रायपुर/ नई दिल्ली: चर्चित वरिष्ठ कवि, कहानीकार और उपन्यासकार तथा और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का आज राजकीय सम्मान के साथ यहां अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनके पुत्र शाश्वत ने उनको मुखाग्नि दी। शुक्ल का मंगलवार शाम रायपुर के एम्स में आयुजनित बीमारियों के कारण निधन हो गया। वे 1 जनवरी को 89 वर्ष के होने वाले थे।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने आज रायपुर के शैलेंद्र नगर स्थित साहित्यकार एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित दिवंगत साहित्यकार शुक्ल के निवास पर पहुँचकर उनके अंतिम दर्शन किए और श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने शोकसंतप्त परिजनों से भेंट कर अपनी संवेदनाएँ भी व्यक्त कीं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री साय ने दिवंगत शुक्ल के पार्थिव शरीर को कंधा देकर उन्हें भावभीनी अंतिम विदाई दी।
शुक्ल के निधन पर देशभर के लेखकों, कवियों और राजनीतिक नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्हें सच्चे अर्थों में मौलिक लेखक और वंचितों का कवि बताया गया। शुक्ल का लेखन भारत के गरीब और मध्यवर्गीय लोगों की स्थिति को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है और उनके दैनिक जीवन तथा समाज की जटिल सच्चाइयों को बारीकी से उकेरता है। उन्हें ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए वर्ष 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और इस वर्ष नवंबर में उन्हें 59वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। वे यह सम्मान पाने वाले केवल 12वें हिन्दी लेखक बने। 1 जनवरी 1937 को राजनांदगांव में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य की सबसे विशिष्ट आवाज़ों में गिने जाते हैं। उन्होंने ‘नौकर की कमीज़’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे चर्चित उपन्यास लिखे। शुक्ल की एक अन्य चर्चित कृति ‘नौकर की कमीज़’ पर वर्ष 1999 में मणि कौल द्वारा फ़िल्म भी बनाई गई थी। सरल, संवादधर्मी हिन्दी के लिए पहचाने जाने वाले शुक्ल की कहानियाँ घरेलू परिचय का एहसास कराती हैं, लेकिन साथ ही अन्याय, मानवीय गरिमा, अलगाव, क्षति और अकेलेपन जैसे गहरे दार्शनिक प्रश्न भी उठाती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामाजिक माध्यम ‘एक्स’ पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी साहित्य की दुनिया में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।।
लेखक चंदन पांडेय ने उनके निधन को साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा कि यद्यपि वे कुछ समय से अस्वस्थ थे, फिर भी साहित्यिक जगत में यह आशा बनी हुई थी कि वे और लिखेंगे तथा पाठकों को और रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी।
लेखक प्रेम जनमेजय ने कहा कि शुक्ल ऐसे कवि थे जो वंचितों और निराश लोगों के साथ खड़े रहते थे। लेखक प्रभात रंजन ने कहा कि शुक्ल “सचमुच मौलिक हिन्दी लेखक थे, जिनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।”
कवि लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने शुक्ल को साहित्य में स्थापित होना चाहने वाली युवा पीढ़ी के लिए आदर्श विद्यालय बताया। उन्होंने कहा कि साधारण भाषा में घर-परिवार और आसपास की चीज़ों की बात करते हुए शुक्ल बहुत बड़े प्रश्न खड़े कर देते थे। उनकी कविता ‘अभी बारिश नहीं हुई’ का उदाहरण देते हुए बाजपेयी ने कहा कि उसमें वे पूरी धरती और मानवता के संकटों की बात करते हैं। उन्होंने आदिवासियों के जंगलों से विस्थापन और महानगरों में शोषण का उल्लेख करते हुए कहा कि इतनी बड़ी चिंताओं को छोटी कविता में व्यक्त करना शुक्ल की विशेषता थी।
लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने उन्हें लेखन का योद्धा कहा, जबकि मृदुला गर्ग ने कहा कि समाज में हो रहे हर अन्याय पर उनकी दृष्टि अत्यंत पैनी थी। राजकमल प्रकाशन के अशोक महेश्वरी ने कहा कि शुक्ल ने साधारण लोगों और उनके जीवन की असाधारणता को साहित्य के व्यापक कैनवास पर उकेरा। उनकी कविताएं, उपन्यास व कहानियाँ सभी में आम आदमी का जीवन गहरी संवेदनशीलता के साथ चित्रित हुआ है।