शेयर बाजार में निवेशकों की दुनिया में उन्हें डॉन ब्रैडमैन शायद नहीं कहा जा सकता। हालांकि अपनी दुनिया में वॉरेन बफेट बिल्कुल मास्टर ब्लास्टर सचिन जैसे ही चमकदार आइकन हैं। उनकी निवेश रणनीति, टाइमिंग और चॉइस को लेकर कई बार तथाकथित विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। जिस तरह से सचिन के परफेक्ट लेट-कट से गेंद सीमा रेखा के बाहर जाती है, वैसे ही बफेट ने भी अनगिनत बार आखिरकार यह साबित कर दिया कि सही वही थे। नतीजतन बाजार से लाभ भी उन्हीं को हुआ। वही बफेट एक समय कह चुके हैं कि रिस्क कम्स फ्रॉम नॉट नॉइंग व्हाट यू आर डूइंग।
हालांकि, यहीं परेशानी की वजह भी है। आम जनता शेयर बाजार में निवेश के मामले में अक्सर यही करते हैं। तर्क-बुद्धि, थ्योरी-पैटर्न की परवाह किए बिना केवल जोश में मुनाफे की उम्मीद में मेहनत की कमाई को लेकर व्यावहारिक रूप से जुआ खेल बैठते हैं। नतीजा वही होता है जो होना चाहिए। मुनाफे के बजाय बैलेंस शीट में कैपिटल लॉस का बोझ बढ़ता जाता है। अब एक हफ्ते के बाद ही नए साल की शुरूआत होने वाली है। चालू वर्ष में जो जोखिम लिए थे क्या वही जोखिम फिर से लेने जा रहे हैं या किसी नई रणनीति के तहत निवेश करने की योजना बना रहे हैं।
समाचार एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक चालू कैलेंडर वर्ष में शेयर सूचकांकों के उतार-चढ़ाव के बीच खुदरा निवेशकों का बड़ा हिस्सा मुनाफा नहीं कमा सका। बल्कि उनमें से एक हिस्से का शेयर पोर्टफोलियो रेड ज़ोन में ही बना रहा, जिससे उनकी चिंता बढ़ गई है। 2026 में क्या शेयर बाजार की कमजोरी कम होगी या सेंसेक्स-निफ्टी की चाल निवेशकों की धड़कन और तेज कर देगी। इन्हीं सवालों के साथ आम निवेशक नए साल में कदम रखने वाले हैं। विशेषज्ञों के एक वर्ग का कहना है कि नए साल में शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांकों की दिशा तय करने में कई फैक्टर अहम भूमिका निभा सकते हैं। ये फैक्टर हैं—
कॉरपोरेट आय : देश की कई दिग्गज कंपनियों के प्रबंधन जनवरी-फरवरी में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के नतीजे घोषित करेंगे। इन्हीं पर शेयर बाजार के आने वाले प्रदर्शन की दिशा निर्भर करेगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2025-26 वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के लाभ-हानि के आंकड़े निवेशकों को बाजार की ओर आकर्षित कर सकते हैं। उनका कहना है कि अगर कंपनियों की आय और मुनाफा दलाल स्ट्रीट के अनुमानों के अनुरूप या उससे बेहतर रहता है, तो शेयर बाजार का बुलिश साइकिल 2025 के नुकसान की भरपाई कर निवेशकों को फिर से ग्रीन ज़ोन में ला सकता है।
ट्रंप टैरिफ: चालू वर्ष में दो चरणों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय उत्पादों के आयात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाया। इससे इस साल देश के निर्यात पर बोझ पड़ने की आशंका थी। हालांकि ट्रंप प्रशासन द्वारा शुल्क 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के बाद केंद्र सरकार ने अमेरिका के अलावा अन्य देशों में निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया, जिसका असर अब साफ दिखने लगा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार, चालू साल के नवंबर में 2024 के नवंबर की तुलना में भारत से चीन को निर्यात 90 प्रतिशत बढ़ा है। इसके चलते देश के निर्यात क्षेत्र को नई ऑक्सीजन मिली है, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है। उनके मुताबिक, इससे दलाल स्ट्रीट में निवेशकों का मुनाफा बढ़ सकता है।
देशी-विदेशी निवेश: चालू वर्ष में विदेशी निवेशकों ने भारतीय कंपनियों के शेयर लगातार बेचे हैं। समाचार एजेंसियों के मुताबिक दिसंबर के अंतिम सप्ताह से पहले ही विदेशी निवेशकों की शेयर बिक्री का आंकड़ा तीन लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका था। हालांकि पिछले सप्ताह विदेशी निवेशकों की बिक्री घटकर 252 करोड़ रुपये रह गई, जिसे विशेषज्ञ शेयर बाजार में बुलिश ट्रेंड का संकेत मान रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले सप्ताह मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपये का स्तर 91.14 तक गिर गया था लेकिन सप्ताह बदलते ही इस मंगलवार को एक डॉलर की कीमत 89.54 रुपये रही। इससे विदेशी निवेश के भारत लौटने की संभावना बढ़ गई है। दूसरी ओर भले ही विदेशी निवेशक शेयर बेचते रहें, घरेलू निवेशक लगातार शेयर खरीद रहे हैं। म्यूचुअल फंड की SIP के जरिए देश के खुदरा निवेशक निवेश कर रहे हैं जिससे शेयर बाजार में खरीद-बिक्री का संतुलन बना हुआ है।
जीएसटी ढांचा: चालू वर्ष के 22 सितंबर को केंद्र सरकार ने जीएसटी ढांचे का पुनर्गठन किया था जिससे पूजा से पहले कई चीजों की कीमत कम हो गई। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबी अवधि में खरीदारी बढ़ने से बाजार में लिक्विडिटी बढ़ेगी, जिससे नए साल में सेंसेक्स-निफ्टी में तेजी की संभावना बन सकती है।
जीडीपी का अनुमान: हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बताया कि चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.3 प्रतिशत रखा गया है, जो अर्थव्यवस्था की मजबूती का संकेत है। वहीं आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति दर 2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है, जिसे खाने की वस्तुओं की कीमत में स्थिरता का संकेत माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक आरबीआई के ये आर्थिक अनुमान आने वाले वर्ष में निवेशकों की शेयरों में दिलचस्पी को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
प्रसंगवश, दलाल स्ट्रीट के बिग बुल राकेश झुनझुनवाला ने भी एक बार कहा था कि 'इमोशनल इन्वेस्टमेंट इज़ ए श्योर वे टू मेक लॉसेज़ इन स्टॉक मार्केट'। इसीलिए विशेषज्ञों का कहना है कि निवेश से पहले यह समझना जरूरी है कि किस कंपनी का शेयर खरीदा जा रहा है और उसका मूल्यांकन बाजार के हिसाब से सही है या नहीं।
(समाचार एई समय कहीं भी निवेश की सलाह नहीं देता। शेयर बाजार या किसी भी प्रकार का निवेश जोखिम के अधीन होता है। निवेश से पहले उचित अध्ययन और विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है। यह खबर केवल शैक्षिक और जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित की गई है।)