अखिलेश यादव की एंट्री से बदला समीकरण, तेजस्वी को ‘युवा नेतृत्व’ की नई धार देने की कोशिश

सपा प्रमुख ने नवादा रैली में कहा — ‘नौकरी के लिए वोट करें, नई पीढ़ी के तेजस्वी का साथ दें’

By श्वेता सिंह

Nov 05, 2025 18:32 IST

बिहार की राजनीति इस वक्त पूरे उफान पर है। पहले चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले नवादा में समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की जनसभा ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया। महागठबंधन के समर्थन में उतरे अखिलेश ने रोजगार, महंगाई, और युवाओं के मुद्दे को केंद्र में रखते हुए भाजपा पर करारा प्रहार किया। उनका संदेश साफ था — “बदलाव की बयार चल पड़ी है, बिहार बदलेगा और सरकार बदलेगी।”

नई पीढ़ी के तेजस्वी का समर्थन करें — अखिलेश की अपील

नवादा की रैली में सपा प्रमुख ने कहा ,“मैं बिहार के लोगों से आग्रह करता हूं कि वे बड़ी संख्या में मतदान करें। नौकरियों के लिए मतदान करें और नई पीढ़ी के तेजस्वी का समर्थन करें।” उन्होंने भीड़ से सीधा संवाद करते हुए कहा कि बिहार के युवाओं में एक नई ऊर्जा दिखाई दे रही है। अखिलेश ने कहा कि बिहार के मतदाताओं ने “मन बना लिया है” और जनता के बीच “तेजस्वी के लिए लगाव और उम्मीद” बढ़ती जा रही है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक अखिलेश का यह बयान सिर्फ प्रचार भाषण नहीं बल्कि महागठबंधन के संदेश को भावनात्मक रूप से मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा था। उनका मकसद था — तेजस्वी को “नई पीढ़ी का चेहरा” और बदलाव का प्रतीक बनाना।

रोजगार पर केंद्रित हमला — BJP की नीति पर सीधा प्रश्नचिह्न

रैली का केंद्र बिंदु रहा “रोजगार”। अखिलेश ने कहा , “भाजपा वाले पूछते हैं कि नौकरी कहां से देंगे। वे इसलिए पूछते हैं क्योंकि नौकरी उनके एजेंडे में है ही नहीं। अगर होती तो 10 साल केंद्र और 20 साल बिहार का हिसाब देते।” इस बयान के साथ अखिलेश ने बिहार के युवाओं की बेरोजगारी को राष्ट्रीय मुद्दे से जोड़ दिया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार की राजनीति में “रोजगार” हमेशा एक निर्णायक मुद्दा रहा है। 2015 में भी महागठबंधन ने इसी एजेंडे से लाभ पाया था। अब अखिलेश उसी सूत्र को दोहराते दिखे।

‘अग्निवीर’ पर निशाना, भावनात्मक मुद्दे को रोजगार से जोड़ा

केंद्र की ‘अग्निवीर योजना’ को अखिलेश यादव ने इस तरह निशाना बनाया कि वह आर्थिक और भावनात्मक — दोनों स्तरों पर असर डाल सके। उन्होंने कहा ,“हम लोग यह व्यवस्था खत्म करेंगे। नौजवान फौज में भर्ती होना चाहता है, वर्दी पहनना चाहता है लेकिन इन्होंने उससे वो सपना भी छीन लिया।” उनका यह वक्तव्य न केवल युवाओं की नाराजगी को सामने लाता है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर “नौकरी के अधिकार” को पुनः विमर्श में लाता है। चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि “अग्निवीर” मुद्दा बिहार में भावनात्मक रूप से संवेदनशील है क्योंकि यहां बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती होते रहे हैं।

महंगाई का प्रतीक ‘पारले-जी’ — जनभाषा में राजनीति

अखिलेश यादव ने अपने भाषण में महंगाई का उल्लेख एक दिलचस्प उदाहरण से किया ,“भाजपा वालों ने इतनी महंगाई बढ़ा दी कि गरीबों का पारले-जी बिस्किट का पैकेट भी छोटा कर दिया।” यह वाक्य राजनीतिक भाषण से ज्यादा जनसंवाद की भाषा में था। ऐसे उदाहरणों से वे सीधे आम जनता की जेब और रसोई से जुड़ते हैं — जो ग्रामीण और निम्न-मध्यम वर्ग के मतदाताओं पर सीधा असर डालते हैं।

‘वोट की सुरक्षा करें’ — राहुल गांधी के बयान का समर्थन

हरियाणा चुनावों में राहुल गांधी द्वारा उठाए गए “वोटों में हेराफेरी” के मुद्दे पर अखिलेश यादव ने सहमति जताई। उन्होंने कहा, “यह कोई नई बात नहीं है। बिहार में भी मतदाताओं को घर पर रहने की हिदायत दी जा रही है। लोगों को अपने वोट की सुरक्षा करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी गिनती हो।” यह बयान विपक्ष की एकजुटता और “लोकतंत्र बनाम सत्ता” के नैरेटिव को और धार देता है।

बिहार की राजनीति में अखिलेश की एंट्री का क्या असर?

बिहार चुनाव में सपा का संगठनात्मक प्रभाव सीमित है लेकिन अखिलेश यादव की छवि एक युवा और सशक्त विपक्षी नेता के रूप में मजबूत है। उनका प्रचार तेजस्वी यादव के पक्ष में “युवा विपक्षी एकता” का संदेश देता है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अखिलेश की उपस्थिति से महागठबंधन को “राष्ट्रीय विपक्ष की एकजुटता” का फायदा मिल सकता है। युवाओं, छात्रों और नौकरी चाहने वालों के बीच तेजस्वी के नैरेटिव को समर्थन मिलेगा। उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती जिलों में सपा की छवि से अप्रत्यक्ष मत प्रभाव संभव है। पहले चरण की 94 सीटों में कई सीटें ऐसी हैं जहां युवा मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। महागठबंधन के लिए चुनौती यह है कि अखिलेश जैसे नेताओं के भाषणों की ऊर्जा को मतदान में परिवर्तित किया जाए।

बिहार की हवा में ‘बदलाव’ की गंध या रणनीतिक शोर?

अखिलेश यादव की एंट्री से बिहार चुनाव में विपक्षी एकजुटता का चेहरा मजबूत हुआ है। उनकी भाषण शैली ने तेजस्वी यादव के अभियान को “रोजगार और युवाओं” के केंद्र में ला दिया है। लेकिन क्या यह ऊर्जा वोटों में बदल पाएगी? यह 14 नवंबर को होने वाले नतीजे तय करेंगे। फिलहाल इतना तय है कि बिहार की राजनीति में इस बार बहस का केंद्र “नौकरी बनाम नारा” है और अखिलेश यादव ने इस बहस को और तेज कर दिया है।

चुनाव और परिणाम की तारीख

पहला चरण मतदान: 6 नवंबर

दूसरा चरण: 11 नवंबर

परिणाम: 14 नवंबर

Prev Article
'कान खोलकर सुन लो...', बिहार रैली से गृह मंत्री की पाकिस्तान को चेतावनी
Next Article
NDA का बिहार में प्रचंड विजय प्रदर्शन, INDIA गठबंधन हुआ धराशायी

Articles you may like: