हीली के सीमांत गाँव रायनगर के टूटी टिन की छत वाले घर से पैराॅलिंपिक्स की ट्रैक एंड फील्ड में विश्व जीत का सपना। अभी तक सफलता की झोली में उनके पास तीन-तीन राष्ट्रीय पदक हैं। उनके इवेंट 1500 मीटर, 5000 मीटर, 20 किलोमीटर मैराथन हैं।
शारीरिक विकलांगता को जीतने के बावजूद शुभजीत को आर्थिक समस्याओं के कारण बार-बार संघर्ष के रास्ते में रुकना पड़ता है। रायनगर की संकरी गली के अंत में शुभजीत के पिता समीर चौधरी एक छोटे होटल चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। अपने बेटे को पेशेवर एथलीट बनाना उनके लिए एक विलासिता है। जन्म से ही बांयी आंख से दिखती नहीं है। सरकारी दस्तावेजों में शुभजीत को सौ प्रतिशत विकलांग दर्ज किया गया है लेकिन वह कागज़ों का शब्द कभी उसके मन में किसी बाधा का एहसास नहीं पैदा कर सका। 2022 में उसकी एथलीट ज़िंदगी की शुरुआत हुई। उसके बाद उसे पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा। 2023 में दिल्ली में खेलो इंडिया प्रतियोगिता में 1500 मीटर में देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर दौड़ते हुए चौथा स्थान हासिल किया।
2025 में चेनई में नेशनल चैंपियनशिप में 5000 मीटर दौड़ में उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया और रजत पदक जीता। शुभजीत का कहना है,-'मेरा सपना है कि मैं देश के लिए दौड़ूं और देश का झंडा अपने सीने पर लहराऊँ। मैं हरियाणा में किसी अच्छे कोच से प्रशिक्षण लेना चाहता हूँ लेकिन खर्च संभाल पाना हमारे लिए असंभव है। सरकार की मदद के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है, लेकिन मैं हार मानना नहीं चाहता'। बेटे के जिद की कहानी पिता समीर की आवाज़ में भी सुनाई देती है। उनका कहना है, 'छोटे से ही उसकी आंखों में चमक नहीं थी, दिल में जिद और सपने थे हज़ार सूरजों की रोशनी से भरी। अब बस यह चाहता हूँ कि कोई उसके साथ खड़ा हो।'