नयी दिल्ली: संसद में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई विशेष चर्चा को लेकर राजनीतिक विवाद गहरा गया है। कुछ विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह बहस आगामी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर तय की गई है। इस पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसे आरोप न केवल निराधार हैं, बल्कि राष्ट्रीय गीत के ऐतिहासिक महत्व को संकीर्ण राजनीति के दायरे में सीमित करने का प्रयास भी हैं।
शाह ने कहा कि विपक्ष द्वारा चर्चा को बंगाल चुनावों से जोड़ना वंदे मातरम् की वास्तविक विरासत और उसके व्यापक प्रभाव की समझ की कमी को दर्शाता है। भले ही बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म बंगाल में हुआ और यह गीत वहीं से उद्भव हुआ, लेकिन उसकी गूंज कभी भी किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रही।
उन्होंने बताया कि वंदे मातरम् बंगाल की सांस्कृतिक चेतना से निकलकर राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख सूत्र बना और फिर विश्वभर में स्वतंत्रता सेनानियों की प्रेरणा का स्रोत बना। यह सोचना कि वंदे मातरम् का महिमामंडन करना बंगाल चुनावों से जुड़ा है, उसके राष्ट्रव्यापी प्रभाव को कम करके आंकना है। गृहमंत्री ने यह भी संकेत दिया कि विपक्ष का आरोप इस गहरे तथ्य की अनदेखी करता है कि आजादी के आंदोलन में बंगाल की भूमिका केंद्रीय रही है। चाहे वह वंदे मातरम् की रचना हो, अनगिनत क्रांतिकारियों का बलिदान हो या राष्ट्रवाद की वैचारिक धारा का उभार। उन्होंने कहा कि चर्चा का उद्देश्य बंगाल की इसी गौरवपूर्ण भूमिका को राष्ट्रीय मंच पर उजागर करना भी है, न कि किसी चुनावी समीकरण को साधना।
शाह ने तर्क दिया कि वंदे मातरम् की वर्षगांठ पर चर्चा का समय संसद के शीतकालीन सत्र के कार्यक्रम के अनुसार तय है और इसे किसी राज्य के चुनाव से जोड़कर देखने से राष्ट्रीय महत्व के विषयों का अवमूल्यन होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत का सम्मान देशव्यापी भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है, जिसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की प्रेरक कथाओं से जोड़ना है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि बंगाल के राजनीतिक संदर्भ में विपक्ष के बयान अनावश्यक तनाव पैदा करते हैं, जबकि वंदे मातरम् का संदेश एकता, समर्पण और राष्ट्रनिर्माण है। वे मूल भावनाएँ जिन्हें किसी चुनावी परिप्रेक्ष्य में बांधा नहीं जा सकता।