रायपुरःहिंदी साहित्य की धीमी लेकिन सघन और मानवीय आवाज़ आज मौन हो गई। विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे। उनका जाना उस भाषा का ठहर जाना है, जो फुसफुसाकर में वंचित और शोषण के शिकार व्यक्ति की चीख को व्यक्त करती थी और जो शोर शराबे से दूर मौन के संगीत को रचने में सहायक थी। 89 वर्षों की जीवन-यात्रा पूरी कर उन्होंने मंगलवार कोरायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में शाम 5 बजे अंतिम सांस ली। सांस लेने में कठिनाई के कारण उन्हें 2 दिसंबर को एम्स में भर्ती किया गया था। शुक्ल वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। 24 दिसंबर बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 नवंबर को ही विनोद कुमार शुक्ल से बात कर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी।
बहुत कम बोलने वाले लेखक विनोद कुमार शुक्ल ने जो कहा, उसमें जीवन की धड़कन साफ सुनायी देती थी। उनकी रचनात्मक दुनिया साधारण मनुष्य के इर्द-गिर्द घूमती है। मनुष्य के रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनदेखी की जाती गतिविधियां उनके लिए काव्य का विषय रहीं। उनके लिए साहित्य किसी विचारधारा का घोषणापत्र नहीं था। मनुष्य को थोड़ा और मनुष्य बनाने की कोशिश में वे अपने साहित्य से लगे रहे।
‘नौकर की कमीज़’ उपन्यास नेएक नया सौंदर्य-बोध दिया। ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ में वे कहानी को एक नया मुहावरा देने में सफल रहे। उनकी दार्शनिक चुप्पियां गद्य को नया स्वाद देती दे गयीं। कविता में उन्होंने संवेदना का अनुशासन बदला। वे छत्तीसगढ़ के पहले लेखक थे जिन्हें ज्ञानपीठ मिला।
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव ज़िले में हुआ। उन्होंने औपचारिक रूप से कृषि विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की। उनका आरंभिक जीवन सादगी और सीमित संसाधनों के बीच बीता। साहित्यिक यात्रा की शुरुआत उन्होंने कविता से की। ‘नौकर की कमीज़’ पर मणि कौल ने फिल्म बनाई जिससे शुक्ल का साहित्य सिनेमा के दर्शकों तक पहुँचा। 1997 में प्रकाशित ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। वर्ष 2023 में उन्हें पेन/नाबोकोव पुरस्कार के लिए चुना गया और वर्ष 2024 में उन्हें भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
उल्लेखनीय है कि 'हिन्द युग्म' के प्रकाशक शैलेश भारतवासी ने पिछले दिनों शुक्ल को 6 महीने से भी कम समय में बिकी उनकी चार किताबों के लिए 30 लाख रुपये की रॉयल्टी दिए देकर साहित्य जगत को चौंका दिया था।