वाशिंगटनः नरेंद्र मोदी के सुर में अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी सुर मिलाने लगे हैं। ट्रम्प ने भी वादा किया है हर नागरिक के बैंक खाते में रकम देने का! 2014 में पहली बार सत्ता में आने से पहले मोदी सरकार ने वादा किया था कि विदेशों में जमा सारा 'काला धन' वापस लाया जाएगा और हर भारतीय को 15 लाख रुपये दिए जाएंगे। लेकिन एक दशक बीत जाने के बाद भी 'वादा नहीं निभाया।’
अब, ह्वाइट हाउस में दूसरी पारी शुरू करने के करीब 10 महीने बाद डोनाल्ड ट्रम्प को लगभग वैसा ही वादा करते सुना गया। हालांकि रकम काफी कम है। सोशल मीडिया पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने गर्व से घोषणा की कि सरकार हर अमेरिकी नागरिक को 2,000 डॉलर देगी। हालांकि यह अमीरों को नहीं मिलेगा। भारतीय मुद्रा में करीब 1.75 से 2 लाख रुपये प्रति व्यक्ति दिये जायेंगे! लेकिन सवाल यह है कि सरकारी कोष तो पहले से ही 'खाली' है! अमेरिका हाल ही में रिकॉर्ड "शटडाउन" का गवाह बना है। सरकारी विभागों के कई कर्मचारी वेतन भी नहीं पा रहे हैं। तो यह 'मुफ्त की रकम' आएगी कहां से?
ट्रम्प की सरल योजना: अन्य देशों पर भारी टैरिफ (आयात शुल्क) लगाकर जो धन सरकार के पास आएगा, उसी से अमेरिकी नागरिकों को यह लाभ दिया जाएगा। अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर यह बड़ा वादा करते हुए ट्रम्प ने टैरिफ नीति के आलोचकों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने सीधे कहा कि जो लोग मेरी शुल्क नीति का विरोध करते हैं, वे असल में बड़े मूर्ख हैं। इस वक्त हम ही दुनिया का सबसे अमीर देश हैं। सब हमें मान्यता देते हैं। देश में मुद्रास्फीति नहीं है, शेयर बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। हमारे सिर पर जो बड़ा कर्ज है, उसे भी हम जल्द चुकाना शुरू करेंगे। अमेरिका में रिकॉर्ड निवेश हो रहा है और हर जगह नई फैक्ट्रियां बन रही हैं।
ट्रम्प का दावा है कि अमेरिका की इस तेज़ तरक्की के पीछे उनकी टैरिफ नीति ही जिम्मेदार है। इसलिए उन्होंने कहा कि अन्य देशों पर लगाए गए शुल्क से जो कमाई होगी, उसे सीधे नागरिकों में बांटा जाएगा। पैसे कब मिलेंगे का जवाब दिया जा रहा हैइसी महीने! जैसे ही ट्रम्प की यह पोस्ट सामने आई, पूरे अमेरिका में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। हालांकि ट्रम्प ने कोई निश्चित तारीख नहीं बताई। यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि अमीरों की परिभाषा क्या होगी और किन्हें इस योजना से बाहर रखा जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस घोषणा को लागू करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी जरूरी हो सकती है। हाल ही में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में ट्रम्प की टैरिफ नीति की वैधता पर सवाल उठाया था। उसी के बाद यह घोषणा आई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, देश के भीतर टैरिफ नीति को लेकर उठ रही आलोचनाओं को शांत करने के लिए ही ट्रम्प ने यह घोषणा की है।