सिऊड़ी के डांगाल पाड़ा में सुरेन ठाकुर की पूजा। यही नाम से सभी उन्हें जानते हैं। दरअसल में यह घर की दुर्गापूजा है, लेकिन अब स्थानीय लोगों की भी भीड़ उमड़ने लगी है। इस पूजा की कई विशेषताएँ हैं।
डांगाल मोहल्ले के सुरेन ठाकुर के घर की पूजा में माता दुर्गा के दाईं तरफ गणेश और सरस्वती हैं, और बाईं तरफ कार्तिक और लक्ष्मी हैं। यहां देवी दुर्गा के साथ ही माता काली भी एक ही वेदी में पूजित होती हैं। इस घर में पूजा के बाद सारी साल मूर्ति रहती है। प्रतिदिन पूजा होती है। ठीक अगले साल की पूजा में षष्ठी को पुरानी दुर्गा मूर्ति और काली मूर्ति को पूजा के बाद मंदिर के बाहर रख दिया जाता है। वही षष्ठी को नई दुर्गा मूर्ति मंदिर में आती है, और उसकी पूजा संध्या समय में होती है।
महाष्टमी की आधी रात के पूजा के समय देवी काली की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। नवमी को देवी दुर्गा और देवी काली, दोनों की पूजा की जाती है। दशमी को मां दुर्गा की घट स्थापित का विसर्जन होता है और सिंदूर खेला जाता है। एकादशी को पुराने मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।परिवार ने क्या बताया कि पहले बांग्लादेश में कुमिला के ब्राह्मणबेरिया क्षेत्र में जमींदार हरीहर चक्रवर्ती थे। उन्होंने वहां पूजा शुरू की थी। 1941 के अस्थिर समय में हरीहर चक्रवर्ती के पुत्र सुरेंद्रनाथ चक्रवर्ती, उनकी पत्नी, बेटा और भतीजों ने कुमिला छोड़ दिया। वे पहले सियालदह आए। उसके बाद सिउड़ी में आकर बसने लगे। फिर यहीं उन्होंने अपने बांग्लादेश के घर में देवी दुर्गा और देवी काली की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की।
सुरेन ठाकुर यानी सुरेंद्रनाथ चक्रवर्ती के पोते कालीप्रसाद चक्रवर्ती कहते हैं, 'सुना है कि उन्होंने पूर्व बंगाल की तत्कालीन स्थिति को देखते हुए यहाँ आने का निर्णय लिया था। डांगालपाड़ा में आकर उन्होंने निवास शुरू किया। यहाँ उन्होंने पूजा का नया आरंभ किया। अब इस पूजा में गाँव के लगभग हर व्यक्ति भाग लेता है।'