वर्तमान भूवैज्ञानिक युग (Anthropocene Age) में हमें उन सभी समस्याओं से मुकाबला करने का तरीका ढूंढना होगा जो धरती के लिए खतरा बन रहे हैं। इनमें से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जलवायु में होने वाला परिवर्तन मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। क्लाइमेट साइंस (Climate Science) ने पक्के तौर पर और बिना किसी शक के यह साबित कर दिया है कि ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से इंसानी गतिविधियों के कारण हो रही है। इसलिए इस समस्या का समाधान खोजने की जिम्मेदारी भी इंसानों की समझदारी पर ही निर्भर करती है।
15 दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दिल्ली और NRC में गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या की जड़ को समझने की कोशिश की। 'स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है' इस शिकायत के जवाब में कोर्ट ने कहा कि उसने कई आदेश दिए हैं लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे व्यावहारिक आदेश देने होंगे जिन्हें लागू किया जा सके।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्थिति का विश्लेषण किया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'लोगों को समय की आवश्यकता को समझना होगा और अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। रईस पाबंदियों का पालन नहीं करते और बड़ी डीजल वाली गाड़ियां, जेनरेटर और दूसरे प्रदूषण फैलाने वाले गैजेट्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते रहते हैं। गाड़ियों से फैलने वाला प्रदूषण राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के इलाकों का दम घोंट रहा है। गरीब और मजदूर वर्ग ही सबसे ज्यादा प्रदूषण की चपेट में आते हैं और सबसे ज्यादा परेशान भी यहीं होते हैं।'
गहराई में छिपी है समस्या
अगर ऊपरी तौर पर देखा जाए तो मुख्य न्यायाधीश का विश्लेषण सही भी है। यह सच है कि रईसों की ऊर्जा-गहन जीवनशैली से प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) का उत्सर्जन होता है जो स्वास्थ्य समस्याओं, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं।
यह भी सच है कि अमीर अपनी लाइफस्टाइल और प्रदूषण फैलाने वाली मशीनों का इस्तेमाल बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका मतलब है कि उनका कार्बन फुटप्रिंट कम होने के बजाय बढ़ रहा है। यह भी सच है कि गरीब और कामकाजी लोग प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के असर से सबसे ज्यादा परेशान होते हैं।
लेकिन इन बातों और स्पष्ट दिखाई देने वाली सच्चाई के पीछे एक बहुत बड़ी समस्या छिपी हुई है। जाने-माने जलवायु वैज्ञानिक और पर्यावरण एक्टिविस्ट माइकल मान ने साल 2021 में छपी अपनी किताब 'द न्यू क्लाइमेट वॉर : द फाइट टू टेक बैक आवर प्लैनेट' में बताया था कि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के लिए लोगों या उनकी लाइफस्टाइल को दोष देना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका समाधान भी मुख्य रूप से लोगों की लाइफस्टाइल को ठीक करने में नहीं है। हम आगे इस बात पर फिर आएंगे।
अपनी किताब में मान ने बताया कि जीवाश्म-ईंधन समर्थकों ने इंसानियत को ज्यादा हरे-भरे भविष्य की ओर बढ़ने से रोकने के लिए रचनात्कम तरीके से रणनीति बनायी। पर्यावरण आंदोलन के शुरुआती सालों में जब पर्यावरण सक्रियतावाद की शुरुआत हुई तब इस समर्थकों ने सीधे तौर पर इनकार को बढ़ावा दिया।
इस तरह जीवाश्म ईंधन निकालने, प्रक्रिया करने और वितरित करने वाली बड़ी कंपनियों – बिग ऑयल – ने नकली 'थिंक टैंक' और 'रिसर्च इंस्टीट्यूट' को फंड देना शुरू किया। इन्होंने अर्थव्यवस्था को 'डीकार्बनाइज' करने और जीने के ज्यादा साफ-सुथरे और हरे-भरे तरीकों को बढ़ावा देने के आंदोलन को बदनाम करने के लिए मनगढ़ंत डाटा, गलत बातें और बिना सबूत के दावे फैलाना शुरू कर दिया। यह जलवायु परिवर्तन के इनकार का सबसे बड़ा दौर था।
जीवाश्म ईंधन समर्थकों की योजनाएं
जब पर्यावरण विज्ञान अडवांस्ड हुआ और बेहतर तरीके से विकसित किया गया और पूरा डाटासेट बनाया गया तो इस तरह से इनकार करना नामुमकिन हो गया। जब बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो जीवाश्म ईंधन समर्थकों ने जलवायु परिवर्तन और सक्रियतावाद को कमजोर करने के दूसरे और मुश्किल तरीके अपनाए। मान ने बताया कि एक तरीका यह था कि लोगों की व्यक्तिगत लाइफस्टाइल पर ध्यान दिलाया जाए ताकि यह लगे कि यही प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है।
