नयी दिल्लीः ग्रामीण भारत की धड़कन और स्त्री अनुभवों की गूंज को शब्द देने वाली वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्पा को इस वर्ष का “इफको साहित्य सम्मान 2025” प्रदान किया गया। वहीं, नई पीढ़ी की सशक्त लेखकीय आवाज़ अंकिता जैन को उनकी चर्चित कृति “ओह रे! किसान” के लिए “इफको युवा साहित्य सम्मान” से नवाज़ा गया।
नई दिल्ली के कामानी ऑडिटोरियम में 30 दिसंबर को आयोजित गरिमामय समारोह में इफको के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने दोनों लेखिकाओं को सम्मानित किया। तालियों की गूंज और साहित्यिक उत्साह के बीच यह आयोजन हिन्दी साहित्य के लिए एक यादगार क्षण बन गया।
30 नवंबर 1944 को अलीगढ़ जिले के सिकुर्रा गांव में जन्मीं मैत्रेयी पुष्पा का रचनात्मक व्यक्तित्व बुंदेलखंड की मिट्टी में रचा-बसा है। झांसी जिले के खिल्ली गांव में बीता उनका बचपन आगे चलकर उनकी रचनाओं की आत्मा बना। बुंदेलखंड कॉलेज, झांसी से हिन्दी साहित्य में एम.ए. करने वाली मैत्रेयी पुष्पा ने कथा, उपन्यास, आत्मकथा, स्त्री विमर्श, कविता और रिपोर्ताज आदि विधाओं में अपनी अलग पहचान बनाई। चिन्हार, गोमा हँसती है, छाँह, पियरी का सपना जैसे कहानी-संग्रह हों या बेतवा बहती रही, इदन्नमम, अल्मा कबूतरी, अगनपाखी जैसे उपन्यास-उनकी रचनाएँ ग्रामीण यथार्थ, सामाजिक बदलाव और स्त्री संघर्षों को सघन संवेदना के साथ प्रस्तुत करती हैं। उनकी कहानी “फ़ैसला” पर बनी टेलीफिल्म “वसुमति की चिट्ठी” और उपन्यास “इदन्नमम” पर आधारित धारावाहिक “मांडा हर युग में” ने उनकी रचनात्मक पहुंच को जन-जन तक पहुँचाया।
साहित्य जगत में उनका योगदान सार्क साहित्य पुरस्कार, प्रेमचंद सम्मान, महात्मा गांधी सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से पहले ही रेखांकित हो चुका है और अब इफको साहित्य सम्मान ने इस यात्रा में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया है।
वहीं, शोध सहायक और सहायक प्रोफेसर के रूप में अकादमिक दुनिया से लेखन की राह चुनने वाली अंकिता जैन समकालीन हिन्दी साहित्य की उभरती हुई सशक्त आवाज़ हैं। उनकी पहली पुस्तक “ऐसी वैसी औरत” ने बेस्टसेलर बनकर पाठकों का ध्यान खींचा। “मैं से माँ तक”, “बहेलिये”, “ओह रे! किसान”, उपन्यास “मोहल्ला सलीमबाग” और बाल उपन्यास “आतंकी मोर”-उनकी रचनाएँ विषय-विविधता और संवेदनशील दृष्टि के लिए सराही गई हैं।
लेखन के साथ-साथ अंकिता जैन का सामाजिक और रचनात्मक जुड़ाव भी उल्लेखनीय है। वे “वैदिक वाटिका” की निदेशक हैं और “जय जंगल फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी” के माध्यम से वन उपज से जुड़े आदिवासी स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के साथ काम कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, वे एक पेशेवर रूसी स्कल्पचर पेंटिंग कलाकार और प्रशिक्षक भी हैं, जो “आर्ट एंड अंकिता” के नाम से अपनी कला यात्राएँ संचालित करती हैं।
ग्रामीण भारत को स्वर देने वाला सम्मान
वर्ष 2011 में स्थापित इफको साहित्य सम्मान उन हिन्दी लेखकों को समर्पित है, जिनकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन की सच्ची तस्वीर उभरती है। इस सम्मान के अंतर्गत स्मृति-चिह्न, प्रशस्ति-पत्र और 11 लाख रुपये की सम्मान राशि प्रदान की जाती है। वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रकांता की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने ग्रामीण जीवन और बदलते भारत की यथार्थपरक प्रस्तुति के लिए मैत्रेयी पुष्पा का चयन किया।
समारोह में इफको के प्रबंध निदेशक के. जे. पटेल ने मैत्रेयी पुष्पा को गहरी सामाजिक चेतना से संपन्न लेखिका बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएँ बुंदेलखंड की आत्मा और स्त्री जीवन की बारीक परतों को अत्यंत संवेदनशीलता से उकेरती हैं।