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क्राइम लिटरेचर फेस्टिवलः देहरादून में गूंजा अपराध, न्याय और समाज के सम्बंधों पर विमर्श

तीन दिन, एक मंच और सैकड़ों सवाल: अपराध पत्रकारिता, साहित्य, पुलिसिंग, न्याय प्रणाली, सिनेमा, तकनीक, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक प्रभाव जैसे विषयों को कई दृष्टिकोणों से परखा गया।

By Posted by: रजनीश प्रसाद

Dec 17, 2025 19:32 IST

देहरादून: भारत के क्राइम लिटरेचर फेस्टिवल ऑफ इंडिया (CLFI) का तीसरा संस्करण देहरादून में तीन दिनों तक चला । इसमें गहन संवाद, मंथन और विमर्श होने के बाद संपन्न हुआ। अपराध, न्याय और समाज जैसे विषयों पर केंद्रित इस महोत्सव में देश की कई प्रतिष्ठित और विविध हस्तियों ने भाग लिया। इनमें उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त), प्रख्यात फिल्मकार केतन मेहता, फेस्टिवल चेयरमैन एवं उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार, फेस्टिवल डायरेक्टर एवं उत्तराखंड के पूर्व डीजी आलोक लाल आदि शामिल हैं।

फेस्टिवल का उद्घाटन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) ने किया। उन्होंने अपराध को मानव के आंतरिक संघर्ष का प्रतिबिंब बताते हुए कहा कि CLFI जैसे मंच समाज को न्याय, जवाबदेही और सत्य जैसे प्रश्नों से सार्थक रूप से जुड़ने का अवसर देते हैं। अतिथियों का स्वागत करते हुए अशोक कुमार ने कहा कि CLFI भारत का एकमात्र ऐसा फेस्टिवल है जो पूरी तरह अपराध विधा को समर्पित है और भूमि घोटाले, नशाखोरी, साइबर अपराध, सड़क सुरक्षा, महिला सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी जैसे मुद्दों पर संवाद करता है।

एएनआइ के रिपोर्ट के अनुसार इन तीन दिनों के दौरान अपराध पत्रकारिता, साहित्य, पुलिसिंग, न्याय प्रणाली, सिनेमा, तकनीक, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक प्रभाव जैसे विषयों को कई दृष्टिकोणों से परखा गया। अगले वर्ष से भारत के सबसे बड़े क्राइम राइटिंग सम्मान ‘स्वर्ण कटार अवॉर्ड’ की घोषणा भी की गई। अंतिम दिन मीडिया के बदलते स्वरूप, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, किशोर न्याय, सिनेमा और आस्था पर चर्चा हुई। सनसनीखेज़ी, मीडिया ट्रायल और अपराध रिपोर्टिंग की गिरती साख पर विद्वानों आपनी बात रखीं।

किशोर न्याय पर एक गंभीर सत्र में पुलिस के बड़े अधिकारियों ने दंड से अधिक पुनर्वास पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि किशोर अपराध कुल मामलों का एक प्रतिशत से भी कम है, जबकि देश में तीन करोड़ से अधिक बच्चे देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता में हैं, जो संस्थागत क्षमता से कहीं अधिक है।

आस्था और धोखाधड़ी पर भी काफी गहन चर्चा हुई। वक्ताओं ने अंधविश्वास के खिलाफ चेतावनी देते हुए बताया कि किस तरह आध्यात्मिकता की आड़ में अपराध संचालित होते हैं और सच्ची आस्था व संगठित धोखे के बीच फर्क करना ज़रूरी है।

साहित्य आधारित सत्रों में मिथक, इतिहास, संपादन की नैतिकता और ट्रू क्राइम की वास्तविकताओं पर चर्चा हुई। फेस्टिवल का समापन एक चिंतनशील स्वर में हुआ, जहां पर वक्ताओं ने CLFI को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के अपने संकल्प को दोहराया। उन्होंने इसे एक राष्ट्रीय स्तर का महत्वपूर्ण मंच बताते हुए कहा कि यह अनुभव और कहानी कहने के बीच सेतु बनाकर अपराध, न्याय और समाज की समझ को गहराता है, और भविष्य में और अधिक साहसिक संवाद, व्यापक भागीदारी तथा राष्ट्रीय विमर्श पर स्थायी प्रभाव का स्पष्ट विजन रखता है।

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