लिस्बनः मजदूरों का एक समूह बालू के ढेर को हटाकर हीरे की खान की खोज कर रहा था। खोज के दौरान विशाल बड़े-बड़े लकड़ी के बीम और इसके बाद पूरे ढांचे को पाया गया। वह ढांचा एक जहाज का था। यह कोई नया नहीं, कम से कम पांच सौ साल पुराने पुर्तगाली जहाज का ढांचा था। बहुत ध्यान से पढ़ने पर पास में लिखा नाम अब भी पढ़ा जा सकता है-'बोम जीसस'।
उस जहाज के तल से खजाना मिला है। समुद्री पुरातत्त्वविदों के अनुसार, उस जहाज ने 1533 में पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से यात्रा शुरू की थी और उसका गंतव्य भारत था। जिस मार्ग से वास्को दी गामा भारत पहुंचे थे, उसी मार्ग को अपनाते हुए अफ़्रीका के पश्चिमी तट के साथ दक्षिण की ओर बढ़ते हुए उत्तरीज़ा अंतरद्वीप पार करके अरब सागर के रास्ते भारत आने के लिए जहाज ने यात्रा शुरू की थी। लेकिन अंततः 'बोम जीसस' भारत नहीं पहुंच सका। अन्य कई जहाजों की तरह, 'बोम जीसस' भी स्केलिटन तट पार नहीं कर सका।
अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से की वह जगह से पूर्व की ओर फैला है विशाल और मानव रहित 'नामीब डेजर्ट' या नामीबिया का मरुस्थल। वहां सरकारी हीरे की खानें हैं। आम लोगों को वहां जाने की अनुमति नहीं है। पश्चिम में कुख्यात 'स्केलेटन कोस्ट' है। पिछले पांच–छह सौ सालों में उस तटीय क्षेत्र में समुद्र के नीचे की पहाड़ियों से टकराकर कितने ही जहाज डूब गए जिनका कोई पता नहीं चला। 'स्केलेटन कोस्ट' नाम इसलिए थोपा नहीं गया, बल्कि अर्जित किया गया। शापित उस तटीय क्षेत्र से जुड़े नामीब डेजर्ट में ही लगभग पांच सौ साल पहले लापता हुए पुर्तगाली जहाज ''बोमे जीसस' का पता मिला।
नामिब मरुस्थल से खोजे गये इस जहाज के बारे में समुद्री पुरातत्त्ववेत्ता डिएटर नॉली कहते हैं, 'सहारा मरुस्थल के दक्षिण और अफ्रीका के पश्चिमी तट पर अब तक जितने डूबे हुए जहाज पाए गए हैं, उनमें 'बोमे जीसस' सबसे प्राचीन है। यही कारण है कि इस जहाज के अवशेष की खोज पाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।' पांच सौ वर्ष पुरानी उस जहाज की खोज केवल पुरातात्विक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है।
उस जहाज के मलबे से जो मिला है, उसका आर्थिक महत्व भी कम नहीं है। 'सदर्न अफ्रीकन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेरिटाइम आर्कियोलॉजिकल रिसर्च' के शोधकर्ताओं ने बताया कि उस जहाज से लगभग दो हजार सोने के सिक्के मिले हैं। सिक्कों पर सोलहवीं शताब्दी के पुर्तगाली राजा तृतीय जुआं का नाम उकेरा गया है। हाथीदांत से बनी विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों का विशाल संग्रह भी प्राप्त हुआ है। बड़ी मात्रा में तांबा और चांदी के सामान भी मिले हैं। उस समय जहाज चलाने और नेविगेशन के काम आने वाले उपकरण भी पाए गए हैं।
अनुसंधान करने वाली टीम के सदस्य कह रहे हैं, 'समुद्र ने उस जहाज को नष्ट कर दिया और अगले पांच सौ वर्षों तक उसे रेगिस्तान ने संरक्षित किया। नामीब डेज़र्ट दुनिया के सबसे सूखे क्षेत्रों में से एक है। इसलिए रेत की परत के नीचे जहाज और उसके सामान अनछुए रहे हैं।' भूविज्ञानों ने बताया कि जहाज वास्तव में समुद्र तट पर डूबा था लेकिन अगले पांच सौ वर्षों में उस इलाके की तटरेखा धीरे-धीरे पश्चिम की ओर हट गई। इसी कारण बाद में जहाज को रेगिस्तान के भीतर पाया गया। तब तक वह जहाज पूरी तरह से रेत में ढक चुका था। जहाज पुर्तगाली था और इसका सफर भी पुर्तगाल से ही शुरू हुआ था, फिर भी उस जहाज और जहाज से पाए गए खजाने का मालिकाना हक पुर्तगाल को नहीं मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार 'बोम जीसस' की पूरी जिम्मेदारी अब नामीबिया की है। वे हीरे की खोज में गए थे लेकिन जो उन्हें मिला, उसकी कीमत हीरों से भी कई गुना अधिक थी।