद थी, वह मैंने छोड़ दी थी। यह मेरे लिए पुनर्जन्म है।’’ सूडान के गृह युद्ध की नर्क जैसी स्थिति में 40 दिन बिताने के बाद देश लौटने पर ओडिशा के जगतसिंहपुर के युवक आदर्श बेहेरा ने यही बताया। 36 साल के आदर्श सूडान में काम करने गए थे और वहां की रैपिड सपोर्ट फोर्सेस या RSF के हाथों बंदी बन गए थे। हालांकि RSF सूडान सरकार के हाथों बनाई गई थी, वर्तमान में RSF उस देश का विद्रोही समूह है, असल में एक आतंकवादी समूह। सूडान उत्तर-पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक देश है।

क्या आप शाहरुख खान को जानते हैं ?

पश्चिमी सूडान के अल-फशीर शहर से उन्हें अपहरण कर किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया था RSF के सदस्यों द्वारा। लगभग एक महीने पहले आदर्श का एक वीडियो वायरल हुआ था। वीडियो में देखा गया था कि आतंकवादी उनसे मज़ाक कर रहे हैं। आदर्श भारतीय होने के नाते उनसे पूछा जा रहा था कि क्या वे शाहरुख खान को जानते हैं। उन्हें RSF नेता के नाम पर जयघोष भी करने के लिए मजबूर किया गया था।

उसी वीडियो में आदर्श बेहरा ने भारत और ओडिशा सरकार से उन्हें बचाने की अपील की थी। आदर्श की पत्नी सुस्मिता ने अपने पति की रिहाई के लिए सूडान में भारतीय दूतावास और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माजी से विनम्र अपील की थी। अंततः भारतीय विदेश मंत्रालय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के हस्तक्षेप से आदर्श को बचाया गया।

संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी से हैदराबाद होते हुए मंगलवार को वह भुवनेश्वर पहुंचे। मौत के मुंह से परिवार के पास लौटकर आदर्श रो पड़ते हैं। घर लौटने के बाद भी वह उस आतंकवादी ठिकाने में बिताए गए 40 दिनों को भूल नहीं पा रहे हैं। वे दिन कैसे बीते थे ?

आदर्श ने बताया, वे दिन नरक जैसे थे। लगातार 40 दिन उन्हें हथकड़ी पहनाकर, आंखों पर पट्टी बांधकर रखा गया। पहले तीन दिन जंगल में और बाद में एक गाएं रखने के खटाले जैसी अंधेरी गंदी कमरे में बंद रखा गया।

वहां हमेशा घना अंधकार रहता। खाने के रूप में दिन में केवल एक पैकेट बिस्किट या कुछ टुकड़े रोटी मिलते। यहां तक कि पानी भी हमेशा जब चाहो नहीं मिलता था।

कैसे वह उस नरक से बाहर आए, इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। आदर्श ने बताया, हाथ में हथकड़ी और आंखों पर पट्टी बांधे हुए ही उन्हें सूडान की सीमा पार कराई गई। मंगलवार को अबू धाबी पहुंचने के बाद उन्हें पहली बार समझ आया कि वे सूडान को पीछे छोड़ आए हैं।

आदर्श ने 20 साल तक देश के विभिन्न शहरों में काम किया। तनख्वाह बहुत कम मिलती थी। इसलिए 2022 के दिसंबर में कुछ ज्यादा पैसा कमाने की आशा में इस ओडिशा के युवक ने सूडान जाने का निर्णय लिया। वहां छह-सात महीने काम करने के बाद ही गृहयुद्ध शुरू हो गया। उस भयंकर याद के साथ वह किसी तरह घर लौटे और शायद युद्धविखंडित उस देश में वापस नहीं जाएंगे, यह ओडिशा का युवक।

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