गाजाः गाजा संघर्षविराम के बाद इज़रायली बंधकों की रिहाई के बदले 154 फिलिस्तीनी बंदियों को इज़रायली जेल से मुक्त किया गया था। लेकिन उन्हें अपने घर जाने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें एक बस में बैठाकर मिस्र भेजा गया, जहां उन्हें एक आलीशान पांच सितारा होटल में रखा गया है।
हालांकि वे वहां कड़ी निगरानी में दिन बिता रहे हैं। हत्या, प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से जुड़े होने और अन्य सुरक्षा संबंधी आरोपों में इज़रायल की सैन्य अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी थी। अब भी उन्हें न तो अपने परिवार से मिलने की अनुमति है, न ही अपने देश लौटने की और शायद कभी नहीं मिलेगी। मुराद अबू अल-रुब अब 45 वर्ष के हैं। इनमें से दो दशक उन्होंने इज़रायली जेल में बिताए। उन पर हत्या का आरोप था। रिहाई के बाद भी वे निराश हैं। उन्होंने कहा, 'बीस साल से परिवार से अलग था... कुछ भी नहीं बदला।' उन्होंने बताया कि वीडियो कॉल पर जब बहन से बात की, तो उसे पहचान भी नहीं पाए।
ऐसा ही अनुभव कामिल अबू हानिश ने भी साझा किया कि पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ पैलेस्टाइन (पीएफएलपी) से जुड़े होने के आरोप में वे 22 साल जेल में रहे। हानिश के अनुसार, मिस्र के इस होटल में वे बिल्कुल स्वतंत्र नहीं हैं। उन्हें कोई काम करने की अनुमति नहीं है। जेनिन शहर से बहुत दूर, एक अनजान देश में वे अब भी बंदी की तरह जीवन बिता रहे हैं। लंबे समय से मानवाधिकार संगठन इज़रायल की सैन्य अदालत की आलोचना करते रहे हैं। उनका कहना है कि वहां फिलिस्तीनी बंदियों को न्याय पाने का अवसर नहीं मिलता।
इन फिलिस्तीनी पूर्व बंदियों ने बताया कि जेल में उनका आख़िरी दिन सबसे कठिन था। 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद वहां बहुत कुछ बदल गया था। उनकी पढ़ाई, खेल, यहां तक कि कागज़-कलम रखने का अधिकार भी छीन लिया गया था। अबू अल-रुब ने कहा, 'हमारे कपड़े और कंबल तक जब्त कर लिए गए थे। हानिश का आरोप है कि रिहाई से पहले सभी बंदियों को रस्सियों से बांधकर, आंखों पर पट्टी लगाकर, घुटनों के बल बैठने को मजबूर किया गया था। रिहा होने के बावजूद ये पूर्व बंदी अब भी मिस्र के होटल में ही सीमित हैं। उन्हें बाहर जाने या कोई काम करने की अनुमति नहीं है। अब तक किसी भी सरकार ने उनके भविष्य पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
‘पैलेस्टाइन प्रिजनर्स क्लब’ के प्रवक्ता हसन अब्द रब्बो ने बताया कि इन बंदियों के रहने का खर्च क़तर सरकार उठा रही है। उनके पुनर्वास पर चर्चा चल रही है। संभावित गंतव्यों के रूप में क़तर, तुर्की, पाकिस्तान और मलेशिया के नाम सामने आए हैं, लेकिन उनका भविष्य अब भी अनिश्चित है।2023 के अक्टूबर में युद्ध शुरू होने के बाद इन बंदियों को शांति के प्रतीक के रूप में रिहा किया गया था। लेकिन हक़ीक़त में उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। जैसा कि एक बंदी ने कहा-'जंजीर बदली है, लेकिन बंदी अवस्था बनी रही है।'