महागठबंधन की हार के 3 कारणः जातीय गठबंधन, जंगल राज की छाया और कमजोर समन्वय

राष्ट्रीय जनता दल ने 2025 के चुनाव में अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक के साथ प्रवेश किया, जो बिहार के लगभग 30% मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि यह ऐतिहासिक रूप से मजबूत आधार रहा है, लेकिन त्रिकोणीय और प्रतिस्पर्धी चुनाव में यह पर्याप्त नहीं था। तेजस्वी यादव को अत्यंत पिछड़ी जातियों, दलित और युवाओं तक पहुँच बनाने में कठिनाई हुई।

By डॉ. अभिज्ञात

Nov 14, 2025 15:42 IST

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में सत्ता वापस लेने की महागठबंधन की महत्वाकांक्षी कोशिश असफल रही। सत्ता पक्ष राष्ट्रीय जनता दल की अगुवाई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एऩडीए) 200 से अधिक सीटों पर जीत की ओर बढ़ रहा है। शुरुआती रुझान विपक्षी दल की आंतरिक कमजोरियों को उजागर कर रहे हैं।

संगठनात्मक कमजोरियाँः महागठबंधन के लिए चुनाव जीतना मुश्किल बना क्योंकि संगठन में जातीय गठबंधन, 'जंगल राज' की छाया और कांग्रेस द्वारा 'वोट चोरी' के आरोप पर जोर देना जैसी परिस्थितियाँ बनीं।

राजद का परंपरागत वोट बैंक सीमित: राष्ट्रीय जनता दल ने 2025 के चुनाव में अपने पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक के साथ प्रवेश किया, जो बिहार के लगभग 30% मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि यह ऐतिहासिक रूप से मजबूत आधार रहा है, लेकिन त्रिकोणीय और प्रतिस्पर्धी चुनाव में यह पर्याप्त नहीं था। तेजस्वी यादव को अत्यंत पिछड़ी जातियों, दलित और युवाओं तक पहुँच बनाने में कठिनाई हुई। इनका रुझान पिछले दशक में लगातार जदयू-भाजपा गठबंधन की रहा है।

पुरानी राजनीति और जंगल राज का असर: 1990 में भागलपुर दंगों के बाद लालू प्रसाद यादव द्वारा तैयार किया गया एमवाई (मुस्लिम यादव) फॉर्मूला 2005 तक पार्टी को लगातार सत्ता तक ले गया लेकिन 2025 के चुनाव में यह फॉर्मूला सीमित साबित हुआ। 2023 की जातीय सर्वेक्षण पहल, जिसे पिछड़ी जातियों के सशक्तीकरण का मील का पत्थर बताया गया, वह व्यापक स्तर पर असर नहीं डाल सकी।

जंगल राज की छाया: तेजस्वी यादव ने राजद को शासन और कल्याण की पार्टी के रूप में पुनः स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन 1990-2005 की 'जंगल राज' की छाया मतदाताओं के लिए एक बड़ी बाधा बनी रही। उस दौर में अपहरण, जातिगत हिंसा, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था का पतन आम था।

एनडीएक का विकास पर जोर: जद(यू) और एनडीए ने चुनाव के दौरान दिखाया कि अब चुनाव पहले की तुलना में हिंसा और दुराचार से मुक्त हो रहे हैं। 1985, 1990 और 1995 के चुनावों में दर्जनों मौतें हुई थीं और कई बूथों में पुन: मतदान हुआ था, जबकि 2025 के चुनाव में शून्य पुनर्मत और शून्य हिंसा दर्ज हुई।

कांग्रेस और अन्य घटक दलों की कमजोरियाँ: महागठबंधन के घटक कांग्रेस के वोट शेयर और सीटों में गिरावट आयी। वीआईपी और अन्य छोटे दल भी अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाए। महागठबंधन के अंदर सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट्स' और कमजोर बूथ-स्तरीय समन्वय ने नुकसान पहुँचाया।

मतदाता का रुझान और नेतृत्व: बिहार के मतदाता राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर स्थायित्व, महिला सशक्तीकरण, कल्याण योजनाओं और नीतियों पर ध्यान दे रहे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों के बैंक खातों में प्रत्यक्ष लाभ पहुँचाया, जिससे उनके प्रशासन की छवि मजबूत हुई।

मतदान और संभावित परिणाम: बिहार में मतदान प्रतिशत ऐतिहासिक 67.13% दर्ज किया गया, जिसमें महिला मतदाता पुरुषों से आगे रहे। महिलाओं का मतदान 71.6% और पुरुषों का 62.8% रहा। शुरुआती रुझान एनडीए के मजबूत और निर्णायक बढ़त की ओर इशारा कर रहे हैं।

पिछले चुनावों का विवरण: 2020 में एनडीए ने 125 सीटें और महागठबंधन ने 110 जीती थीं। प्रमुख दलों में से जद(यू) को 43, भाजपा को 74, राजद को 75 और कांग्रेस को 19 सीटें मिली थीं।

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