बिहार और केंद्र की राजनीति के एक बड़े चेहरे रामविलास पासवान का 2020 के अक्टूबर में निधन हो गया था। उनकी पार्टी में तभी से टूट-फूट और अंतरकलह नजर आने लगी थी। लोक जनशक्ति पार्टी में रामविलास के बेटे चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच सीधी टक्कर शुरू हो गई थी। अंतरकलह में चिराग ने अपनी ही पार्टी में पद भी खो दिया। उनकी राजनीतिक करियर पर सवाल खड़े हो गए। उसके तुरंत बाद एनडीए के सहयोगी बनकर मंत्री बने चिराग के ‘शत्रु’ पशुपति कुमार पारस। उसी 2021 में चिराग ने खुद को बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ बताया था।
कट टू 2025: चिराग ने खुद को सही मायने में ‘हनुमान’ साबित कर दिया। 2025 के विधानसभा चुनावों के नतीजों के दिन, दोपहर 2 बजे तक उनकी पार्टी की स्ट्राइक रेट 75% थी। बिहार में चिराग पासवान ने एनडीए यानी नीतिश के 200 से पार पहुंचने की बुनियाद तैयार कर दी।
चिराग की अहमियत कहां है?
रामविलास पासवान बिहार के दलित समुदाय के बड़े नेता थे। उनकी पार्टी LJP दलित और कुछ अल्पसंख्यकों की भरोसे की जगह रही थी। बाद में एक ओर पार्टी के अंदर कलह और दूसरी ओर JDU-RJD के बीच राजनीतिक खींचातानी के कारण सीटों के लिहाज से LJP का आधार कमजोर होता गया। बिहार की राजनीति में LJP के प्रभाव को समझने के लिए 2020 और 2025 के विधानसभा चुनाव परिणामों को साथ-साथ देखना जरूरी है।
2020 के विधानसभा चुनाव में LJP किसी गठबंधन में नहीं गई और अकेले चुनाव लड़ा। 135 सीटों पर अकेले लड़कर सिर्फ 1 सीट जीती थी। उस चुनाव में JDU को भी बड़ा झटका लगा, एक झटके में उसकी 28 सीटें कम होकर 43 पर आ गईं। LJP पहले भी दावा करती रही है कि जातिगत समीकरणों पर चलने वाले बिहार के चुनावों में हर सीट पर उसका निश्चित वोट बैंक है। LJP के अकेले लड़ने से वह वोट नीतिश की झोली से निकल गया और नीतिश के वोटबैंक को नुकसान पहुंचा। 2020 के आंकड़ों में यह तस्वीर साफ दिखी थी। उस समय इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट थी कि वोट कटने के कारण कम से कम 120 सीटों के नतीजे प्रभावित हुए। खासतौर पर तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों के वोट उन सीटों पर जीत के अंतर को प्रभावित कर रहे थे। उन 120 सीटों में से 54 पर LJP के उम्मीदवार थे।
वही LJP इस बार चिराग के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन में रहकर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी। 14 नवंबर दोपहर तक के नतीजों के अनुसार, LJP ने बड़ा चौंकाया है। चुनाव से पहले चिराग ने लड़ाई कर गठबंधन में 29 सीटें हासिल की थीं। इनमें से 22 पर उनकी पार्टी आगे चल रही है। दूसरी ओर JDU इस बार 80 पार कर चुकी है, BJP उससे भी ज्यादा। विशेषज्ञों के मुताबिक, अब तक के नतीजों में चिराग की LJP ने खुद भी जीत दर्ज की है और साथ ही एनडीए सहयोगियों की झोली भी भर दी है।
संघर्ष से शिखर तक
चिराग ने यह जीत एक दिन में हासिल नहीं की है। शिखर तक पहुंचने के लिए उन्होंने संघर्ष किया है। 2021 के झटके के बाद उन्होंने खुद संगठन पर ध्यान दिया। दलित चेहरा और युवा चेहरा—दोनों को आधार बनाकर उन्होंने राजनीतिक मैदान में काम शुरू किया। 2024 में चिराग की पार्टी LJP (रामविलास) को BJP ने गठबंधन में सहयोगी बनाया। पिता रामविलास के गढ़ हाजीपुर से लोकसभा जीतकर वे केंद्रीय मंत्री बने। इस बार राज्य की राजनीति में भी चिराग पासवान ने ‘जाति’ और ‘क्षमता’ दोनों को दम दिखा दिया।