नयी दिल्लीः एविएशन सेक्टर में इंडिगो ऑपरेशंस के बाधित होने से पैदा हुए संकट पर ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। यूनियन का कहना है कि विमानन उद्योग में कर्मचारियों की थकान और अव्यवस्थित ड्यूटी शेड्यूल से उपजा संकट ठीक वही स्थिति दर्शाता है, जिसका सामना भारतीय रेलवे के लोको पायलट वर्षों से कर रहे हैं। यूनियन ने इसे “सिर्फ एविएशन मुद्दा नहीं, बल्कि सभी हाई-रिस्क उद्योगों के लिए चेतावनी” बताया।
AILRSA के महासचिव के सी जेम्स ने कहा कि “आसमान हो या रेल की पटरी, कर्मचारियों की थकान सीधे यात्रियों की सुरक्षा को प्रभावित करती है। आधुनिक ‘स्लीप साइंस’ और मानव शरीर विज्ञान के अनुरूप ड्यूटी नियम कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं, बल्कि सुरक्षा मानक हैं।” उनका कहना है कि रेलवे की तकनीकी प्रगति अभी भी हवाई यात्रा की तुलना में बहुत पीछे है, इसलिए लोको पायलटों की सतर्कता करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा का आधार है।
लोको पायलटों के पुराने मुद्दे फिर चर्चा में
एविएशन संकट के बीच यूनियन ने अपनी पुरानी मांगें दोहराईं-यूनियन की मांग है कि लगातार दो रात की ड्यूटी से अधिक न कराई जाए। ड्यूटी घंटे मानव शरीर की जैविक घड़ी (Circadian Rhythm) के अनुरूप तय हों। हर ड्यूटी के बाद पर्याप्त आराम और साप्ताहिक विश्राम मिले। यूनियन ने कहा कि कई रेल हादसों की जांच रिपोर्टों में भी क्रू के असंगत ड्यूटी घंटों को एक बड़ी वजह बताया गया है।
उच्चस्तरीय समितियों की सिफारिशें दबाई गईं?
जेम्स ने आरोप लगाया कि अनिल काकोदकर समिति (2012) से लेकर त्रिपाठी समिति (2013) तक कई उच्चस्तरीय पैनलों ने लोको पायलटों के लिए वैज्ञानिक ड्यूटी नियम लागू करने की सिफारिश की थी, लेकिन रेलवे बोर्ड ने इसे “ऑपरेशनल जरूरतों” का हवाला देकर लागू नहीं किया।
यूनियन के मुताबिक 172 साल पुराने रेलवे ने आज तक अपने लोको पायलटों के काम पर औपचारिक जॉब एनालिसिस ही नहीं कराया। 26 अप्रैल 2022 को मद्रास हाई कोर्ट ने जॉब एनालिसिस छह सप्ताह में कराने का आदेश दिया था, लेकिन रेलवे ने श्रम विभाग को अनुमति नहीं दी और खुद ने भी यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई। उन्होंने यह भी दावा किया कि लोको पायलटों के दैनिक विश्राम में कथित कमी हाई कोर्ट ऑफ कर्नाटक द्वारा 2010 में प्रतिबंधित की गई थी, फिर भी यह समस्या जारी है।
सरकार पर दोहरे रवैये का आरोप
एविएशन संकट पर सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर AILRSA ने कहा कि सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के हर आंदोलन को दंडात्मक कार्रवाई, चार्जशीट और अनुशासनात्मक नियमों के सहारे दबा दिया जाता है। लेकिन जब बड़ी निजी कंपनियां सुरक्षा मानकों का पालन करने में ढील दिखाती हैं, “सरकार उनके आगे झुक जाती है।”
इंडिगो संकट ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्किंग कंडीशंस सिर्फ एचआर या यूनियन का मामला नहीं, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा का अनिवार्य घटक हैं। रेलवे में पुरानी संरचनाएं और धीमी तकनीकी प्रगति खतरा बढ़ाती हैं। वहीं एविएशन में लंबे समय से चले आ रहे वर्कलोड तनाव अब खुलकर सामने आ रहे हैं। दोनों सेक्टरों के लिए एक समान संदेश है-थका हुआ ऑपरेशनल स्टाफ, उच्च जोखिम का सीधा स्रोत है। यदि नीतिगत ढांचा विज्ञान-आधारित न हो, तो ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आती रहेंगी।