वोटर लिस्ट में विशेष और गहन संशोधन यानी SIR (Special Intensive Revision) को लेकर देश की राजनीति में हलचल मची हुई है। इसी संदर्भ में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में SIR मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने एक चौंकाने वाला आरोप लगाया। आयोग के अनुसार, बिहार, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच ‘डर’ और ‘आतंक’ पैदा कर रही हैं।
इस दिन भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश जॉयमाल्य बागची की पीठ में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। तमिलनाडु में DMK और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस ने SIR की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों राज्यों के मामलों की सुनवाई इस दिन नहीं की और कहा कि तमिलनाडु का मामला 4 दिसंबर तथा पश्चिम बंगाल का मामला 9 दिसंबर को सुना जाएगा।
इस दिन अदालत ने केरल राज्य सरकार के आवेदन की सुनवाई की। केरल सरकार ने SIR की वैधता को चुनौती नहीं दी, लेकिन राज्य की नगर निगम चुनाव पूरी होने तक SIR को स्थगित रखने का अनुरोध किया। उनका तर्क था कि मतदाता सूची में संशोधन और चुनाव एक साथ कराना प्रशासन पर गंभीर दबाव डाल सकता है।
अदालत ने इस मामले में 1 दिसंबर तक ECI और राज्य चुनाव आयोग से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को होगी।
उल्लेखनीय है कि CPI(M), CPI और IUML जैसी पार्टियों ने भी SIR प्रक्रिया की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। 21 नवंबर को इनके आवेदन के आधार पर नोटिस जारी किया गया था।
विरोधियों की यह संयुक्त चुनौती चुनाव आयोग की कार्रवाई को कठिन सवालों के सामने ला चुकी है। बिहार में हालांकि यह प्रक्रिया स्थगित नहीं हुई और वहां चुनाव संपन्न हो गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने बिहार में SIR को सफल बताया, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर कई सवाल अभी भी बने हुए हैं, जिनका आयोग ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया है।
देश के लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण इस प्रक्रिया का भविष्य अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा।