पटनाः प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा ने कहा है कि बिहार जैसे राज्य फिल्म निर्माताओं के लिए पसंदीदा शूटिंग डेस्टिनेशन बन सकते हैं, लेकिन इसके लिए सरकारों को सिर्फ सब्सिडी देने से आगे सोचना होगा। पटना दौरे पर PTI से बातचीत में उन्होंने जोर देकर कहा कि फिल्म नीति बनाते समय निर्माताओं और निर्देशकों से संवाद बेहद जरूरी है।
‘मुल्क’, ‘आर्टिकल 15’ और ‘थप्पड़’ जैसी चर्चित फिल्मों के निर्देशक अनुभव सिन्हा इन दिनों ‘चल पिक्चर चलें’ नामक अपनी बहु-शहरी यात्रा पर हैं। उनका कहना है कि इस सफर में उन्होंने महसूस किया कि छोटे शहरों और महानगरों के दर्शकों की पसंद में अब कोई बड़ा फर्क नहीं रह गया है।
उत्तर प्रदेश और बिहार की फिल्म नीतियों की सराहना करते हुए भी सिन्हा ने कहा कि ये नीतियां मुख्य रूप से शूटिंग सब्सिडी तक सीमित हैं। उनके मुताबिक, दोनों राज्य बड़े बाजार हैं और यहां फिल्म सिटी की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन नीतियां ज़मीनी जरूरतों को समझे बिना बनाई जा रही हैं।
अनुभव सिन्हा ने सुझाव दिया कि राज्यों को फिल्म संस्थान खोलने चाहिए, जिससे प्रशिक्षित स्थानीय तकनीशियन, लेखक और सहायक स्टाफ तैयार हो सके। इससे मुंबई जैसे बड़े फिल्म केंद्रों से आने वाले निर्माताओं के लिए शूटिंग आसान होगी और लागत से ज्यादा सुविधा व संसाधन अहम बनेंगे।
हिंसक फिल्मों पर बढ़ती बहस पर टिप्पणी करते हुए सिन्हा ने कहा कि आज के दौर में दर्शक टीवी और खबरों के जरिए पहले से ज्यादा हिंसा देख रहे हैं। हालांकि उनका मानना है कि अंततः इंसान प्रेम और शांति की कहानियों से ही जुड़ता है। उन्होंने कहा कि ‘एनिमल’ जैसी फिल्मों की सफलता के पीछे भी मूल भावनात्मक कथा ही है।
‘प्रोपेगेंडा फिल्मों’ के आरोपों पर सिन्हा ने साफ कहा कि हर दौर में ऐसी फिल्में बनती रही हैं और विविधताओं से भरे भारत में किसी एक फॉर्मूले का लंबे समय तक चलना संभव नहीं है। उन्होंने भोजपुरी सिनेमा के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए कहा कि पारिवारिक दर्शकों के दूर हो जाने से कंटेंट की गुणवत्ता प्रभावित हुई है और निर्माता जल्दी मुनाफे के लिए कमजोर सामग्री परोस रहे हैं।