मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को साफ संदेश दिया है कि जब तक वह भारतीय न्याय क्षेत्र के अधीन खुद को पेश नहीं करते, तब तक भगोड़ा आर्थिक अपराधी (FEO) कानून को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा। अदालत ने यह भी पूछा कि माल्या भारत कब लौटने की योजना बना रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखाड़ की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की, जब माल्या की दो याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इनमें एक याचिका उन्हें भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किए जाने के आदेश के खिलाफ है, जबकि दूसरी वर्ष 2018 में बने FEO कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है। 2016 से ब्रिटेन में रह रहे 70 वर्षीय माल्या धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में भारत में वांछित हैं।
अदालत ने माल्या के वकील अमित देसाई को स्पष्ट किया कि कानून की वैधता को चुनौती देने से पहले माल्या को अदालत के अधिकार क्षेत्र में आना होगा। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि देश से बाहर बैठे भगोड़े लोगों को भारतीय कानूनों को चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
मेहता ने दलील दी कि FEO कानून का उद्देश्य ही यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी देश से बाहर रहकर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न करें। उन्होंने यह भी बताया कि माल्या के खिलाफ चल रही प्रत्यर्पण प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
हाईकोर्ट ने कहा कि माल्या की दोनों याचिकाएं एक साथ नहीं चल सकतीं और उनसे यह स्पष्ट करने को कहा कि वह किस याचिका को आगे बढ़ाना चाहते हैं। वहीं माल्या की ओर से यह तर्क दिया गया कि उनकी वित्तीय देनदारियां लगभग समाप्त हो चुकी हैं, क्योंकि 14,000 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की जा चुकी हैं और बैंकों ने 6,000 करोड़ रुपये की वसूली कर ली है।
हालांकि अदालत ने सवाल उठाया कि बिना भारतीय न्याय क्षेत्र में आए आपराधिक जिम्मेदारी को कैसे खत्म किया जा सकता है। मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को तय की गई है, तब तक माल्या को अपनी पसंद स्पष्ट करनी होगी।
गौरतलब है कि जनवरी 2019 में PMLA मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत ने विजय माल्या को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया था। कई ऋणों में चूक और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के चलते माल्या मार्च 2016 में भारत छोड़कर चले गए थे।