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सिनेमा और सियासत: सलमान खान की आने वाली फ़िल्म 'बैटल ऑफ गलवान' पर चीन को आपत्ति

ग्लोबल टाइम्स ने फिल्म पर आरोप लगाया कि यह गलवान घाटी की घटना से जुड़े तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है।

By डॉ. अभिज्ञात

Dec 30, 2025 13:04 IST

भारतीय सिनेमा जब इतिहास और राष्ट्र से जुड़े विषयों को छूता है तो उसकी गूंज केवल देश तक सीमित नहीं रहती। अभिनेता सलमान खान की आने वाली फिल्म 'बैटल ऑफ गलवान' इसका ताज़ा उदाहरण है। 27 दिसंबर को सलमान खान के जन्मदिन के मौके पर जारी हुआ इसका टीज़र देखते ही देखते भारत से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक चर्चा का विषय बन गया।

इस चर्चा को और हवा तब मिली, जब चीन के सरकारी समर्थन वाले अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने फिल्म पर आरोप लगाया कि यह गलवान घाटी की घटना से जुड़े तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। अख़बार में छपी टिप्पणी में चीनी विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया कि कोई भी फिल्म कितनी भी नाटकीय क्यों न हो, वह किसी देश की “पवित्र भूमि” की वास्तविकता को नहीं बदल सकती।

फिल्म की कहानी वर्ष 2020 में भारत-चीन सीमा पर हुई गलवान घाटी की झड़प पर आधारित है। 16 जून 2020 को हुई इस हिंसक मुठभेड़ में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, हालांकि चीनी पक्ष को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ गया और लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सैन्य गतिविधियां तेज़ हो गईं। बाद के वर्षों में बातचीत और सैन्य स्तर पर सहमति के जरिए कई इलाकों से सेनाओं को पीछे हटाया गया और कुछ स्थानों पर बफर ज़ोन बनाए गए।

फिल्म में सलमान खान भारतीय सेना के एक अधिकारी की भूमिका में नज़र आएंगे। निर्देशक अपूर्व लाखिया की इस फिल्म के टीज़र में बर्फ़ीला इलाका, कठिन भौगोलिक परिस्थितियां और आमने-सामने की लड़ाई के दृश्य दिखाए गए हैं। यह सब ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात सैनिकों की चुनौतियों की झलक देता है। सलमान का गंभीर और संयमित अंदाज़ इस कहानी की गंभीरता को और गहरा करता है। फिल्म में अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह भी अहम भूमिका में दिखाई देंगी। यह फिल्म 17 अप्रैल 2026 को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली है।

इसी बीच, गलवान घाटी की घटना की स्मृति को जीवित रखने के लिए भारत सरकार ने भी ठोस कदम उठाए हैं। 7 दिसंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘गलवान युद्ध स्मारक’ का उद्घाटन किया। यह स्मारक उन 20 वीर सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 14,500 फ़ीट की ऊंचाई पर बने इस स्मारक को सीमा सड़क संगठन ने सीमित समय में पूरा किया, जो एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

इस तरह 'बैटल ऑफ गलवान' केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास, भावनाओं और राजनीति से जुड़ा एक ऐसा विषय बन गई है, जिस पर अलग-अलग नज़रिए सामने आ रहे हैं। जहां एक ओर यह फिल्म भारतीय दर्शकों के लिए शौर्य और बलिदान की कहानी कहती है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसने बहस और सवालों को जन्म दे दिया है।

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