मास्कोः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में दावा किया कि चीन और रूस गुप्त रूप से परमाणु हथियारों का परीक्षण कर रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब अमेरिका भी वही रास्ता अपनाएगा। इसी पृष्ठभूमि में बुधवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने परमाणु हथियार परीक्षण की संभावनाओं पर एक प्रारूप तैयार करने का आदेश जारी किया। जानकारों का मानना है कि यह आदेश ट्रम्प की अचानक की गई परमाणु परीक्षण घोषणा के जवाब में दिया गया है।
सोवियत संघ के पतन के बाद, 1991 से रूस ने कोई भी परमाणु परीक्षण नहीं किया। इसलिए पुतिन की यह घोषणा बेहद अहम है। राजनयिक हलकों का भी मानना है कि दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु-संपन्न देशों के ऐसे कदम से वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और बढ़ सकता है।
एएफपी समाचार एजेंसी के अनुसार, पुतिन ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक में भाग लिया। बैठक के दौरान संसदीय अध्यक्ष व्याचेस्लाव वोलोडिन ने उनसे पूछा कि 33 साल बाद ट्रम्प के परमाणु परीक्षण के आदेश के जवाब में क्या मॉस्को भी कोई कदम उठाने की सोच रहा है? इसके उत्तर में पुतिन ने बताया कि रक्षा, विदेश और खुफिया एजेंसियों को संभावित परमाणु परीक्षणों का एक प्रारूप तैयार करने का निर्देश दिया गया है।
रक्षा मंत्री आंद्रे बेलोउसव ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। पुतिन ने कहा कि आर्कटिक क्षेत्र के नोवाया ज़ेमल्या द्वीपसमूह में परमाणु परीक्षण किया जा सकता है। हालांकि, वहां परीक्षण होगा या नहीं, यह अभी तय नहीं है। वर्तमान में उत्तर कोरिया को छोड़कर दुनिया का कोई भी देश परमाणु हथियारों का परीक्षण नहीं करता।
अमेरिका ने आख़िरी बार 1992 में परमाणु परीक्षण किया था। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि परमाणु शक्ति संपन्न देश फिर से इस तरह के परीक्षण शुरू करते हैं, तो इससे दुनिया में अस्थिरता और भय का माहौल पैदा हो सकता है। पिछले महीने रूस ने बुरेवेस्टनिक क्रूज़ मिसाइल का परीक्षण किया था, जो परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि 30 अक्टूबर को डोनाल्ड ट्रम्प ने दक्षिण कोरिया की भूमि पर परमाणु परीक्षण शुरू करने का आदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि हम परीक्षण करेंगे। अगर अन्य देश परमाणु परीक्षण कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं?
और ट्रम्प की घोषणा के एक हफ्ते के भीतर रूस ने भी लगभग वही आदेश जारी कर दिया। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या शीत युद्ध का दौर फिर लौट रहा है? यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में गूंज रहा है।