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विज्ञापन और मीडिया का इस्तेमाल करके इस बात को बढ़ावा दिया गया कि इस समस्या को हल करने का मुख्य तरीका व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। जीवाश्म ईंधन समर्थकों ने अक्सर न सिर्फ जीवाश्म ईंधन लगातार निकालने और इस्तेमाल करने की मुख्य समस्या और सरकारी नियमों को रोकने में कंपनियों की भूमिका से ध्यान हटाने की कोशिश की बल्कि जलवायु एक्टिविस्ट्स के बीच फूट डालने की भी कोशिश भी की जिसमें वे सफल भी हुए।
कुछ जलवायु एक्टिविस्ट और समूह के लिए व्यक्तिगत कार्बन शुद्धता एक विश्वास की बात बन गई जिससे लोगों को शर्मिंदा किया गया, फटकारा गया और बेकार मुद्दों पर बेवजह बहसबाजी भी हुई। कई लोगों ने दूसरों के मुकाबले खुद को नैतिक रूप से बेहतर दिखाने की कोशिश की।
कोई भी समझदार इंसान यह तर्क नहीं देगा कि लाइफस्टाइल और व्यक्तिगत पसंद जरूरी नहीं हैं। यह बहुत जरूरी है कि लोग अपनी लाइफस्टाइल बदलकर प्रदूषण और GHG उत्सर्जन को कम करने की जिम्मेदारी लें। पूरी दुनिया में लोगों के बीच वहनीयता (Sustainability) और लो-कार्बन लाइफस्टाइल जीवनयापन के बारे में जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है। हालांकि यह बात सबसे ज्यादा उच्च वर्गीय लोगों पर लागू होती है लेकिन यह दूसरों पर भी उतनी ही लागू होती है।
उदाहरण के लिए सिर्फ गाड़ियां ही प्रदूषण और GHG उत्सर्जन का कारण नहीं हैं बल्कि बायोमास और प्लास्टिक जलाना भी है जो निम्न वर्गीय लोगों को सर्दियों में गर्म रहने, खाना पकाने और कीड़े-मकोड़ों को भगाने के लिए मजबूरन करना पड़ता है। यह भी प्रदूषण फैलने और GHG उत्सर्जन का कारण बनता है।
प्रणालीगत समस्या
बात यह है कि समस्या प्रणालीगत है। अगर खासकर शहरी या उपनगरीय इलाकों में हवा में फैले प्रदूषण को कम करना, लोगों की सेहत को सुधारना है तो हमारे जीवन और जीने के तरीकों को समर्थन देने वाले संरचनाओं को बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाना होगा। और यह काम अकेले नहीं किया जा सकता है। जीवाश्म ईंधन को धीरे-धीरे इस्तेमाल से हटाने और पृथ्वी को डीकार्बनाइज करने के लिए जो कुछ भी करने की जरूरत है वह सिर्फ सरकार ही कर सकती हैं।
उदाहरण के तौर पर यह कहना काफी नहीं है कि लोगों को व्यक्तिगत गाड़ियों के बजाय यातायात के सार्वजनिक संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। अगर यह असुविधाजनक और आरामदायक नहीं होगा या कभी-कभी अवास्तविक होगा तो लोग ऐसा नहीं करेंगे। सरकारों को एक सस्ता, आरामदायक और पूरे शहर में उपलब्ध पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को प्रोत्साहित करना और ज्यादा पार्किंग फीस, कारों पर ज्यादा टैक्स वगैरह को कम करना होगा।
इस समस्या के समाधान में हमारी भूमिका
इसके पीछे राजनीतिक और नौकरशाही में जीवाश्म ईंधन समर्थकों की ताकतों का सामना करने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। लोगों की मुख्य भूमिका यह है कि वे पर्यावरण और स्वच्छ हवा और टिकाऊ जीवन के अधिकार के लिए एकजुट होकर सरकार पर ऐसा करने का दबाव डालें। यह भी बहुत जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस समस्या से लड़ने के लिए एक साथ आए।
हमारी वैश्वीक दुनिया में अकेले कोई देश इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। बहुपक्षीय प्रणाली अब तक पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी प्रभाव डालने में विफल रही है। वैश्विक बातचीत प्रणाली को अपग्रेड किया जाना चाहिए।
जलवायु कार्यकर्ताओं के बीच इस बात पर बहस चल रही है कि पूंजीवाद की व्यवस्था में बड़ी तेल कंपनियों से लड़ना कितना संभव है। यह सच है कि पूंजीवाद के तहत ही प्रगति करनी होगी क्योंकि यह आने वाले समय में एक वैश्विक प्रणाली के रूप में रहने वाला है। लेकिन यह भी सच है कि अगर प्रदूषण की समस्या खासकर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करना है तो पूंजीवाद में बड़े बदलाव करने होंगे। एकाधिकार पूंजीवाद के बेतहाशा विकास की स्थितियों में सार्थक और समग्र परिवर्तन संभव नहीं होगा।
दूसरे शब्दों में अगर कहें तो लोगों को सिर्फ अपनी कार और जनरेटर छोड़ने के लिए ही नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों की उस ताकत से लड़ने के लिए भी संगठित होना चाहिए जो उनकी जीवन पर नियंत्रण करना चाहती हैं। बिना रोक-टोक वाली कॉर्पोरेट पावर बड़े स्तर पर भाई-भतीजावाद और गलत फैसलों को बढ़ावा देती है। यह राजनैतिक प्रणाली को भी बिगाड़ती है और अधिकांश लोगों को कमजोर बना देती है।
व्यक्तिगत नैतिक चुनाव बेहद जरूरी हैं लेकिन हम अपने पड़ोसियों को शर्मिंदा करने के लिए संरचनात्मक समस्याओं को नजरंदाज नहीं कर सकते। लोग जो कई गलत फैसले लेते रहते हैं वे उन पर थोपे जाते हैं।
(News Ei Samay से साभार)