मुंबई: महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध लोनार झील के जलस्तर में तेजी से हो रही वृद्धि ने संरक्षण और संरक्षण से जुड़ी चिंताएं बढ़ा दी हैं। बढ़ते जलस्तर के कारण प्राचीन स्थल पर मौजूद कई मंदिर जलमग्न हो गए हैं। यह स्थिति पिछले कुछ वर्षों से देखी जा रही है, जिसके चलते जिला प्रशासन ने कारणों की जांच के लिए आईआईटी बॉम्बे के विशेषज्ञों को शामिल किया है। लगभग 50,000 वर्ष पहले एक उच्च वेग वाले उल्कापिंड के टकराने से बनी लोनार झील दुनिया की सबसे बड़ी बेसाल्टिक इम्पैक्ट क्रेटर झील मानी जाती है। इसकी खारी-क्षारीय जलराशि और आसपास का अनूठा पारिस्थितिकी तंत्र भारत और दुनिया भर के शोध संस्थानों को आकर्षित करता रहा है।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई से लगभग 460 किलोमीटर दूर स्थित यह रामसर साइट (अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि) कई प्राचीन मंदिरों का घर है, जिनमें से कुछ 1,200 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं लेकिन जलस्तर बढ़ने के कारण प्रसिद्ध कमलजा देवी मंदिर सहित कई मंदिर डूब गए हैं। प्रशासन इस असामान्य स्थिति के पीछे के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के नागपुर सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद अरुण मलिक ने बताया कि झील के निचले किनारे पर स्थित 15 मंदिर एएसआई के अधीन आते हैं। उन्होंने बताया कि गैमुख मंदिर परिसर में एक प्राकृतिक जलस्रोत है जो झील में प्रवाहित होता है।
मलिक ने अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि पिछले पांच से छह वर्षों में लोनार झील का जलस्तर लगातार बढ़ा है, जिससे प्राचीन मंदिरों को खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि आरक्षित वन क्षेत्र विकसित होने के बाद जलस्तर में वृद्धि देखी गई है। गूगल अर्थ की पुरानी तस्वीरों में झील का जलस्तर काफी कम दिखाई देता है। उन्होंने यह भी बताया कि कमलजा देवी मंदिर में विशेष रूप से दशहरे के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर एप्रन वॉल और प्लेटफॉर्म बनाने की योजना है ताकि जलस्तर बढ़ने पर भी मंदिर तक पहुंच बनी रहे।
स्थानीय शोधकर्ता और गाइड सचिन कपूर ने भी कहा कि पिछले चार-पांच वर्षों में झील का जलस्तर बढ़ा है और कमलजा मंदिर का डूबना गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने लोनार क्रेटर के संरक्षण को अत्यंत आवश्यक बताया। विदर्भ क्षेत्र के पर्यावरणविद सुरेश चोपने ने भी जलस्तर बढ़ने की पुष्टि करते हुए कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। बुलढाणा के जिला कलेक्टर किरण पाटिल ने बताया कि गैमुख मंदिर से लगातार पानी का प्रवाह हो रहा है। क्षेत्र में मौजूद कई मंदिरों में से चार अभी भी कार्यशील हैं, जबकि कमलजा मंदिर और उसके पास स्थित मीठे पानी का कुआं पानी में डूब चुका है। उन्होंने बताया कि झील का पानी बेसाल्टिक लावा संरचना के कारण खारा है और झील से पानी निकलने का कोई प्राकृतिक रास्ता नहीं है। पाटिल ने कहा कि हाल के वर्षों में वर्षा के पैटर्न में बदलाव आया है और इस साल लोनार में बादल फटने जैसी घटनाएं और भारी बारिश हुई है। इसी कारण लोनार में एक ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन स्थापित किया गया है। इसके अलावा झील के किनारे कई अन्य जलस्रोत भी सक्रिय हैं जो जलस्तर बढ़ने का कारण हो सकते हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि झील में किसी प्रकार का कृत्रिम हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है। आईआईटी बॉम्बे के विशेषज्ञों ने झील से नमूने एकत्र किए हैं और वे यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह परिवर्तन क्यों हो रहा है, इसके पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं और आगे क्या कदम उठाए जाने चाहिए। अन्य वैज्ञानिकों ने भी झील से नमूने लिए हैं। कलेक्टर ने कहा कि झील में स्नान या किसी भी प्रकार की गतिविधि पर रोक है और पूरा क्षेत्र सीसीटीवी निगरानी में है। आरक्षित वन क्षेत्र की भूमिका को लेकर अभी स्पष्ट निष्कर्ष नहीं है लेकिन वनस्पति और मिट्टी के प्रभाव पर अध्ययन किया जाएगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों, छात्रों और शोधकर्ताओं को लोनार में अध्ययन के लिए आमंत्रित किया और कहा कि इसके लिए प्रयोगशाला सुविधा भी उपलब्ध है।