नई दिल्ली: नाम बदले जाने की आशंका पहले से ही थी। वास्तव में ऐसा हुआ भी। लेकिन ‘महात्मा गांधी’ के स्थान पर ‘पूज्य बापू’-योजना के नाम में जोड़े जाने की जो अटकलें थीं, वे भी सच नहीं हुईं। सौ दिन के काम की योजना या मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) का नाम बदलने का प्रस्ताव करते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया। इसमें योजना का नाम प्रस्तावित किया गया है-‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’, संक्षेप में ‘वीबीजी-राम–जी’। राष्ट्रपिता का नाम हटाने के साथ-साथ पूरी योजना को जड़ से बदलने की तैयारी का आरोप लगाते हुए विपक्ष ने एक स्वर में विरोध किया है।
विपक्ष का कहना है कि नए रूप में लाई जा रही इस योजना का पुराने मनरेगा से कोई संबंध नहीं है। इसी आशय से प्रस्तावित कानून बनाने के उद्देश्य से सोमवार को मोदी सरकार ने जो विधेयक लोकसभा में सांसदों के बीच प्रसारित किया, उसमें बताया गया है कि नई ग्रामीण रोजगार योजना की कुल लागत का 40 प्रतिशत राज्यों को वहन करना होगा। पहले इस योजना का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती थी। अब यदि राज्यों को 40 प्रतिशत खर्च उठाना पड़ेगा तो सभी राज्यों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, इस पर सभी सहमत हैं। सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास का दावा है, “केरल जैसे छोटे राज्य को भी हर साल कम से कम 2000-2500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। केंद्र इस तरह का विधेयक क्यों लाई?”
पुरानी मनरेगा योजना में हर साल न्यूनतम 100 दिनों के काम की गारंटी थी। नई योजना में 125 दिनों के काम की गारंटी की बात कही गई है, लेकिन इसके साथ शर्तें जोड़ी गई हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित विधेयक में खेती के मौसम के दौरान हर साल कम से कम दो महीने तक योजना के काम को बंद रखने की शर्त भी शामिल है। सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि केंद्र की एनडीए सरकार की एक प्रमुख सहयोगी पार्टी-चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी ने भी इसकी आलोचना की है। उनका कहना है कि इससे राज्यों पर दबाव तो बढ़ेगा ही, साथ ही यदि योजना के तहत तय सीमा से अधिक खर्च हुआ तो उसे भी राज्यों को ही वहन करना होगा। इससे अधिकतम लाभार्थियों तक इस सुविधा को पहुंचाया जा सकेगा या नहीं-इस पर भी संदेह बना हुआ है।
विपक्ष का आरोप है कि देश के ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार और आय जैसे मुद्दों पर भी मोदी सरकार ने अब घृणित राजनीति शुरू कर दी है। विपक्ष ने स्पष्ट किया है कि जिस तरह शर्तों के साथ ग्रामीण रोजगार योजना बनाई जा रही है और कुल खर्च का 40 प्रतिशत राज्यों पर डाला जा रहा है, उसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उनका कहना है कि इस विधेयक की समीक्षा के लिए सरकार को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन करना ही होगा। महात्मा गांधी का नाम हटाकर चालाकी से धार्मिक कार्ड खेलते हुए नई योजना में ‘राम–जी’ जोड़ने के मुद्दे पर भी विपक्ष मोदी सरकार को निशाने पर ले रहा है।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सोमवार को लोकसभा में यह विधेयक पेश होने वाला नहीं था। लेकिन दोपहर में सरकार ने एक सप्लीमेंटरी बिज़नेस लिस्ट जारी कर विधेयक पेश करने की जानकारी दी। सबसे पहले लोकसभा की विषय सलाहकार समिति की बैठक में इस विधेयक के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की मुख्य सचेतक काकली घोष दस्तीदार ने आवाज़ उठाई। पार्टी के राज्यसभा नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने भी सीधे तौर पर मोदी सरकार पर हमला बोला। उनका कहना है, “मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाना गांधीजी का अपमान है। हैरानी होती है? यही वे लोग हैं जिन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे की पूजा की थी। वे गांधीजी का अपमान करना चाहते हैं। हम कभी ऐसा नहीं होने देंगे।”
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा, “भाजपा महात्मा गांधी का नाम क्यों हटाना चाहती हैं? देशवासी उन्हें भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे बड़े नेताओं में मानते हैं। इसके अलावा, किसी योजना का नाम बदलने से दफ्तरों, स्टेशनरी आदि में इतने बदलाव करने पड़ते हैं-इस पर बहुत पैसा खर्च होता है। इससे आखिर क्या लाभ हुआ?”