पाकिस्तान-अफगानिस्तान संघर्ष ने एक भयावह मोड़ ले लिया है। दोनों पड़ोसी देशों ने दशकों से इतना गंभीर संघर्ष नहीं देखा है। बुधवार को 48 घंटे का युद्धविराम घोषित किया गया लेकिन यह बहुत अस्थिर है। कोई नहीं कह सकता कि यह कब तक चलेगा। दोनों देशों के बीच इस खूनी संघर्ष की जड़ में एक ही व्यक्ति है: नूर वली महसूद। अफगानिस्तान में उसकी और उसके साथियों की मौजूदगी इस्लामाबाद के असंतोष का मुख्य कारण है।
महसूद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) समूह का नेता है। इस्लामाबाद का आरोप है कि महसूद और उसके साथियों ने अफगानिस्तान में शरण ले रखी है। वहां से वे लगभग रोजाना पाकिस्तान में हमले करते हैं।
पाकिस्तान ने पिछले हफ्ते काबुल में हवाई हमला किया था। इस हमले में एक हथियारबंद टोयोटा लैंड क्रूजर कार उड़ा दी गई थी। इस्लामाबाद को बताया गया था कि महसूद उस गाड़ी में था। हालांकि ऐसा माना जाता है कि वह बच गया। टीटीपी समूह ने बाद में उसका एक ऑडियो संदेश जारी किया।
2018 में टीटीपी पूरी तरह से पंगु हो गया था। पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पाकिस्तानी धरती से खदेड़कर अफगानिस्तान भेज दिया था। उसी दौरान अमेरिका ने ड्रोन हमलों में समूह के तीन शीर्ष नेताओं को मार गिराया था। ऐसी ही स्थिति में महसूद ने टीटीपी की कमान संभाली थी। आतंकवाद पर शोध करने वालों के अनुसार महसूद ने टीटीपी को लगभग नए सिरे से खड़ा किया था।
टीटीपी कई अलग-अलग चरमपंथी समूहों में बंट गया। महसूद ने अपनी कूटनीतिक कुशलता से इन टुकड़ों को फिर से एक साथ ला दिया। साथ ही उसने इस्लामाबाद विरोधी अभियान भी शुरू किया।
इसके बाद 2021 में तालिबान समूह अफगानिस्तान की सत्ता में लौट आया। पाकिस्तान का दावा है कि उसके बाद टीटीपी की ताकत और बढ़ गई। उन्हें अत्याधुनिक हथियार मिल गए। टीटीपी ने पाकिस्तान के अंदर खासकर उत्तर-पश्चिम में सीमा पार नियमित हमले शुरू कर दिए।
हालांकि हमले का लक्ष्य बदल गया। महसूद के समय से पहले टीटीपी पाकिस्तान में मस्जिदों या बाजारों पर हमले करता था। नतीजतन इस समूह को जनता का समर्थन न के बराबर था। महसूद ने केवल पाकिस्तानी सेना और पुलिसकर्मियों को निशाना बनाने का आदेश दिया।
इसी दौरान महसूद ने वीडियो संदेशों में पाकिस्तानी सेना को इस्लाम विरोधी बताना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी राजनीति में सेना के हस्तक्षेप की निंदा करते हुए उसने उस पर 78 वर्षों से पाकिस्तानी जनता का 'अपहरण' करने का आरोप लगाया।
न केवल धर्म, बल्कि उसने टीटीपी की आतंकवादी विचारधारा में राष्ट्रवाद का भी तड़का लगाया है। उसने कम से कम तीन किताबें लिखी हैं। इन किताबों में वह दावा करता है कि टीटीपी आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध संघर्ष से उपजा था।
आतंकवाद विशेषज्ञ अब्दुल सईद के अनुसार महसूद खुद को पश्तून जनजाति का प्रवक्ता बताता है जो मुख्यतः अफगानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में रहती है। सईद के अनुसार महसूद टीटीपी आंदोलन को पश्तून जनजातियों के अधिकारों की लड़ाई में बदलना चाहता है ठीक उसी तरह जैसे तालिबान समूह ने अफगानिस्तान में सरकार बनाने के लिए लड़ाई लड़ी थी।
टीटीपी इसी जनजाति को ध्यान में रखकर पाकिस्तान के अफगान सीमावर्ती इलाकों में शरिया कानून लागू करना चाहता है। हालांकि विश्लेषकों के अनुसार टीटीपी को अभी भी पाकिस्तान में नगण्य जनसमर्थन प्राप्त है।