पाकिस्तान का परमाणु लक्ष्य केवल भारत से मुकाबला नहीं, वह 'इस्लामी बम' बनाना चाहता थाः पूर्व सीआईए अधिकारी

ईरान का परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान की मदद के बिना संभव नहीं था। पाकिस्तानी तकनीक ने ईरान के गैस सेंट्रीफ्यूज विकास को दशकों आगे बढ़ाया।

By डॉ. अभिज्ञात

Nov 07, 2025 19:19 IST

इस्लामाबादः पूर्व सीआईए अधिकारी रिचर्ड बार्लो दावा किया है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार बनाने का मुख्य उद्देश्य केवल भारत के परमाणु कार्यक्रम का मुकाबला करना नहीं था। भारत ने 1974 में अपने पहले परमाणु परीक्षण के साथ क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदल दिया था। इसके जवाब में पाकिस्तान ने 1970-80 के दशक में अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज़ किया। बार्लो ने बताया कि पाकिस्तान के जनरल और परमाणु विशेषज्ञों के नजरिए से यह केवल पाकिस्तानी बम नहीं था। उनका उद्देश्य इसे 'इस्लामी बम' में बदलना था ताकि पाकिस्तान अन्य मुस्लिम देशों को भी परमाणु तकनीक दे सके।

एके खान और 'इस्लामी बम' की योजना: बार्लो ने बताया कि पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के वास्तुकार अब्दुल कादिर खान ने इस योजना को आगे बढ़ाया। उन्होंने तकनीक को ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया तक पहुँचाया। कादिर खान और उनका नेटवर्क गैस सेंट्रीफ्यूज तकनीक और परमाणु हथियार योजनाएँ ईरान को 1990 की शुरुआत में उपलब्ध कराते रहे। इस मदद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कई दशकों तक तेज़ी से आगे बढ़ाने में मदद की। ईरान बिना पाकिस्तानी मदद के इतने जल्दी गैस सेंट्रीफ्यूज विकसित नहीं कर सकता था। यह काम बहुत जटिल है और इसके लिए दशकों की मेहनत की जरूरत होती।

पाकिस्तान के परमाणु बम का जनक कादिर खानः बार्लो ने बताया कि अब्दुल कादिर खान का जन्म 1936 में भोपाल में हुआ और 1952 में उनका परिवार पाकिस्तान चला गया। उन्होंने पाकिस्तान को दुनिया का पहला इस्लामी परमाणु शक्ति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कादिर खान की तकनीक तस्करी ने उन्हें विश्व के सबसे कुख्यात परमाणु तस्करों में शामिल किया। उन्होंने तकनीक को ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया तक पहुँचाया। उनका निधन 2021 में इस्लामाबाद में हुआ।

पाकिस्तान के व्यापक उद्देश्यः बार्लो के अनुसार पाकिस्तान के कार्यक्रम का उद्देश्य केवल भारत के खिलाफ रणनीतिक नहीं था। इसके पीछे एक वैश्विक इस्लामी दृष्टिकोण भी था। पाकिस्तान का लक्ष्य था कि मुस्लिम देशों को भी परमाणु तकनीक उपलब्ध कराई जाए। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ही 'मुस्लिम बम' की आवश्यकता पर जोर दिया था और इसके लिए कादिर खान को कार्यक्रम का नेतृत्व सौंपा।

अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: पूर्व सीआईए अधिकारी ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के छुपे हुए परमाणु लेन-देन पर काफी उपेक्षा दिखाई। 1987-88 में अमेरिका ने कोई कार्रवाई नहीं की और उसके बाद करीब 20 साल तक भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

ईरान और पाकिस्तान का परमाणु संबंधः बार्लो ने स्पष्ट किया कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान की मदद के बिना संभव नहीं था। पाकिस्तानी तकनीक ने ईरान के गैस सेंट्रीफ्यूज विकास को दशकों आगे बढ़ाया। हालांकि ईरान ने बाद में अपनी स्वतंत्र तकनीक विकसित की, लेकिन प्रारंभिक आधार पाकिस्तानी सहायता पर ही टिका था।

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