मायापुर में कई मतदाताओं के पिता का नाम एक ही, अनियमितता या कुछ और ?

By तितली विश्वास, Posted by: लखन भारती.

Nov 12, 2025 01:04 IST

2002 की मतदाता सूची में सभी अपना नाम खोज रहे हैं, नहीं तो माता-पिता या परिजनों का नाम। लेकिन एक साथ 60-70 लोगों के अभिभावक का नाम यदि एक ही हो ? कहानी नहीं, यही हुआ है मायापुर के इस्कॉन के कई भक्तों के मामले में। 2002 की मतदाता सूची में उन सभी भक्तों के पिता या माता के नाम की जगह लिखा है 'जयपताका स्वामी दास'। रिश्ते की जगह लिखा है, पिता। और इसी को लेकर हंगामा मच गया है।

मायापुर इस्कॉन के कई भक्त 77 नंबर नबद्वीप विधानसभा केंद्र के 10 नंबर भाग में ठाकुर भक्तिविनोद निम्न बुनियादी प्राथमिक विद्यालय में वोट देते हैं। कम से कम 60-70 भक्तों के 'पिता के नाम' की जगह लिखा है जयपताका स्वामी दास। एसआईआर में क्या उन सभी का नाम हट जाएगा ? इसे लेकर वे काफी चिंतित हैं। हालांकि सार्वजनिक रूप से इस्कॉन के भक्त कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं। इस विषय में इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी रसिक गौरांग दास कहते हैं, 'यह निर्वाचन आयोग का मामला है। मैं बिना जाने टिप्पणी नहीं करूंगा। बीएलओ या बीएलए जांच करके इस विषय को बता सकेंगे।'

क्या यह विषय असामान्य है ? नबद्वीप ब्लॉक के एक अधिकारी ने बताया है कि संन्यास ग्रहण करने के बाद चूंकि कई भक्त संसार त्याग देते हैं, इसलिए कई गुरु महाराज को अभिभावक के रूप में चुनते हैं। तब उनका फोटो पहचान पत्र गुरु पिता के नाम से ही बनता है। इसमें कोई गलती नहीं है।

राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के एक सूत्र से खबर है कि एक दिशानिर्देश में आयोग ने ऐसे रिश्ते को मानने की बात कही है—यानी 'पिता' के रूप में उन्हें माना जाएगा। राज्य के अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी अरिंदम नियोगी इस विषय में 'एई समय ऑनलाइन' से कहते हैं, 'कोई भी रिश्ता लिखा जा सकता है। सुनवाई होगी। कोई समस्या नहीं है।'

इस विषय में सीपीएम की राज्य कमेटी की सदस्य रमा बिश्वास कहती हैं, 'हमने ही पहले सर्वदलीय बैठक में इस विषय को उठाया था। भारत के संविधान के अनुसार फोटो पहचान पत्र में पिता का नाम होना ही वांछनीय है। गुरुदेव से कोई दीक्षा ले सकता है लेकिन भारत के संविधान के अनुसार इंसान की मां और पिता की पहचान नहीं बदलती। हम मानते हैं कि वही होना चाहिए।'

नबद्वीप पंचायत समिति के उप-सभापति तथा तृणमूल नेता तापस घोष कहते हैं, 'भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों की मदद लेकर गुरु महाराजों को पिता बनाकर यह सब कराया गया था।' कई लोगों का सवाल है कि इस मामले में निगरानी शिथिल होने पर फर्जी मतदाता को वैधता मिल जाएगी। आयोग का स्पष्ट जवाब है कि सुनवाई के बिना इस मामले में नाम नहीं हटेगा।

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