समाचार एई समय: H-1B वीज़ा को लेकर US प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप की हिचकिचाहट पूरे साल जारी रही। उन्होंने हमेशा यह बात खुली रखी है कि वह देश में 'इमिग्रेंट्स' नहीं चाहते। पहले लाखों डॉलर का 'बोझ', फिर सोशल मीडिया वॉल्स पर निगरानी-एक के बाद एक 'क्लॉज' लगाकर उन्होंने धीरे-धीरे भारतीयों और दुनिया भर के लोगों के इस वीज़ा को पाने के रास्ते में और कांटे बिछा दिए हैं।
US होमलैंड सिक्योरिटी के मुताबिक, यूनाइटेड स्टेट्स सिटिज़नशिप एंड इमिग्रेशन सर्विस (USCIS) ने इस साल रिकॉर्ड 1.9% कंटिन्यूइंग एम्प्लॉयमेंट पिटीशन रिजेक्ट की हैं।
पिछले कुछ सालों से भारतीय H-1B वीज़ा पाने वालों में दुनिया में सबसे आगे रहे हैं। हाल के डेटा से पता चलता है कि इस साल नवंबर तक US में भारतीय IT कंपनियों से पहली बार H-1B वीज़ा एप्लीकेशन की संख्या 10 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। नवंबर तक यह संख्या 'सिर्फ़' 4,573 है जो 2024 की तुलना में 37% कम है और 2015 की तुलना में 70% की गिरावट है।
H-1B वीज़ा से मुख्य रूप से US के टेक्नोलॉजी सेक्टर को फ़ायदा होता है, जहां हर साल बड़ी संख्या में विदेशी वर्कर-जिनमें ज्यादातर भारतीय होते हैं- उनको नौकरी मिलती है। हालांकि, नेशनल फ़ाउंडेशन फ़ॉर अमेरिकन पॉलिसी के हालिया डेटा से पता चलता है कि इस साल नवंबर तक टॉप भारतीय IT कंपनियों से अप्रूव्ड H-1B एप्लीकेशन की संख्या घटकर 4,600 रह गई है। इस सूची में TCS, इंफोसिस, HCL अमेरिका, LTI माइंडट्री और विप्रो शामिल हैं।
ट्रंप की सख्ती के बावजूद H-1B के लिए अप्लाई करने वाली कंपनियों की टॉप-5 सूची में शामिल अकेली भारतीय कंपनी TCS का 2025 में वीज़ा रिजेक्शन रेट 7% रहा। हालांकि 2023 और 2024 में भारतीय टेक कंपनियों में यह क्रमशः 5% और 4% सबसे अधिक था। 2025 में उन्हें सिर्फ़ 846 एप्लीकेशन मिले जबकि 2024 में 1,452 और 2023 में 1,174 मिले थे।