जयपुर: कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार को केंद्र सरकार से अपील की कि अरावली पर्वत श्रृंखला की परिभाषा पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अरावली को नुकसान पहुंचना उत्तर भारत के पर्यावरणीय भविष्य के लिए गंभीर खतरा है।
अरावली में खनन और पर्यावरण संरक्षण को लेकर चल रही बहस के बीच गहलोत ने देशव्यापी ‘सेव अरावली’ अभियान के समर्थन किया और अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल की तस्वीर बदली। उन्होंने कहा कि यह उनका प्रतीकात्मक विरोध है क्योंकि नई व्याख्या के तहत 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अब अरावली का हिस्सा नहीं माना जा रहा है।
पीटीआई कि रिपोर्ट के अनुसार गहलोत ने कहा कि अरावली को सिर्फ ऊंचाई या नाप-तौल से नहीं आंका जा सकता। इसका मूल्यांकन इसके पर्यावरणीय महत्व के आधार पर होना चाहिए। बदली हुई परिभाषा उत्तर भारत के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
उन्होंने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि आने वाली पीढ़ियों और पर्यावरण सुरक्षा के हित में इस मुद्दे पर फिर से विचार किया जाए। साथ ही, लोगों से भी आग्रह किया कि वे जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने ऑनलाइन प्रोफाइल फोटो बदलकर अभियान में शामिल हों।
गहलोत ने बताया कि अरावली पर्वत श्रृंखला थार मरुस्थल के विस्तार और भीषण गर्मी की लहरों के खिलाफ एक प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती है। जिससे दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सुरक्षित रहते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि छोटी पहाड़ियों और तथाकथित खाली क्षेत्रों को खनन के लिए खोलने से मरुस्थलीकरण तेजी से बढ़ेगा।
अरावली की पहाड़ियां और जंगल धूल भरी आंधियों को रोककर और प्रदूषक तत्वों को सोखकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के फेफड़ों की तरह काम करते हैं। पानी के संकट का जिक्र करते हुए गहलोत ने कहा कि अरावली का पथरीला भूभाग वर्षा जल को जमीन में पहुंचाकर भूजल रिचार्ज में अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर पहाड़ियां नष्ट हुईं तो पेयजल संकट बढ़ेगा, वन्यजीव खत्म होंगे और पूरी पारिस्थितिकी खतरे में पड़ जाएगी। वैज्ञानिक दृष्टि से अरावली एक निरंतर पर्वत श्रृंखला है और छोटी पहाड़ियां भी ऊंची चोटियों जितनी ही महत्वपूर्ण हैं।