सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अब तक किसी मामले की जल्द सुनवाई के लिए वकील उस मामले के बारे में मौखिक रूप से बताकर उसे सूचीबद्ध करवा लिया करते थे। सूची के मुताबिक जिस दिन उस मामले की सुनवाई होनी होती थी, तब न्यायाधीश उसे सुनते थे। लेकिन मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अपना पदभार ग्रहण करने के बाद ही मंगलवार को जस्टिस सूर्यकांत ने इस नियम में बदलाव का संकेत दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, 'इस आदत को बदलनी पड़ेगी।'
करना होगा लिखित आवेदन
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का आदेश है, मौखिक रूप से बताकर अब किसी मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं करवाया जा सकेगा। इसके लिए लिखित आवेदन करना होगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि किसी विशेष मामले में इस नियम को तोड़ा भी जा सकता है।
किन मामलों में तोड़ा जा सकता है नियम?
यदि मामला व्यक्ति स्वतंत्रता अथवा अधिकार का हो, तो वकील सटीक कारण बताकर सुनवाई के लिए मौखिक रूप से आवेदन कर सकते हैं। अगर फांसी की सजा को लागू करने की आशंका हो तो ऐसे मामले में भी सुप्रीम कोर्ट नर्म रवैया अपना सकती है। लेकिन अन्य किसी भी मामले की सुनवाई से पहले लिखित आवेदन करना होगा।
बर्बाद होता है अदालत का मूल्यवान समय
गौरतलब है कि मंगलवार की सुबह मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की खंडपीठ में एक मामले की सुनवाई का आवेदन लेकर कई वकील पहुंचे थे। उसी समय उन्होंने कहा, 'मौखिक रूप से बताकर मामलों को सूचीबद्ध करवाने का नियम खत्म होना चाहिए। किसी आपातकालीन परिस्थिति के अलावा अब ऐसे मामलों की सुनवाई नहीं होगी। इस आदत को बदलना पड़ेगा।' उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि प्रतिदिन सुबह मौखिक आवेदन सुनते-सुनते अदालत का काफी मूल्यवान समय बर्बाद हो जाता है। ऐसा नहीं चल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई प्रतिदिन वकिलों के साथ मौखिक आवेदन सुनते थे। लगभग 10 से 15 मिनट का समय वह इस काम में देते थे। लेकिन अब इस नियम को बदला जा रहा है। बता दें, सुप्रीम कोर्ट में मौखिक आवेदन के आधार पर मामलों की सुनवाई की कार्य पद्धति काफी पुरानी बतायी जाती है। जानकारों का मानना है कि मुख्य न्यायाधीश ने इस कार्य पद्धति को बदलने के पीछे दो मुख्य बातें छिपी हैं - सुबह के समय सुप्रीम कोर्ट में ज्यादा भीड़ न हो, इसे सुनिश्चित करना चाहते हैं। दूसरा यह कि वह उन मामलों की सुनवाई को ही प्राथमिकता देना चाहते हैं, जो वास्तव में अर्जेंट हैं।