नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बहु-करोड़ रुपये के बैंक लोन घोटाला मामले में डीएचएफएल (डीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड) के पूर्व प्रमोटर कपिल वाधवान और उनके भाई धीरज वाधवान को जमानत दे दी है। अदालत ने कहा कि किसी भी अंडरट्रायल कैदी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है।
11 दिसंबर को दिए गए अपने आदेश में न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में “जमानत नियम है और जेल अपवाद” का सिद्धांत गहराई से स्थापित है। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्री-ट्रायल हिरासत को सजा का रूप नहीं लेने दिया जा सकता। पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने कहा कि गवाहों की संख्या और अब तक की न्यायिक कार्यवाही को देखते हुए, यदि मामले की रोजाना सुनवाई भी हो, तब भी अगले दो से तीन वर्षों में ट्रायल पूरा होना मुश्किल है। ऐसे में लंबी हिरासत अनुचित और असंगत हो जाती है।
हालांकि, अदालत ने जमानत देते हुए कई सख्त शर्तें भी लगाईं। वाधवान बंधुओं को रिहाई के एक सप्ताह के भीतर अपना निवास स्थान और संपर्क विवरण संबंधित ट्रायल कोर्ट और पुलिस थाने को देना होगा। उन्हें हर महीने एक बार स्थानीय पुलिस स्टेशन में हाजिरी लगानी होगी और चार्ज फ्रेम होने के बाद ट्रायल कोर्ट की तय तारीखों पर पेश होना अनिवार्य होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आरोपी बिना हाईकोर्ट की अनुमति भारत से बाहर नहीं जाएंगे और रिहाई के दो दिनों के भीतर अपने पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा करेंगे। यदि उन्होंने किसी भी गवाह को प्रभावित करने या धमकाने की कोशिश की तो अभियोजन पक्ष के आवेदन पर उनकी जमानत रद्द की जा सकती है।
वाधवान बंधुओं को इस मामले में जुलाई 2022 में गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने अक्टूबर 2022 में चार्जशीट दाखिल की थी जिस पर अदालत ने संज्ञान लिया। यह प्राथमिकी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर दर्ज की गई थी।
सीबीआई के अनुसार, डीएचएफएल, उसके तत्कालीन चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरेक्टर कपिल वाधवान, पूर्व निदेशक धीरज वाधवान और अन्य आरोपियों ने मिलकर 17 बैंकों के कंसोर्टियम (जिसका नेतृत्व यूनियन बैंक कर रहा था) को धोखा देने की साजिश रची। आरोप है कि इस साजिश के तहत 42,871.42 करोड़ रुपये के ऋण मंजूर कराए गए, जिनका बड़ा हिस्सा कथित तौर पर बुक्स में हेराफेरी और जानबूझकर भुगतान न करने के जरिए गबन कर लिया गया।