मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड कायम किया है। बिहार में सत्ता पर काबिज होने का इतिहास खंगालने पर आप को हैरानी होगी। जनता दल सुप्रीमो नीतीश कुमार ने पिछले 20 सालों में कोई विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। इस बार भी 'बिहार के लाल' बिहार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। तो फिर नीतीश किस बलबूते पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने हुए हैं!
विधानसभा से संसदीय चुनाव तक
आंकड़े बताते हैं कि जनता दल सुप्रीमो नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ा है। उन्हें केवल एक बार जीत मिली है। उन्होंने 1977, 1980 और 1985 में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। इनमें से उन्हें केवल एक बार 1985 में जीत हासिल हुई थी। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि लोकसभा चुनावों में जनता दल सुप्रीमो की सफलता दर विधानसभा चुनावों से ज्यादा है। उन्होंने लगातार छह लोकसभा चुनाव लड़े। गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने इन सभी में जीत हासिल की।
नीतीश की पहली संसदीय सीट बाढ़ थी। उन्होंने वहां से चार बार चुनाव लड़ा। बाद में 2004 में उन्होंने नालंदा के साथ-साथ बाढ़ से भी चुनाव लड़ा। हालांकि उस साल बाढ़ से नीतीश को कोई और जीत नहीं मिली लेकिन जनता दल ने नालंदा जीतकर अपनी लाज बचा ली। नीतीश का भाग्य उस आखिरी जनता दल के नतीजों पर निर्भर था। उसके बाद उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कोई चुनाव नहीं लड़ा।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश का करिश्मा
2000 में नीतीश कुमार ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन आठ दिनों के भीतर ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि उस समय वे किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। उसके बाद 2005 में सत्ता में वापसी के बाद वे बिना विधायक रहे ही मुख्यमंत्री बन गए। किसी भी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के बजाय वे विधान परिषद के सदस्य बन गए। जनता दल पार्टी सुप्रीमो विधान परिषद के सदस्य होने के लाभ के साथ सदन में मुख्यमंत्री के रूप में बैठे। वह बार-बार उस शॉर्टकट का उपयोग करके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे हैं।
गौरतलब है कि भारत में फिलहाल केवल छह राज्यों में विधान परिषदें हैं। बिहार उनमें से एक है। इन सभी राज्यों में विधानमंडल के दो सदन हैं। निचला सदन विधान सभा है। विधानसभा के सदस्य जनता के वोट से जीते हुए विधायक होते हैं। ऊपरी सदन विधान परिषद है, जिसके सदस्य बिना विधानसभा चुनाव लड़े मंत्री या मुख्यमंत्री बन सकते हैं। नीतीश इसी शॉर्टकट के ज़रिए बार-बार राज्य के मुखिया की कुर्सी तक पहुँचते रहे हैं। इसी रणनीति ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक दुर्लभ व्यक्ति बना दिया है।
इस मुद्दे पर नीतीश की क्या प्रतिक्रिया है?
इस सवाल के जवाब में नीतीश कुमार ने कहा था, "मैंने जानबूझकर एमएलसी बनने का रास्ता चुना है किसी मजबूरी के कारण नहीं। उच्च सदन सम्मान का स्थान होता है।" वह 2018 से 2024 तक विधान परिषद के लिए चुने गए हैं। इस साल भी नीतीश चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। नीतीश की अगली रणनीति इस बात पर निर्भर करती है कि 14 नवंबर को बिहार विधानसभा के नतीजे आने के बाद पटना का समीकरण क्या बनता है।